राहत: मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के नतीजों से हुआ सुधार
वाशिंगटन. दुनिया के बढ़ते तापमान के बीच ओजोन परत के छिद्र में कमी आई है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार दक्षिणी धुव्र के ऊपर ओजोन परत का छिद्र पिछले वर्ष की तुलना में इस साल सिकुड़कर 232 लाख वर्ग किलोमीटर रह गया। हाल के वर्षों में यह लगातार छोटा हो रहा है। धरती के सुरक्षा कवच में हो रहे इस सुधार से वैज्ञानिक उत्साहित हैं।
सैटेलाइट अध्ययन में पाया गया कि विगत पांच अक्टूबर को ओजोन परत में छिद्र का अधिकतम आकार 264 लाख वर्ग किमी तक पहुंच गया था। पिछले दो दशकों में छेद लगातार घट रहा है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के जरिए ओजोन को नुकसान पहुंचाने वाले पदार्थों के कम होने से यह छिद्र कम होता जा रहा है। 1987 में ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) को रोकने के लिए यह अंतरराष्ट्रीय समझौता किया गया था।
रासायनिक प्रतिक्रियाओं का प्रभाव
नासा के गोडार्ड अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र में अर्थ साइंसेज के मुख्य वैज्ञानिक पॉल न्यूमैन ने कहा, 'समय के साथ ओजोन परत का छिद्र लगातार कम होता जा रहा है।' दक्षिणी गोलार्ध में सर्दियों के अंत में सूरज उगने के साथ ही रासायनिक प्रतिक्रियाएं ओजोन परत को खत्म करना शुरू कर देती हैं।
हर साल बनता है छिद्र
वैज्ञानिक कई दशकों से ओजोन परत की निगरानी कर रहे हैं। अमरीका की नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार 2006 के बाद से इस साल यह छिद्र सबसे छोटे आकार तक सिकुड़ा है। ओजोन परत पृथ्वी से 15-40 किलोमीटर ऊपर मौजूद है। यह धरती को सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों से बचाती है। दक्षिणी धुव्र के ऊपर समताप मंडल में प्रतिवर्ष सितंबर में ओजोन परत का क्षय होने से यह छेद होने लगता है।