
सविता व्यास
जयपुर। कछवाहा वंश की कुलदेवी के रूप में मशहूर जमवाय माता के प्रति सभी धर्मों के लोगों की आस्था गहरी है। जयपुर में स्थित जमवाय माता का देवी मंदिर अपने आप में कई इतिहास समेटे हुए है। यहां पर नवरात्र में सैकड़ों की संख्या में भक्तजन माता रानी के दर्शन के लिए आते हैं। राजस्थान में जमवाय माता का सबसे प्रचीन और पहला मंदिर जमवा रामगढ़ में है, जो रामगढ़ बांध से कुछ ही दूरी पर बना है। नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ता है। माता के दरबार में जयकारे लगाते हुए पदयात्री बड़ी संख्या में अपनी हाजरी लगाने आते हैं। भले ही जमवाय माता कच्छवाह वंश की कुल माता हैं, लेकिन अन्य वंश और जातियां भी माता के दरबार में दण्डवत धोक लगाने आते हैं। साथ ही माता को प्रसाद, पोशाक एवं 16 शृंगार का सामान भेंट करते हैं। मंदिर 350 वर्ष से लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है।
मन्नत का डोरा बांधते हैं श्रद्धालु
माता का मंदिर वट वृक्ष की छत्रछाया में है, जिस पर श्रद्धालु मन्नत का डोरा भी बांधते हैं। मंदिर के गर्भगृह के मध्य में जमवाय माता की प्रतिमा है। दाहिनी ओर धेनु और बछड़े जबकि बायीं ओर मां बुढवाय की प्रतिमा स्थापित है। मंदिर परिसर में शिवालय, चौसठ योगिनी, भैरव का स्थान, भगवान गणेश, भगवान हनुमान और भोमिया जी महाराज भी विराजमान हैं। राज्यारोहण और बच्चों के मुंडन संस्कारों के लिए कछवाहा वंश के लोग यहां आते हैं। राजा ने अपने अराध्य देव रामचंद्र और कुलदेवी जमवाय के नाम पर क्षेत्र का नाम जमवारामगढ़ रखा था। प्राचीन मान्यता के अनुसार राजकुमारों को निवास के बाहर तब तक नहीं निकाला जाता था, तब तक कि जमवाय माता के धोक नहीं लगवा ली जाती थी। वहीं कुछ लोगों की मान्यता है कि ये एक शक्तिपीठ भी है, जहां सती माता की तर्जनी उंगली गिरी थी।
रणक्षेत्र में माता ने राजा को दिए थे दर्शन
मंदिर के पुजारी बताते हैं कि दुल्हरायजी ने 11वीं सदी के अंत में मीणों से युद्ध किया। शिकस्त खाकर वे अपनी फौज के साथ में बेहोशी की अवस्था में रणक्षेत्र में गिर गए। राजा समेत फौज को रणक्षेत्र में पड़ा देखकर विपक्षी सेना जीत का जश्न मनाने लगी। रात्रि के समय देवी बुढवाय रणक्षेत्र में आई और दुल्हराय को बेहोशी की अवस्था में पड़ा देख उसके सिर पर हाथ फेर कर कहा- उठ, खड़ा हो। तब दुल्हराय खड़े होकर देवी की स्तुति करने लगे। इसके बाद माता बुढ़वाय बोली कि आज से तुम मुझे जमवाय के नाम से पूजना और इसी घाटी में मेरा मंदिर बनवाना। तेरी युद्ध में विजय होगी। तब दुल्हराय ने कहा कि माता, मेरी तो पूरी फौज बेहोश है। माता के आशीर्वाद से पूरी सेना खड़ी हो गई। दुल्हराय रात्रि में दौसा पहुंचे और वहां से अगले दिन आक्रमण कर दुश्मन की सेना को परास्त किया। रणक्षेत्र के उस स्थान पर दुल्हराय ने जमवाय माता का मंदिर बनवाया। इस घटना का उल्लेख कई इतिहासकारों ने भी किया है।
Updated on:
09 Apr 2024 02:48 pm
Published on:
09 Apr 2024 02:46 pm
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