
2008 में हुई थी विवि की स्थापना, तीन नियमित कुलपति रहे, अब चौथे कुलपति की ताजपोशी की कवायद जारी
अजय श्रीवास्तव। बस्तर विवि के कुलपति प्रो शैलेंद्र कुमार सिंह की विदाई तय मानी जा रही है। सब कुछ तय शुदा समय पर हुआ तो यह सप्ताह उनके कार्यकाल का आखिरी सप्ताह होगा। इधर रायपुर राजभवन में इस विवि का कुलपति बनने के लिए संभाावित नाम पहुंच गए है। इन नामों पर मुहर लगाने के लिए कुलपति चयन समिति अध्यक्ष प्रो योगेश सिंह रायपुर पहुंच गए हैं। ये नामित सदस्यों में से किसी एक के नाम पर सहमति देंगे।
इधर पता चला है कि विवि के नए कुलपति की दौड़ में मध्यप्रदेश के भोज मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो कमलाकर सिंह भी जोड़तोड़ में जुटे हुए हैं। बताया जा रहा है कि कमलाकर सिंह कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिहं के खास हैं। इसे देखते यह बात उड़ रही है कि जिनके निगहबानी में यह फाइनल होगा वह महिला नेत्री भी पूर्व कांग्रेसी नेता अर्जुन सिंह के खेमे में रह चुकी हैं। वैसे तो विश्वविद्यालय के कुलपति अकादमिक क्षेत्र से ताल्लुक रखने वाले होते हैं। पर ऐसा कम ही होता है कि बिना राजनैतिक वरदहस्त के कुलपति की ताजपोशी होती है। पूर्व में डा जयलक्ष्मी ठाकुर व प्रो एनडीआर चंद्र कांग्रेस राज्यपाल के करीबी होने से यह गौरव हासिल कर चुके हैं। ऐसे में तीसरे नियमित कुलपति इससे इतर होंगे यह कहना मुश्किल जान पड़ता है।
दीक्षांत समारोह न करवा पाने की कसक बाकी रह गई
बस्तर विश्वविद्यालय की स्थापना के समय प्रो जयलक्ष्मी ठाकुर ने पहले कुलपति के तौर पर पदभार संभाला। रविशंकर विश्वविद्यालय से अलग होकर बस्तर संभाग में विवि की स्थापना करना दुरुह था। शुरुआत में विवि के लिए एकमात्र प्रशासनिक भवन ही था। इसमें परीक्षा व प्रवेश संबंधी मुख्य कार्य निपटाए जाते रहे। कुछ ही समय में उन्होंने तीन पाठयक्रम की शुरूआत की। यह पाठयक्रम अब भी सुचारु जारी हैं। जयलक्ष्मी ठाकुर के कार्यकाल मे रजिस्ट्रार रहे जेके जैन से उनकी पटनी कभी नहीं बैठी। तनातनी के बीच उन्होंने दीक्षांत समारोह करवाने की ठानी। पर दीक्षांत के ऐन पहले उन्हें हटा दिया गया। व नए कुलपति प्रो एनडीआर चंद्र ने कार्यभार संभााला।
रुसा से इंफ्रास्ट्रक्चर, नए कोर्स पीएचडी की शुरुआत
विवि के दूसरे कुलपति प्रो एनडीआर चंद्र ने पदभार लेते ही प्रथम दीक्षांत समारोह करवाया। इसके बाद उन्हीं के दौर में रूसा से बीस करोड़ रुपए का आवंटन आया। प्रो चंद्र ने अपने कायर्काल मे पांच नए अध्ययनशालाओं के साथ ही आठ से अधिक विषयों में पीएचडी की शुरुआत की। उन्होंने विवि के विस्तार के लिए लोहांडीगुड़ा में 2 सौ एकड़ की भूमि का चयन किया था। उनके कार्यकाल में रजिस्ट्रार रहीं इंदू अनंत से उनकी पटरी कभी नहीं बैठी। विवादों का दौर जारी रहा। छात्र राजनीति भी चरम पर रही। शिक्षण के अलावा विवि राजनैतिक धु्वीकरण का अखाड़ा बन गया। इसकी परिणिति धारा 52 के तौर पर सामने आई। हालांकि उनकी रवानगी के साथ ही शासन ने सारा मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया।
कोरोना ने गतिविधि की ठप, नियुक्तियों की राह खुली
प्रो चंद के बाद कुछ दिन तक विवि में उथलपुथल जारी रही। इसके बाद नियमित कुलपति के तौर पर प्रो शैलेंद्र सिंह ने कार्यभार संभाला । इनके नियुक्ति के तत्काल बाद वैश्विक महामारी कोरोना का संक्रमण हुआ। शैलेंद्र सिंह व उनकी टीम ने आनलाइन परीक्षा व आनलाइन एडमिशन जैसे नवाचारों का सामना किया। विवि का नया नामकरण भी हुआ। दो दो दीक्षांत समारोह का आयोजन करने कामयाब रहे। छात्र संगठन नहीं होने से उन्हें छात्र राजनीति से राहत मिली। उनके कार्यकाल में रजिस्ट्रार डा वीके पाठक से बेहतर सामंजस्य नजर आया। कार्यकाल के आखिरी सत्र में पर्चा लीक कांड, कम्यूटर खरीदी व संविदा प्राध्यापको की नियुक्ति जैसी घटाओं से वे घिर गए।
Published on:
23 Aug 2022 08:04 pm
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