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बायो कंट्रोल लैब में तैयार हुए कीट कमांडो, फसल को चट करने वाले पेस्टीसाइड का करेंगे खात्मा

Bio Control Lab Jagdalpur: जगदलपुर जिले के कुम्हरावंड स्थित शहीद गुंडाधुर कृषि कालेज व अनुसंधान केंद्र में संभाग का पहला बायो कंट्रोल जैव नियंत्रण लेब अस्तित्व में आ गया है।

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बायो कंट्रोल लैब में तैयार हुए कीट कमांडो

लैब में इन साधारण उपकरणों की सहायता से मित्र कीट तैयार हो रहे।

Bio Control Lab Jagdalpur: जगदलपुर जिले के कुम्हरावंड स्थित शहीद गुंडाधुर कृषि कालेज व अनुसंधान केंद्र में संभाग का पहला बायो कंट्रोल जैव नियंत्रण लेब अस्तित्व में आ गया है। इस लैब में ऐसे मित्र कीटों का सफलतापूर्वक संरक्षण व संवर्धन किया जा रहा है जो कि फसल को चट करने वाले कीटों का न सिर्फ समूल नष्ट कर देंगे। बल्कि यह जैविक नियंत्रण होने की वजह से पूरी तरह से पर्यावरण हितैषी भी साबित हो रहे हैं।

कालेज के एकेडमिक भवन के एक कमरे को जैव नियंत्रण प्रयोगशाला का रुप दिया गया है। यहां पर प्रवेश करते ही भीतर लोहे के बने रेक में कतार से लकड़ी के बक्से रखे हुए हैं, इसके साथ एक टैबिल में प्लास्टिक के बने हुए छोटे कटोरेनुमा बर्तन, बड़े आकार के फनल जैसे साधारण से घरेलु उपकरण नजर आते हैं। एक नजर में यह किसी भी तरह का साइंटिफिक लैब नहीं नजर आता है। पर बारीकी से देख्रने पर इन बक्सों में लिखे नंबर, उनमे लिखी तारीख व अन्य साइंटिफिक डेटा से यह स्पष्ट हो जाता है कि इस लेबोरेटरी में किसी न किसी खास तरह का क्रियाकलाप चल रहा है।

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इन बक्सों व कटोरों के नजदीक जाकर देखने पर उनमें सैकड़ों- हजारों की संख्या में अंडे, लार्वा नजर आते हें। इन मित्र कीटों को उनके पसंदीदा आहार के साथ रखा गया है। इनके अंडों को पहचानने पीले, गुलाबी व अन्य रंग के कागज उपयोग किए जा रहे हैं।

इन अंडों को सीधे प्रभावित फसल में लटका देना है
जैविक नियंत्रण प्रयोगशाला की संस्थापक व डीन डॉ जयलक्ष्मी गांगुली ने बताया कि कागज मे चिपकाए गए इन अंडों को सीधे प्रभावित फसलों पर स्टेपलर या पिन के जरिए लटका दिया जाता है। इन अंडों से निकलने वाले कीट उन शत्रु कीटों को पकड़कर उन्हें नष्ट कर देंगे। उन्होंने कहा कि यह कीट कार्निवोरस (मांसाहारी ) होते हैं। वे अपनी संख्या वृद्धि कर अनुपयोगी कीटों को खत्म कर डालते हैं।

उन्होंने कहा कि यह विधि कृषि की पुरानी परंपरा है। रसायन का उपयोग बढ़ने की वजह से इस तकनीक को भुला दिया गया था। अब केरल व तमिलनाडु सहित छत्तीसगढ़ के शिक्षिक किसान इसे अपनाने आगे आए हैं।