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सर्दी में गरीबों की सेवा के लिए हरकत में आ जाता था पुण्य महकमा, महाराजा भेष बदलकर रात को निकलते थे दुख-दर्द जानने

आज की लोक कल्याणकारी सरकारें जयपुर रियासत के पुण्य महकमे से प्रेरणा लेकर गरीबों का भला कर सकती हैं। सभी विभागों में पुण्य महकमा ही ऐसा था जिस पर महाराजा का सीधा नियंत्रण रहता। शीत ऋतु आगमन के साथ ही सिटी पैलेस में मौज मंदिर सभा जुड़ती...

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जयपुर

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Dinesh Saini

Jan 09, 2020

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जितेन्द्र सिंह शेखावत

जयपुर। आज की लोक कल्याणकारी सरकारें जयपुर रियासत के पुण्य महकमे से प्रेरणा लेकर गरीबों का भला कर सकती हैं। सभी विभागों में पुण्य महकमा ही ऐसा था जिस पर महाराजा का सीधा नियंत्रण रहता। शीत ऋतु आगमन के साथ ही सिटी पैलेस में मौज मंदिर सभा जुड़ती। सभा में निर्धन वर्ग को सर्दी में बचाने व खान-पान की सामग्री बांटने के बारे में निर्णय होता। इसके तहत रेलवे स्टेशन पर रजिस्टर रखा जाता जिसमें बाहर से आने वालों के लिए सर्दी में ठहरने आदि की व्यवस्था को अंजाम दिया जाता। खासा कोठी का हाकिम गांवों से शहर में आने वालों के लिए रात को सराय, धर्मशाला और मंदिरों में ठहराने की व्यवस्था करता।

सर्दी में मरने वाले की परचा खबर जासूस भेजते। माधोसिंह के शासन में एक माली की तेज सर्दी से मृत्यु की गुप्तचर रिपोर्ट महाराजा को सवाई माधोपुर भेजी गई। उन्होंने प्रधानमंत्री ईशानचन्द्र मुखर्जी उर्फ हाथी बाबूजी से जवाब-तलब कर लिया। इतिहास के जानकार देवेन्द्र भगत के मुताबिक गलताजी में एक बुजुर्ग की मौत के मामले में प्रशासन में हडक़ंप मच गई। सर्दी से बचाव के लिए बेघरबारों को त्रिपाल बांटे जाते। गरीब तबके को सहारा देने के लिए सरकार के साथ धनाड्य वर्ग भी जुड़ जाता।

पुण्य महकमा चौराहों पर अलाव के लिए लकडिय़ों के ग_र डलवाता। सिरह ढ्योड़ी दरवाजे के सामने पुण्य महकमा के गोदाम से अन्न, गुड़ व ओढने की रजाइयों का वितरण होता। मिर्जा इस्माइल के समय पुण्य महकमा के हाकिम पं. गंगाधर त्रिवेदी की टीम जरुरतमंदों को अनाज, गुड़ आदि सुबह से रात तक बांटती। खाद्य सामग्री वितरण की व्यवस्था को राज का पेट्या के नाम से जाना जाता।

सवाई राम सिंह और माधोसिंह भेष बदलकर रात को दुख-सुख की जानकारी लेने निकल जाते। सवाई राम सिंह भेष बदल भांकरोटा पहुंचे और उन्होंने देर रात कई घरों में शरण मांगी। वे एक वृद्ध विधवा की कुटिया में रात को रहे। दूसरे दिन महाराजा ने इलाके के हाकिम को हटाया और एक धर्मशाला बनवा एक साधु को उसकी जिम्मेदारी सौंप दी। माधोसिंह दातुन कर पोशाक पहनते तब तक शहर के वृद्ध, बीमार असहाय विधवा आदि को बिना किसी जाति-धर्म के आधार पर अन्न और रजाइयों का वितरण हो जाता।

उन दिनों सर्दियों में सर्दी-जुकाम लगने पर लोग पीतल की चरी में चाय बेचने वाले से कुल्हड़ में चाय पीते। कांच के गिलास को नापाक समझा जाता था। सर्दियों में चूल्हे की आग में चढ़ी हांडी में पकते बाजरी के खीचड़े की खुशबू गली में महक जाती। गुडिय़ा शक्कर और देशी घी के साथ मिला खीचड़ा किसी स्वादिष्ठ व्यंजन से कम नहीं होता।