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भगवान जगन्नाथ सजे रथ पर सवार होकर पहुंचे घर तो भक्तों ने कुछ इस अंदाज में दी सलामी

जनकपुरी से रथ पर सवार होकर महाप्रभु पहुंचे घर, बाहुड़ा गोंचा पर भगवान जगन्नाथ को सलामी देने बड़ी संख्या में पहुंचे श्रद्धालु और किया प्रसाद ग्रहण।

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ajay shrivastav

Jul 04, 2017

Lord of Jaggannath in rath yatra jagdalpur

Lord Jagannath, gave some salute in this style

जगदलपुर.
बाहुड़ा गोंचा के मौके पर सोमवार को भगवान जगन्नाथ फूलों से सजे रथ पर सवार होकर मौसी गुंडिचा के घर जनकपुरी से मंदिर के लिए निकले। भगवान के निकलते ही हजारों की संख्या में श्रृद्धालु उनके दर्शन के लिए यहां पहले से ही मौेजूद थे। इस दौरान श्रृद्धालुओं ने भगवान के रथ को खींचकर भगवान जगन्नाथ को मंदिर तक लाए। यहां कपाट फेड़ा रस्म निभाने के बाद प्रभु जगन्नाथ माता लक्ष्मी व बहन सुभद्रा के साथ आसन पर विराजे।

मंदिर में कीर्तन, पूजा-अर्चना की गई

विश्व प्रसिद्ध इस गोंचा पर्व में भगवान के जनकपुरी से निकलने के पहले मंदिर में कीर्तन, पूजा व अर्चना की गई। भगवान को अमनिया भोग लगाया गया। वहीं इसके बाद शाम को जगन्नाथ, बालभद्र व बहन सुभद्रा को पुजारियों ने फूलों से सजे रथ पर आसन कराया। इसके बाद श्रृद्धालुओं ने रथ खींचना शुरू किया। इसे दंतेश्वरी मंदिर से मिताली चौक व गोलबाजार चौक से होते हुए जगन्नाथि मंदिर पहुंचे। इस दौरान भगवान के प्रसाद लेने के लिए भी लोगों की भीड़ व लंबी कतार लगी रही।

भगवान की धुलाए पैर, उतारी नजर

फूलो से सजा रथ जैसे ही जगन्नाथ मंदिर पहुंचा, पुजारियों ने भगवान व उनके भाई बलभद्र व बहन सुभद्रा को उतारा और मंदिर प्रांगण ले गए। यहां पुजारियों ने भगवान के पैर धुलाए गए और नजर उतारी। इसके बाद तुलसी व मिट्टी का तिलक लगाया और कपाट फेड़ा की रस्म निभाई गई।

कड़ी सुरक्षा व्यवस्था

रथ परिक्रमा के दौरान सिरहासार चौक में पुलिस प्रशासन की तरफ से सुरक्षा भी कड़ी की गई थी। यहां करीब 200 जवान तैनात थे, यहां सुरक्षा व्यवस्था से कोई खिलवाड़ नहीं कर सके इसके लिए पुलिस महकमे के आला अधिकारी भी यहां सुरक्षा व्यवस्था का जायजा लेते नजर आए। वहीं जिला प्रशासन की तरफ से नायब तहसीलदार आरबी बघेल भी मौजूद रहे।


नाराज पत्नी को मनाने के बाद मिला मंदिर में प्रवेश

25 दिन तक चलने वाले इस गोंचा पर्व का अंतिम दिन बाहुड़ा गोंचा कहलाता है। इसमें कपाटफेड़ा के बाद भगवान जगन्नाथ और उनकी पत्नी लक्ष्मी से मिलने के बीच में उनके बीच संवाद होता है। इस रस्म में जगन्नाथ अपनी पत्नी को मनाते हैं। दरअसल जगन्नाथ बिना बताए घर से निकल जाते है, और वे मौसी के घर जनकपुरी पहुंच जाते हैं। इसी बीच जब वह अपनी मौसी के यहां आराम करते रहते है, तो लक्ष्मी जी उनको ढूंढते हुए हेरापंचमी के दिन जनकपुरी पहुंचती है, जहां उन्हें बिना बताये यहां आने पर नाराज होकर चली आतीं है।

भगवान जगन्नाथ और लक्ष्मी के बीच संवाद

इसी के चलते जब भगवान सोमवार को जगन्नाथपुरी लौटते है, तो लक्ष्मी जी उनके ज्येठ बालभद्र को तो अंदर आने देती है, लेकिन जगन्नाथ के अंदर आने के पहले ही मंदिर के कपाट बंद कर देती है। इसके बाद बंद दरवाजे के दोनों तरफ से जगन्नाथ और लक्ष्मी के बीच लंबा संवाद चलता है। भगवान काफी देर तक पत्नी को मनाते हैं। तब जाकर भगवान के लिए लक्ष्मी जी कपाट खोलती है। दोनों एक दूसरे को देख खुश हो जाते है, और आंखे नम हो जाती है। इसके बाद वे मंदिर में प्रस्थान करते हैं।


जमकर चली तुपकियां

बाहुड़ा गोंचा की यह रस्म है, कि जब भगवान जनकपुरी से मंदिर के लिए रथ पर सवार होकर रवाना होते हैं, तो भक्त तुपकी चलाकर सलामी देते हैं। सोमवार को सुबह से ही शहर के चौक चौराहों में तुपकी बेचने वालों का शहरवासी इंतजार करते रहे। सुबह 7 बजे के करीब जैसे ही तुपकी बेचने वाले शहर पहुंचे। शहरवासियों का इन पर हुजुम उमड़ पड़ा। शहर के करीब-करीब हर मुख्य चौराहों पर लोग तुपकियां बेचते व खरीदते नजर आए। वहीं बच्चे सुबह से लेकर देर शाम तक तुपकी चलाते हुए मजा करते नजर आए। वहीं पुलिस की पेट्रोलिंग भी लगातार जारी रही, कुछ असामाजिक लोगों को तुपकी का गलत इस्तेमाल ना करने की हिदायत भी दी गई।

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