
2008 से बंद पड़ा स्मेल्टर प्लांट।
झुंझुनूं . खेतड़ीनगर . खेतड़ी कॉपर कॉम्पलेक्स (केसीसी) को सुनियोजित तरीके से बंद किया जा रहा है। पहले घाटे में दिखाया, फिर संयंत्रों को कबाड़ बना दिया। जबकि हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड के दूसरे संयंत्रों में विदेशों की नई तकनीक इस्तेमाल की गई। केसीसी में नई तकनीक का उपयोग हो तो तांबे की चमक लौट सकेगी, 10 हजार लोगों को रोजगार मिल सकेगा।
हिन्दुस्तान कॉपर लिमिटेड की दूसरी इकाई इंडियन कॉपर कॉम्पलेक्स (आइसीसी) घाटशिला सिंहभूम झारखंड, मलंजखंड कॉपर प्रोजेक्ट (एमसीपी) बालाघाट एमपी व तलोज कॉपर प्रोजेक्ट (टीसीपी) रायगढ़ महाराष्ट्र में नई तकनीक की मशीनरी लगाई गई। आइसीसी घाटशिला में पुराने कोल फायर्ड बॉयलर के स्थान पर निपुण फरनेस ऑयल फायर्ड पैकेज ब्लोअर लगाया गया। आइसीसी के फ्लैश स्मेल्टर के कार्य के लिए पुराने स्टीम चालित ब्लोअर की जगह आधुनिक इलेक्ट्रिक चालित ब्लोअर लगाए गए। आइसीसी में कन्वर्टर टिल्टिंग मैकेनिज्म का आधुनिकीकरण इलेक्ट्रो-न्युमैटिक सिस्टम (डुअल ड्राइव सिस्टम) से किया गया। इसी प्रकार वर्ष 2015 में आइसीसी में प्रचालनों में परिवर्तन के लिए चीन से आयातित आधुनिक इलेक्ट्रिक चालित ब्लोअर तकनीक काम में ली गई। कनाडा से आयातित ईएमईडब्ल्यू टैक्नोलॉजी भी काम में ली गई। इस तकनीक का फायदा यह हुआ कि प्रयोग हो चुके इलेक्ट्रोलाइट के कम घनत्व में से भी एलएमई-ए ग्रेड का कैथोड प्राप्त किया जाने लगा। जो परम्परागत विधि से सम्भव नहीं था। कनाडा से एक और टैक्नोलॉजी एसिड प्युरीफिकेशन यूनिट (एपीयू) का आयात किया गया। इस तकनीक द्वारा एचसीएल की आइसीसी इकाई के रिफाइनरी के प्रयोग हो चुके इलेक्ट्रोलाइट में से अधिकतर एसिड (अम्लीय) अंश को अलग करके रीसाइकल किया जाने लगा। यह पर्यावरणीय-अनुकूल तकनीक अपशिष्ट में से तरल अंश को कम करने तथा आगे के क्रम में निकेल की रिकवरी करने में सहायक बनी। जानकारों का मानना है कि जो तकनीक दूसरी इकाइयों में लगाई गई उसी की जरूरत हमारी केसीसी को भी थी, लेकिन यहां तकनीक काम में नहीं ली गई।
यों तो किस्सा बन जाएगा केसीसी
-सबसे पहले उवर्रक कारखाना बंद किया गया। यहां सिंगल सुपर फास्फेट व ट्रिपल सुपर फास्फेट उर्वरक बनाया जाता था।
-दिसम्बर 2008 को एक साथ रिफाइनरी, स्मेल्टर व दोनों एसिड प्लांट बंद कर दिए गए। हमारी रिफाइनरी की क्षमता हर वर्ष 31 हजार टन शुद्ध तांबे का उत्पादन करने की थी। हर वर्ष करोड़ों रुपए की आय होती थी।
-वर्तमान में केवल कंस्ट्रेटर प्लांट ही चल रहा है। एसिड व उर्वरक प्लांट के अधिकांश हिस्सों को बेच दिया गया है। जबकि रिफाइनरी व स्मेल्टर प्लांट काम नहीं आने से खुद कबाड़ में तब्दील हो रहे हैं।
- केसीसी में वर्ष 1975 में उत्पादन शुरू हुआ तब नई तकनीक काम में ली गई थी। इसमें समय के साथ बदलाव नहीं किया गया। दूसरी इकाइयों में नई तकनीक काम में ली गई। हमारे संयंत्र को पहले कबाड़ बनाया गया, फिर मशीनरी कबाड़ के भाव बेच दी गई।
-बिडदूराम सैनी, रिटायर्ड खदान सुपरवाइजर
Published on:
05 Jun 2020 05:47 pm
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