
संसद के बगीचे में रोपे जाएंगे रेगिस्तानी देसी अंगूर का दर्जा प्राप्त 'पीलू' के पौधे
एकदम मीठे रस भरे इस फल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसे अकेला खाते ही जीभ पर छाले पड़ जाते है, ऐसे में एक साथ आठ-दस पीलू खाने पड़ते हैं। हाल ही जैसलमेर के सांवता गांव के निवासी सुमेरसिंह भाटी ने सुखाए हुए पीलू दिल्ली की संस्था आई एम गुडग़ांव को भेजे है जो इसे पौधशाला में लगाकर इसके पौधों को संसद भवन के बगीचे सहित दिल्ली के कई अन्य महत्वपूर्ण बाग-बगीचों में लगायेगी।
भाटी ने बताया कि जैसलमेर सहित राजस्थान के लिए गर्व की बात है कि दिल्ली में रंग बिरंगे और रस भरे पीलू बाग-बगीचों की शोभा बढाएंगे। प्रो. श्यामसुन्दर मीणा ने बताया कि यह एक मरू पादप है और इसे यहां की जीवन रेखा भी कहा जाता है। अकाल और भीषण गर्मी के दौरान जब अधिकतर पेड़-पौधे सूख जाते है और उनमें पतझड़ शुरू हो जाता है, इस समय भी ये पौधा न सिर्फ हराभरा रहता है बल्कि फल भी देता है।इसमें विटामिन सी और कॉर्बोहाइड्रेडस भरपूर मात्रा में पाया जाता है। मीणा ने बताया कि इस पौधे की हरी टहनियां लगभग तीन हजार वर्षों से ग्रामीण क्षेत्रों में दांत साफ करने और इसके पत्तों को माउथ फ्रेशनर की तरह प्रयोग में लिया जा रहा है। ग्रामीण परंपरागत दवाई के रूप में भी इसके फल, फूल, पत्तियों का प्रयोग करते हैं।
रेगिस्तान के इस फल के बारे में प्रसिद्ध है कि यह पौष्टिकता से भरपूर होता है और इसे खाने से लू नहीं लगती। इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी होते हैं. औषधीय गुण के कारण महिलाएं पीलू को सुखा कर रख लेती हैं ताकि बाद में जरुरत पडऩे पर भी खाया जा सके। मारवाड़ में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष कैर और पीलू की जोरदार उपज होती है, उस वर्ष जमाना अर्थात मानसून अच्छा होता है।
Published on:
14 Jun 2020 08:54 pm
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