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कवियों ने ढाई घंटे तक बहाई वीर रस की अविरल धारा

आजादी के अमृत महोत्सव के तहत महाराणा प्रताप की 482 वीं जयन्ती के अवसर पर कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, राजस्थान संस्कृत अकादमी,जयपुर एवं भारत सेवा संस्थान की ओर से राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।

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जयपुर

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Rakhi Hajela

Jun 03, 2022

कवियों ने ढाई घंटे तक बहाई वीर रस की अविरल धारा

कवियों ने ढाई घंटे तक बहाई वीर रस की अविरल धारा

कवियों ने ढाई घंटे तक बहाई वीर रस की अविरल धारा
. आजादी के अमृत महोत्सव के तहत महाराणा प्रताप की 482 वीं जयन्ती के अवसर पर कला एवं संस्कृति विभाग, राजस्थान साहित्य अकादमी, उदयपुर, राजस्थान संस्कृत अकादमी,जयपुर एवं भारत सेवा संस्थान की ओर से राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया।सम्मेलन में गूंजी महाराणा प्रताप की शौर्य गाथा ने वहां मौजूद लोगों की नस-नस में जोश का संचार किया।
सम्मेलन में महाराणा प्रताप के शौर्य, साहस और पराक्रम को समर्पित रचनाओं का पाठ किया गया। इसमें देश के प्रसिद्ध ओजस्वी कवियों में पण्डित नरेन्द्र मिश्र ़, कर्नल वीपी सिंह, अब्दुल जब्बार , रामकिशोर तिवारी,राजकुमार बादल, दीपिका माही, अशोक चारण एवं विवेक पारीक ने शिरकत की। संचालन वीर रस के प्रख्यात कवि विनीत चौहान ने करते हुए बीच.बीच में अपनी रचनाएं भी सुनाईं।
मुख्य मंत्री अशोक गहलोत अपरिहार्य कारणों से समारोह में नहीं आ सके। कला एवं संस्कृति मन्त्री डॉ.बीडी कल्ला, राजस्थान लघु उद्योग विकास निगम के अध्यक्ष राजीव अरोड़ा, कला एवं संस्कृति विभाग की प्रमुख सचिव गायित्री राठौड़ और भारत सेवा संस्थान के सचिव गिरधारी सिंह बापना ने दीप जलाकर समारोह का उद्घाटन किया। इस मौके पर आए कवियों ने एक से बढकऱ एक रचनाएं पेश कीं, जिसकी वहां मौजूद लोगों ने जमकर सराहना की।

वह महाकाल का रौद्र रूप
रण चंडी का उन्मत्त हास, दशग्रीव दर्पहा का स्वरूप।।
शितिकण्ठ, शौर्य का शंखनाद,जनमेजय, जय का महाजाप।
पर्याय पराक्रम का, प्रवीर, रणधीर, वीर, राणा प्रताप।।- विवेक पारीक

कर्नल वीण्पीण् सिंह
वो पौरुष का दैदीप्य रूप,दावानल, वो शीतल समीर
वो कर्मनिष्ठ एकर्तव्यनिष्ठ,वो शक्तिपुंज,वो समर धीर
हिन्दू निष्ठा का दृढ़ प्रहरी, वो एकलिंग पर चढ़ा नीर
प्रेरणा पुंज, वो पुरुष श्रेष्ठ,राणा प्रताप, वो अभय वीर !- कर्नल वीपी सिंह


चेतक पर होकर सवार,राणा ने जब अगवानी की।
माटी पर शौर्य पराक्रम की, लिखने की शुरू कहानी की।
भृकुटी तन गई लाल आंखें, भाला के संग तलवार चली।
एक ही बार में ना जाने, कितनों के शीश उतार चली।।-राम किशोर तिवारी