
इंद्रावती टाइगर रिजर्व में स्टाफ को सर्वे करने दी जा रही ट्रेनिंग,
अजय श्रीवास्तव। लगभग लुप्त होने की कगार पर पहुंच गए भारतीय गिद्ध की मौजूदगी इन दिनों बीजापुर के इंद्रावती टाइगर रिजर्व सहित रुद्रारम व कृष्णास्वामी गुट्टा की पहाडिय़ों में देखी जा रही है। घने वनों और नक्सलियों के खौफ के चलते इनकी गतिविधियों की जानकारी जुटाना जोखिम से भरा था। अब इस रिजर्व व उसके आसपास के इलाके में इनके सर्वे करने के लिए विभागीय स्टाफ काे जानकार प्रशिक्षण दे रहे हैं।दो साल तक चलने वाले इस प्रोजेक्ट के पहले चरण में फील्ड स्टाफ को पहले प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण के बाद फील्ड वर्कर्स गिद्ध की पहचान, इनके रहवास, आहार, आदत- आचरण व नेस्टिंग के बारे में जानकारी जुटाएंगे। सीसीएफ वाइल्ड लाइफ एके श्रीवास्तव ने बताया कि इसके लिए इन प्रशिक्षुओं को एक्सपोजर विजिट करवाया जाएगा। इसके लिए सीनियर रिसर्च फलो को भी आमंत्रित किया जाएगा। ये रिसर्च फेलो इनकी संख्या वृद्धि के बारे में प्रयास करेंगे। गिद्ध पर्यावरण के संरक्षण के लिए बेहद जरुरी प्रजाति हैं। ये सड़े- गले शव को खाकर प्रदूषण से बचाते हैं।
पहले भी पांच पक्षी विज्ञानी कर चुके हैं प्रयास: बीजापुर इलाके में गिद्धों की हलचल को देखने पांच पक्षी प्रेमी डा. सुशील दत्ता, डा. मुंतज खान, डा. पीआरएस नेगी, संतोष दुर्गम व सुरभि दत्ता जुटे हुए हैं। २०११ से लेकर ११ साल तक चले इस अभियान का प्रकाशन अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रिका जर्नल आफ थ्रेतन्ड टैक्सा में २६ नवंबर २१ को होने से इनके शोध पर मुहर लग गई है। हालांकि इन पक्षी विज्ञानियों के पास गिद्धों की संख्या को लेकर सटीक जानकारी नहीं है। फिर भी इन्होंने जो फोटोग्राफिक डाटा इकट्ठा किया है उसमें पचास से ले·र ६० तक की संख्या में यह गिद्ध नजर आ रहे हैं। इससे पहले भी बीजापुर टाइगर रिजर्व में इनकी उपस्थिति की खबर पाकर बांबे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के वल्चर प्रोजेक्ट में कार्यरत सीनियर रिसर्च फेलो आशीष काबले इंद्रावती टाइगर रिजर्व पहुंचे थे।
बस्तर में पाई जाती हैं तीन प्रजातियां :भारत में गिद्ध की नौ प्रजातियां हैं, इनमें से सात छत्तीसगढ़ में मौजूद हैं। जबकि बस्तर में तीन प्रजातियां देखी जा रही है। इनमें गिप्स बेंगालेसिस, गिप्स इंडी·स ·े साथ ही एक प्रवासी हिमालयन गुफान प्रजाति का गिद्ध है। तीन दशक पहले देश में 8 करोड़ से अधिक गिद्ध थे। मानवीय व कुछ प्राकृतिक कारणों से इनकी संख्या तेजी से गिरकर एक लाख मे सिमट गई है। महाराष्ट्र समेत कई राज्यों में इसका अस्तित्व समाप्त हो गया है। छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और हिमालय के तराई वाले घने जंगल में ही इनकी सीमित उपस्थिति देखी जा रही थी। अंडे देने के बाद मादा गिद्ध सिर्फ एक ही बच्चे को पालने पोसने की जिम्मेदारी उठाती है। इनकी गिरती संख्या के पीछे यह भी एक कारण है।
दर्द निवार· दवा बन गई शामत: मवेशियों को दर्द निवारक दवा डाइक्लोफिनेक का इंजेक्शन दिया जाता था। यदि 72 घंटे के भीतर मवेशी मर जाता था तब यह रसायन उसके शव पर रह जाता था, गिद्ध चूंकि मरे हुए जानवरों का भक्षण ·रते हैं। ऐसी स्थिति में उनके उदर से होता हुआ यह दवा उनकी किडनी तक पहुंचकर उसे खराब कर देता है। इसी मानव जनित विभीषिका ने गिद्धों की प्रजाति को विलुप्ति के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। लगातार शिकायतों के बाद भारत सरकार ने इस दवा को 200५ में आंशिक व 200६ में पूर्णतया प्रतिबंधित कर दिया।
Published on:
19 Oct 2022 07:12 pm
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