
चुनावी साल में नक्सलियों के निशाने पर हैं जवान और राजनीतिक कार्यकर्ता
जगदलपुर. दो माह में छत्तीसगढ़ के बस्तर और राजनांदगांव में हुई 14 नक्सली वारदातों में 7 जवान और 3 भाजपा नेताओं सहित 10 लोगों की हत्या कर दी गई। प्रदेश में बढ़ी नक्सल हिंसा की घटनाओं ने पुलिस की नींद उड़ा दी है। जानकारों का मानना है कि लगातार तेज हो रहे नक्सली हमलों के पीछे एंटी नक्सल ऑपरेशन की कमी, कमजोर खुफिया सुरक्षा तंत्र, बलों की लापरवाही, फोर्स का एसओपी का पालन न करना तथा नक्सलियों की रणनीति का अनुमान न लगा पाना प्रमुख है। साल के अंत में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसलिए नक्सलियों के इन हमलों से सियासी दलों में भी हड़कंप मचा हुआ है।
हालांकि बस्तर आइजी सुंदरराज पी का कहना है कि बस्तर में नक्सलवाद खात्मे की ओर है। अंदरूनी इलाकों में सुरक्षाबलों के कैंप खुलने से उनकी गतिविधयों में अंकुश लग गया है, इस कारण वे बौखला गए हैं। अपना वजूद बचाने के लिए वे वारदातों को अंजाम दे रहे हैं।
सड़कों की नहीं हो रही डीमाइनिंग
अंदरूनी इलाकों की सड़कों और पुल-पुलिया में नक्सली आइईडी प्लांट करके रखते हैं जो कि न सिर्फ जवानों बल्कि आमजन के लिए भी घातक होता है। नक्सलगढ़ में अफसरों तथा नेताओं के हेलीकॉप्टर में दौरा करने के कारण सड़क मार्ग की सुरक्षा को लेकर लापरवाही सामने आ रही है। एक तो सड़कों की डीमाइनिंग बंद हो गई है। साथ ही गश्त में भी जवानों द्वारा लापरवाही बरती जाती है, जो घातक साबित होती है।
कैंप ज्यादा, लेकिन एंटी नक्सल ऑपरेशन में कमी...
सरकार बदलने के साथ ही नक्सल प्रभावित इलाकों में पुलिस की रणनीति भी बदल गई है। अब पुलिस नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन कम, लेकिन कैंप खोलने पर ज्यादा ध्यान दे रही है। पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार साल में बस्तर संभाग के सभी सात जिलों के अंदरूनी इलाकों में सुरक्षा बलों के 54 कैंप खुल चुके हैं, जिसमें सर्वाधिक 13 कैंप सुकमा में खोले गए हैं। इन कैंपों के बावजूद लोगों को सुरक्षा नहीं मिल पा रही है। जवान खुद भी सुरक्षित नहीं महसूस कर पा रहे हैं। शनिवार को जगरगुंडा थाने के कुंदेड़ कैंप के नजदीक ही नक्सली तीन जवानों की हत्या करने में सफल हो गए जबकि यहां कुछ दिन पूर्व ही कैंप खुला है, जिसमें 100 से अधिक जवानों की तैनाती भी है। बावजूद इसके नक्सली जवानों पर हमला करने में कामयाब हो गए।
नक्सलियों ने खामोशी से बढ़ाई ताकत...
बस्तर में नक्सलियों ने कुछ समय तक चुप्पी साध ली थी। इस दौरान इक्का-दुक्का वारदातों के अलावा कोई बड़ी वारदात को अंजाम नहीं दिया। वे सिर्फ अपना संगठन मजबूत करते रहे। नक्सलियों की इस खामोशी को उनके खात्मे का ***** मानकर फोर्स ने भी ऑपरेशन कम कर दिए और राजनीतिक दलों द्वारा क्षेत्र से उनके पलायन को लेकर श्रेय लेने की होड़ भी शुरू हो गई थी। अंदरूनी इलाकों में एसओपी का पालन बंद हो गया था। जहां पैदल गश्त किया जाता है, वहां धड़ल्ले से गाडिय़ों का उपयोग शुरू हो गया है। अब नक्सलियों ने जब अचानक हमले तेज किए तो सरकार और आला अफसर सकते में आ गए हैं।
Published on:
28 Feb 2023 07:04 pm
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