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‘साहब’ से ‘नेताजी’

locationजयपुरPublished: Mar 13, 2019 10:01:08 pm

Submitted by:

Aryan Sharma

नौकरशाही के अनुभव का इस्तेमाल कर राजनीति में बना रहे अपनी पहचान, कई पूर्व अफसर बन गए सियासत का चेहरा

Jaipur

‘साहब’ से ‘नेताजी’

आर्यन शर्मा/जयपुर. राजनीति में आने के लिए इस साल जम्मू-कश्मीर में दो आईएएस अफसरों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। 2009 की भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में टॉप करने वाले आइएएस शाह फैसल ने सूबे में नए सिरे की सियासत के लिए जनवरी में अपना पद छोड़ दिया। वहीं फरवरी में आईएएस अधिकारी फारूक अहमद शाह ने इस्तीफा देकर नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के साथ अपनी राजनीतिक पारी शुरू दी।
यही नहीं, पिछले साल भारतीय प्रशासनिक सेवा 2005 बैच के अफसर और रायपुर के पूर्व कलक्टर ओ. पी. चौधरी भी अपने पद से इस्तीफा देकर राजनीति में आए। उन्होंने भाजपा के टिकट पर छत्तीसगढ़ की खरसिया सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए। नौकरशाही से राजनीति में अपनी जमीन तलाशने वाले अफसरों के ये तो हालिया उदाहरण हैं, लेकिन इससे पहले भी भारतीय राजनीति में बहुत से नौकरशाहों ने अपनी किस्मत आजमाई और उनमें से कई ऐसे हैं, जो आगे जाकर राजनीति के प्रमुख चेहरे बन गए। वहीं कुछ ऐसे भी रहे, जिनको राजनीति के पहले कदम पर ही विफलता का मुंह देखना पड़ा।
ब्यूरोक्रेसी में कमाया नाम, फिर राजनीति में भी छाए
कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा बिहार के मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के साथ काम करने के बाद आईएएस की नौकरी छोड़कर जनता पार्टी में शामिल हो गए थे और इस तरह उन्होंने अपनी जनीतिक पारी की शुरुआत की। वे अपने राजनीतिक कौशल से धीरे-धीरे भाजपा के प्रमुख नेता बन गए। उन्होंने बतौर वित्त और विदेश मंत्री अपनी राजनीतिक सूझबूझ का परिचय दिया, लेकिन पिछले साल अप्रेल में उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया।
वर्ष 2009 से 2014 तक लोकसभा स्पीकर रहीं मीरा कुमार राजनीति में आने से पूर्व भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) में थीं। वे 1985 में आईएफएस छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गईं। मीरा कुमार पांच बार लोकसभा सांसद रही हैं। यही नहीं, वे 2017 में राष्ट्रपति के पद के लिए यूपीए की उम्मीदवार थीं। वे केंद्रीय जल संसाधन, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री भी रह चुकी हैं। हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में सासाराम सीट पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर भी राजनीति में आने से पहले भारतीय विदेश सेवा में थे। वे कुछ समय तक पाकिस्तान में राजनयिक भी रहे। फिर उन्होंने कांग्रेस के साथ सियासी पारी शुरू की। वे यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे।
जोगी और केजरीवाल बन गए मुख्यमंत्री
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी इस मामले में एक बड़े उदाहरण के तौर पर देखे जा सकते हैं। उन्होंने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा को छोड़कर सियासत का रुख किया। वे कांग्रेस से जुड़ गए और धीरे-धीरे राजनीति में अपनी पैठ बनाते हुए वे छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री बने। इसके अलावा वे लोकसभा सांसद भी रहे हैं। कांग्रेस का साथ छूटने के बाद उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) पार्टी बनाई।
हाल के वर्षों में नौकरशाही छोड़कर राजनीति का प्रमुख चेहरा बनने वालों में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का नाम सबसे ऊपर आता है। अन्ना हजारे के साथ भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से वे चर्चा में आ गए। बाद में साल 2012 के आखिर में केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी का गठन किया। 2013 में वे दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री बने। 2014 में वे वाराणसी लोकसभा सीट पर भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी के खिलाफ चुनाव भी लड़े, हालांकि वह हार गए। फिलहाल वे दिल्ली के सीएम हैं।
