
पोकरण (जैसलमेर).पत्रिका न्यूज नेटवर्क. प्रदेश, देश या दुनिया का कोई भी यात्री यदि राजस्थान के जैसलमेर स्थित पोकरण आए और चमचम का स्वाद न ले.. ऐसा कम ही देखने को मिलता है। सरहदी जिले के पोकरण क्षेत्र की पहचान चमचम की नगरी के तौर पर भी खास तौर से है। करीब 70 वर्षों से कस्बे में बनाई जा रही इस मिठाई को लेकर क्रेज का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर दिन 400 किलो चमचम की बिक्री हो जाती है। वैसे, पोकरण में 50 से अधिक दुकानें स्थित है। त्योहारी सीजन यही बिक्री 8 से 10 क्विंटल तक हो जाती है। एक किलो चमचम के भाव 380 रुपए है। हर दिन करीब डेढ़ लाख रुपए तथा प्रति वर्ष करीब 5 से 7 करोड़ रुपए की चमचम की बिक्री होती है। पूर्व में केवल छेने की मिठाई के रूप में सादी चमचम ही तैयार होती थी। अब चमचम में केशर भी मिलाई जाती है।
पोकरण कस्बे में चमचम के प्रथम निर्माता हस्तीमल सेवग की ओर से इसे 7 दशक पूर्व पहली बार अपनी होटल पर प्रायोगिक तौर पर निर्माण किया गया था। करीब 70 वर्ष पूर्व रतनगढ़ निवासी सूरजमल स्वामी रेलवे में नौकरी करते थे, जिन्होंने सबसे पहले इस छेने की मिठाई के बारे में जानकारी दी तथा अपने हाथ से बनाने की विधि बताई। जिसके बाद सबसे पहले पोकरण में चमचम बनाने का कार्य हस्तीमल सेवग ने प्रारंभ किया।
एपीजे अब्दुल कलाम ने चखा स्वाद:
स्वर्णनगरी जैसलमेर जाने वाले पर्यटकों का पोकरण में ठहराव इसलिए भी होता है कि यहां रुककर प्रसिद्ध चमचम खरीद लें। जैसलमेर अथवा ग्रामीण क्षेत्रों से अपने रिश्तेदारों के यहां जाने वाले लोग भी पोकरण में रुककर चमचम लेना नहीं भूलते है। पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम हो या बॉलवुड के जाने-माने एक्टर जॉन अब्राहम, पोकरण प्रवास के दौरान उन्होंने यहां की चमचम का स्वाद चखा और जमकर तारीफ भी की।
...और तैयार हो जाती है चमचम:
चमचम बनाने के लिए दूध को फिटकरी से फाडकऱ उसका छेना तैयार किया जाता है। उसके बाद में उसको बेलनाकार आकार देकर शक्कर की चाशनी में पकाया जाता है। चाशनी में पकने के बाद उसके अंदर स्पंज की तरह जाली पड़ जाती है तथा ठंडा होने के बाद उस पर मावे का बुरादा लपेट कर बेचने के लिए रखी जाती है। करीब 1 किलो छेना बनाने के लिए 7 से 8 किलो दूध, 20 ग्राम फिटकरी, 1 तोला अरेटा व करीब 200 ग्राम मावे का बुरादा उपयोग लिया जाता है।
Published on:
29 Jan 2023 03:35 pm
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