
Banned medicine
विकास जैन
जयपुर। सरकार का फोकस मरीजों को इलाज के भारी भरकम खर्च से मुक्ति दिलवाना है। इसीलिए राज्य के सरकारी अस्पतालों में निरोगी राजस्थान और सरकारी व निजी अस्पतालों में चिरंजीवी व आरजीएचएस जैसी योजनाएं शुरू की गई हैं। लेकिन इस बीच जेनरिक दवा के नाम पर मरीजों से मनमानी कीमत वाले महंगे ब्रांड की दवाइयां थमाने के मामले भी सामने आ रहे हैं। राजस्थान के सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए जेनरिक दवा ही लिखने का नियम बनाया हुआ है। सरकारी या निजी डॉक्टर जेनरिक दवा लिखते हैं और मरीज अस्पताल के काउंटर के बजाय निजी दवा दुकान पर दवा लेने जाता है तो कुछ विक्रेता महंगे ब्रांड की दवा मरीज को थमा रहे हैं।
राजस्थान पत्रिका ने इसकी पड़ताल की तो मनमानी कीमतों की पोल खुलकर सामने आ गई। सामने आया कि अधिकांश मरीज इस खेल को नहीं समझ पा रहे और कैमिस्ट की थमाई दवा को लेकर ही कई गुना कीमत चुका रहे हैं।
इस तरह खुली पोल
संवाददाता ने एक मरीज के लिए निजी अस्पताल में डॉक्टर से परामर्श लिया। डॉक्टर ने कुछ दवाइयां लिखी। दवा के लिए उसी अस्पताल में बने दवा स्टोर पर संपर्क किया। कैमिस्ट ने दवाइयां निकाली और उनकी कीमत करीब 325 रुपए बताई। संवाददाता कीमत चुकाने वाला ही था कि इसी दौरान वहां से निकल रहे डॉक्टर ने उनकी लिखी दवा ही देने की हिदायत कैमिस्ट को दी। इससे सकपकाए कैमिस्ट ने डॉक्टर के जाने के बाद कहा कि यह दवा यहां उपलब्ध नहीं है। संवाददाता हैरत में आया कि दवा निकालने और कीमत बताने के बाद दवा के लिए मना करने का कारण ? अंदर बने दूसरे स्टोर पर संपर्क कर दवा ली तो वही दवा 240 रुपए में उपलब्ध हो गई।
400 रुपए के इंजेक्शन के बताए 5 हजार
राजधानी के एक डॉक्टर ने मरीज को जेनरिक नाम से इंजेक्शन लिखा। वह पर्ची लेकर वह दवा दुकान पर गया तो उस इंजेक्शन के 5 हजार रुपए से अधिक बता दिए गए। मरीज के पास इतने पैसे नहीं थे, उसने वापस डॉक्टर से संपर्क किया तो वही दवा 400 रुपए में भी उपलब्ध हो गई।
इस तरह समझें खेल
- जेनरिक दवा जिस साल्ट से बनाई जाती है, उसे उसी साल्ट से जाना जाता है। ब्रांडेड दवा में भी वही साल्ट होता है, लेकिन दवा निर्माता कंपनियां उन्हें अपने-अपने अलग-अलग नाम से उन्हें बाजार में लाती हैं
- ब्रांडेड दवा निर्माता अपने ब्रांड की तमाम प्रमोशनल लागत और अपना मुनाफा भी उसमें जोड़ते जाते हैं, जिससे वह दवा जेनरिक की तुलना में कई गुना महंगी हो जाती है
- यह दवाइयां सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क उपलब्ध होती हैं, लेकिन निजी बाजार में इनकी कीमत पर कोई नियंत्रण नहीं होता
- सरकार ने भी आज तक जेनरिक दवा लिखने पर ही जोर दिया, लेकिन दवा की वास्तविक या अधिकतम कीमतें आज भी कई जेनरिक दवा के लिए तय नहीं है
- कीमत अंकित करने पर नियंत्रण नहीं होने से विक्रेता भारी डिस्काउंट का लालच भी मरीज को देते हैं, जबकि वास्तव में इतने डिस्काउंट के बाद भी वे कई गुना दाम वसूल रहे होते हैं
35 प्रतिशत दवाइयां मूल्य नियंत्रण के दायरे में नहीं
अभी सरकार मरीजों को सस्ती दवाएं उपलब्ध करवाने के दावे भले ही करती हो, लेकिन अभी भी मरीजों को ब्रांडेड दवाओं के नाम पर जमकर लूटा जा रहा है। अभी भी देश में आवश्यक दवा सूची में शामिल 870 दवाइयों में से 651 ही मूल्य नियंत्रण के दायरे में हैं। 35 प्रतिशत दवाइयां मूल्य नियंत्रण के दायरे में नहीं है। दवा कीमत नीति में राज्य सरकार की दखलंदाजी नहीं होने का फायदा दवा कम्पनियां जमकर उठा रही हैं। ब्रांडेड दवा कम्पनियां धड़ल्ले से एक ही दवा की अलग-अलग कीमतें वसूल रही हैं। कई दवाइयों में तो हजारों रुपए तक का अंतर है। दवा के दामों में भारी अंतर का कारण सभी आवश्यक दवाइयों पर दवा कीमत नीति लागू नहीं होना है।
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केन्द्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन नेशनल प्राइज कंट्रोल अथॉरिटी दवाओं कीमतें नियंत्रित करती हैं। अभी 651 दवाइयां कीमत नियंत्रण के दायरे में हैं। अप्रेल माह में ही दवाओं की कीमतों में 6 प्रतिशत तक की कमी की गई है।
अजय फाटक, औष धि नियंत्रण, राजस्थान
Published on:
09 Aug 2023 04:54 pm
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