सियासी दंगल में उतरे
भाजपा नेता अर्जुन राम मेघवाल ने भारतीय प्रशासनिक सेवा से ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सियासी पारी शुरू की। वे लगातार दो बार सांसद बन चुके हैं। उनके पास अभी केंद्रीय राज्य मंत्री के तौर पर जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण और संसदीय कार्य मंत्रालय है।
भारतीय राजस्व सेवा के उदित राज भी अपनी नौकरी से इस्तीफा देकर राजनीति में आए। 2014 लोकसभा चुनाव में वे उत्तर पश्चिम दिल्ली सीट से सांसद बने। लोकसत्ता पार्टी के संस्थापक और अध्यक्ष एन. जयप्रकाश नारायण ने भी प्रशासनिक सेवा से राजनीति में कदम रखा। उन्होंने 2006 में लोक सत्ता पार्टी बनाई और 2009 से 2014 तक आंध्र प्रदेश की कुकुटपल्ली विधानसभा सीट से विधायक रहे। वहीं आईएएस के. पी. रमैया स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर जनता दल (यूनाइटेड) से जुड़े। उन्होंने 2014 लोकसभा चुनाव में बिहार की सासाराम सीट से चुनाव लड़ा, मगर हार गए। आईएएस युद्धवीर सिंह ख्यालिया ने भी ऐच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर आम आदमी पार्टी के टिकट पर 2014 में हिसार सीट पर किस्मत आजमाई, लेकिन नाकाम रहे।
ये भी आए सियासत में
पी एल पुनिया, पूर्व गृह सचिव आर के सिंह, राष्ट्रपति के पूर्व सचिव क्रिस्टी फर्नांडीस, पूर्व रॉ प्रमुख संजीव त्रिपाठी, भागीरथ प्रसाद, चन्द्र पाल, मुनि लाल, आर एस पांडे आदि पूर्व आईएएस अफसर भी राजनीति में उतर चुके हैं।
आईपीएस भी पीछे नहीं
दिल्ली पुलिस के पूर्व कमिश्नर आईपीएस निखिल कुमार चौदहवीं लोकसभा में कांग्रेस के टिकट पर औरंगाबाद (बिहार) सीट से जीते। बाद में उन्होंने नगालैंड और केरल के राज्यपाल का जिम्मा भी संभाला।
मुंबई पुलिस के पूर्व कमिश्नर सत्य पाल सिंह ने वीआरएस लेकर भाजपा का दामन थामा। इसके बाद 2014 में उत्तर प्रदेश की बागपत सीट से जीतकर सांसद बने। अभी वे केंद्रीय राज्य मंत्री हैं। उनके पास मानव संसाधन विकास (उच्च शिक्षा) और जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय की जिम्मेदारी है।
राजस्थान के पूर्व पुलिस महानिदेशक सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी हरीश मीणा 16वीं लोकसभा में दौसा सीट पर भाजपा से सांसद बने। 2018 में राजस्थान विधानसभा चुनाव में वे कांग्रेस के टिकट पर देवली-उनियारा सीट से जीतकर विधायक बने। हरीश मीणा के भाई पूर्व आईपीएस अफसर नमोनारायण मीणा राजस्थान की टोंक-सवाई माधोपुर सीट से 2004 व 2009 में कांग्रेस से सांसद चुने गए। वे यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री रहे। हालांकि 2014 लोकसभा चुनाव में उन्हें दौसा संसदीय क्षेत्र में हार का सामना करना पड़ा। इनके अलावा पूर्व आईपीएस एम लालमंजुआला, अजीत जॉय, सुरेश खोपाडे, अजय कुमार, रामेश्वर ओरेन, विष्णु दयाल राम, अमिताभ चौधरी, आशीष रंजन सिन्हा, आर के हांडा, सुजीत कुमार घोष आदि भी आईपीएस अफसर से राजनीति के दंगल में उतरे।
सिस्टम से रहते हैं परिचित
लोकतंत्र में राजनीतिक संरचना सबसे महत्त्वपूर्ण है। मैंने अपने 13 वर्ष के ब्यूरोक्रेसी कॅरियर में अच्छा करने की कोशिश की। फिर लगा कि सिस्टम को बेहतर बनाने और जनता के करीब जाने के लिए राजनीति में आना चाहिए, क्योंकि राजनीति में आपके पास जनता के हित के लिए निर्णय लेने की ज्यादा पावर होती है। नौकरशाही से राजनीति में आने वालों के लिए यह फायदा होता है कि वे कहीं न कहीं सिस्टम से पहले से परिचित होते हैं। वैसे किसी भी क्षेत्र का व्यक्ति अच्छे उद्देश्य से राजनीति में आता है तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। इसके साथ ही युवाओं का प्रतिनिधित्व भी बढऩा चाहिए।
-ओ. पी. चौधरी, भाजपा नेता और पूर्व कलक्टर रायपुर
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