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कॉलेज बनाने के लिए बेचा नवाब का जूता-ishwar chandra vidyasagar

कॉलेज बनाने के लिए बेचा नवाब का जूता-ishwar chandra vidyasagar

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जयपुर

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Tasneem Khan

Sep 26, 2019

कॉलेज बनाने के लिए बेचा नवाब का जूता-ishwar chandra vidyasagar

कॉलेज बनाने के लिए बेचा नवाब का जूता-ishwar chandra vidyasagar

जयपुर। बंगाल पुर्नजागरण काल की प्रमुख हस्ती और महान सामाजिक सुधारक ईश्वरचंद्र विद्यासागर का आज जन्मदिन है। 26 सितंबर 1820 को पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर जिले के एक गरीब परिवार में हुआ था। आपको बता दें कि बंगाल के साथ ही देश में कई बड़े सामाजिक आंदोलनों के अग्रणी रहे राजा राम मोहन राय के बाद उनके आंदोलनों को जारी रखने को श्रेय ईश्ववरचंद्र विद्यासागर को जाता है। उनके सामाजिक कार्यों से जुड़ा एक दिलचस्प वाकया यह भी है कि वे उन दिनों कलकत्ता यूनिवर्सिटी की स्थापना के लिए देशभर से चंदा जुटाने में लगे थे। इसी सिलसिले में वे एक दिन अयोध्या के नवाब के पास पहुंच गए और कॉलेज के लिए मदद मांगी। नवाब ने यह सुनकर विद्यासागर के दान के थैले में अपना जूता गिरा दिया। कोई और होता तो नवाब के इस व्यवहार से दुखी होता, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। बल्कि अगले दिन नवाब के महल के सामने ही उसी के जूते की नीलामी की गई। यहां नवाब के जूते की 1 हजार रुपये में नीलामी हुई, जो उनके समय में बड़ी रकम थी। उनका इस कदम के बारे में सुनकर नवाब ने तुरंत उन्हें अपने पास बुलाया। शिक्षा के लिए विद्यासागर की लगन देख नवाब खुश हुआ और उसने विद्यासागर को एक हजार रुपए की रकम और दान दे दी। इस तरह देशभर से चंदा इकट्ठा कर ईश्वरचंद्र ने कलकत्ता यूनिवर्सिटी की नींव रखी। आपको बतो दें कि इसी साल 15 मई को लोकसभा चुनावों के दौरान कोलकाता के जिस कॉलेज में उनकी मूर्ति तोड़ी गई, इस विद्यासागर कॉलेज की स्थापना भी 1872 में ईश्वर चंद विद्यासागर ने खुद की थी। कॉलेज को आज भी विद्यासागर के अथक प्रयास का जीवंत स्मारक माना जाता है।

प्रथाओं के खिलाफ खड़े रहे
वे 19वीं सदी के महान समाज सुधारकों में माने जाते हैं, इसीलिए उन्हें राजा राममोहन राय का उत्तराधिकारी कहा जाता है। इन्होंने महिलाओं की मुक्ति के लिए कई काम किए। बाल विवाह, बहु विवाह से लेकर सती प्रथा तक के विरोध में आवाज उठाई। वहीं स्त्री शिक्षा का पुरजोर समर्थन करते थे। उनके प्रयासों से ही विधवा विवाह को कानूनी दर्जा 1856 में कानूनी दर्जा मिला। कुरीतियों को खत्म करने और महिलाओं की समाज में स्थिति में बदलाव में उनका योगदान आज भी बंगाल में याद किया जाता है। कम ही लोग जानते हैं कि उनका नाम ईश्वर चंद बंदोपाध्याय था। लेकिन विभिन्न विषयों पर उनकी मजबूत पकड़ और ज्ञान के कारण उनके गावों के लोगों ने उनको विद्यासागर के नाम से पुकारना शुरू कर दिया। वे समाज सुधारक के साथ लेखक, शिक्षाविद् और संस्कृत के विद्वान थे। वहीं उनको आधुनिक बंगाली भाषा का जनक भी कहा जाता है। बंगाली की कई वर्णमालाओं में उन्होंने संशोधन किया।