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सभी के लिए पहुंच के साथ संग्रहालयों को बनाएं राष्ट्रीय प्राथमिकता

-अरिहान सिंहसंग्रहालय में आने वाला प्रत्येक आगंतुक बेहतर इंसान के रूप में सामने आता है और उसमें हमारे भविष्य को आकार देने की क्षमता होती है। आप मेरी पहल को आगे बढ़ाने में कैसे मदद कर सकते हैं? अपने नजदीकी संग्रहालय में एक दिन बिताकर शुरुआत करें।

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सभी के लिए पहुंच के साथ संग्रहालयों को बनाएं राष्ट्रीय प्राथमिकता

सभी के लिए पहुंच के साथ संग्रहालयों को बनाएं राष्ट्रीय प्राथमिकता

‘आपको आज अपनी दुनिया को समझने और भविष्य में आत्मविश्वास से चलने के लिए अपने इतिहास को जानने की जरूरत है’, मेरे पिता ने ये शब्द मुझसे तब कहे थे, जब वे पहली बार मेरे साथ गाइड के रूप में जयपुर में सिटी पैलेस संग्रहालय में गए थे। जब भी मैं किसी संग्रहालय में जाता हूं, ये शब्द सच हो जाते हैं।


कम उम्र से ही मुझे दुनिया भर के कुछ प्रतिष्ठित और सबसे अच्छे संग्रहालयों को देखने का सौभाग्य मिला है। पेरिस में लौवर, वेटिकन सिटी में वेटिकन संग्रहालय, विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय और लंदन में ब्रिटिश संग्रहालय का दौरा करना मेरे लिए रोमांचकारी रहा है। मैंने दिल्ली में राष्ट्रीय संग्रहालय, जोधपुर में मेहरानगढ़ किला संग्रहालय, जयपुर में सिटी पैलेस संग्रहालय और कोलकाता में भारतीय संग्रहालय की कई शैक्षिक यात्राएं भी की हैं। मेरे माता-पिता का आभार कि मैं संग्रहालयों के जरिए इस अद्भुत दुनिया के संपर्क में आ सका।


शुरुआत में मुझे संग्रहालयों में समय बिताने में रुचि नहीं थी, लेकिन जैसे-जैसे मैंने देखना और सीखना शुरू किया, धीरे-धीरे दिलचस्पी जागने लगी। जैसे-जैसे समय बीतता गया, मैं संग्रहालयों से सीखने लगा और उसके साथ स्कूल में अपनी पाठ्यचर्या-आधारित शिक्षा का संबंध बनाना शुरू किया। मैं अधिक से अधिक संग्रहालयों में जाने और भौतिक और आभासी रूप से दूसरों को इस अनोखी दुनिया का दीदार करवाने के लिए प्रतिबद्ध हूं।

इतिहास के बारे में जानने और हमारी सांस्कृतिक विरासत का जश्न मनाने के लिए संग्रहालय शानदार जगह हैं। संग्रहालय केवल इतिहास से संबंधित कलाकृतियों का संग्रह नहीं है। मानव सभ्यता के प्रत्येक विषय का अपना संग्रहालय है, जैसे भूविज्ञान, प्राणी विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, संगीत, युद्ध, खेल, कंप्यूटर, कला आदि। दुनिया भर में हजारों संग्रहालय हैं, जो आकर्षक चीजों को प्रदर्शित करते हैं। चीन इस क्षेत्र में अव्वल बनने का प्रयास कर रहा है और ऐसा ही संयुक्त अरब अमीरात, कतर और सऊदी अरब जैसे मध्य पूर्व के देश भी कर रहे हैं।


किसी संग्रहालय में होना ऐसा अनुभव है, जिसे सुखद बनाने की जरूरत है। इससे मिलने वाली शिक्षा और ज्ञान वास्तव में समृद्ध है। दुनिया भर के संग्रहालयों में जाने के बाद मेरे मन में यही विचार आता है कि हमें भारत में संग्रहालयों को बेहतर बनाने और इनकी संख्या को बढ़ाने की दिशा में काम करना चाहिए। संग्रहालय ऐसी जगह है, जो हमारे भीतर जिज्ञासा जगाती है। साथ ही हमें और अधिक सीखने के लिए प्रेरित और उत्तेजित करती है। संग्रहालय की खोज के व्यक्तिगत अनुभव को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। संग्रहालयों के लिए यह अहम है कि वे आगंतुकों के अनुभवों को बेहतर बनाएं। बदलाव की उल्लेखनीय कहानी मुंबई के दो महान संस्थानों अर्थात: काला घोड़ा, छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय और बायकुला में डॉ. भाऊ दाजी लाड संग्रहालय में देखी गई है। ये मुंबई के सबसे पुराने संग्रहालय हैं और इनका पुनरुद्धार सभी संग्रहालयों के लिए एक मिसाल है।


ऐसे कई बच्चे हैं, जिन्हें संग्रहालयों में जाने और समृद्धि का अनुभव करने का सौभाग्य नहीं मिला है। मेरा मानना है कि यह बदल सकता है। मैं पहल कर रहा हूं कि मेरी पीढ़ी के और अधिक बच्चे मेरे जैसे ही उत्साह के साथ संग्रहालयों का अनुभव करें। मुझे उम्मीद है कि वे इस अनुभव को दूसरों तक पहुंचाएंगे। मैं संग्रहालयों की दुनिया से अनभिज्ञ युवा छात्रों के लिए सीखने की यात्राओं और क्यूरेटेड अनुभवों को आयोजित करने का छोटा सा प्रयास कर रहा हूं। मेरा मानना है कि संग्रहालय की पहुंच को लोकतांत्रिक बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का लाभ उठाया जाना चाहिए। मुझे विश्वास है कि इसका हमारे समाज पर बड़ा प्रभाव पड़ेगा।


भारत के नागरिक के रूप में मुझे अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सभ्यता पर गर्व है। मेरा मानना है कि हमें ‘संग्रहालय महाशक्ति’ बनने की आकांक्षा रखनी चाहिए। इंटरनेट-आधारित प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ हमारे पास संग्रहालयों की दुनिया को कई और युवा छात्रों तक पहुंचाने का अवसर है। इमर्सिव म्यूजियम के अनुभवों तक अब सभी की पहुंच हो सकती है।

संग्रहालयों में न केवल सीखने का स्थान होने की क्षमता है, बल्कि ये सामाजिक केंद्र और स्कूलों का विस्तार भी है। वे सीखने का अनोखा अनुभव देते हैं, जो कहीं और नहीं मिल सकता। जब मैंने अपने सहपाठियों के साथ गुजरात में धोलावीरा का दौरा किया तो हम एक अनोखी स यता का अनुभव कर रहे थे, क्योंकि यहां 3000-1500 ईसा पूर्व के बीच पूर्व-हड़प्पा काल से लेकर उत्तर हड़प्पा काल तक 1500 से अधिक वर्षों के लिए एक ही स्थान पर निरंतर बस्तियों का प्रमाण है। लगभग 3500 साल पहले अपने अस्तित्व को समाप्त करने वाले इस शहर को एक छोटे संग्रहालय संग्रह ने जीवंत कर दिया। समूह चर्चा और सामाजिककरण का आनंद मजेदार था और मेरे दिमाग में आज भी कायम है।

अरिहान सिंह बॉम्बे इंटरनेशनल स्कूल में आठवीं कक्षा के छात्र हैं। भारतीय इतिहास में इनकी गहरी और विकासशील रुचि है। उनका मिशन सीखने के मंच के रूप में संग्रहालयों की शक्ति को जीवंत करना है।

उनसे Museumlearningnetwork@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।