
पहली से आठवीं कक्षा तक का छात्र लगातार बढ़ते बस्ते के बोझ से दबाता जा रहा है। उसकी नाजुक पीठ 5 से 11 किलो वजन तक पाठ्य पुस्तकें, उत्तरपुस्तिकाएं, ज्येमिति बॉक्स, एटलस, शब्दकोष, टिफन एवं पानी की बोतल के अतिरिक्त ढेर सारी आवश्यक-अनावश्यक वस्तुओं के बोझ से झुकती-टूटती कमर ने उसकी चाल तक बेढंगी कर दी है।
राजस्थान पत्रिका ने '18 किलो का बच्चा, 10 किलो का बैग' खबर प्रकाशित कर बच्चों की पीड़ा को बयां किया। समस्या की गंभीरता को ध्यान में रखते राजसमंद के कुछ प्रबुद्ध नागरिकों ने बढ़ते बोझ को कम करने के कुछ उपाए सुझाए हैं। इन उपायो पर अगर स्कूल प्रशासन अमल करे तो निश्चित ही बच्चों के नाजुक कंधों को राहत मिलेगी।
एकल पुस्तक चलाई जाए
प्लेगु्रप से पांच वर्ष तक के विद्यार्थियों की सम्पूर्ण शिक्षण सामग्री विद्यालय में ही रखी जाए। जिन विद्यालयों में मिड-डे-मिल की व्यवस्था नहीं है, वहां बच्चों को मात्र टिफिन बैग ही लाना हो। कक्षा एक से पांचवीं तक प्राय: बीस से अधिक पाठ नहीं होते हैं, सभी विषयों के पांच-पांच पाठों की एक संकलन पुस्तक बना ली जाए। जो प्रत्येक सामयिक परीक्षा के बाद घर पर रख दी जाए। और आगे की पढ़ाई के लिए फिर उसी तरह की संकलन पुस्तक हो। जिससे बच्चे को ढ़ेर सारी किताबों की जगह मात्र एक किताब का बोझ ही उठाना पड़े। उत्तरपुस्तिकाएं भी प्रत्येक विषय की मात्र 100-100 पृष्ठों वाली हों एवं सामायिक परीक्षा तक के लिए हों। भर जाने पर नई बनाने का विकल्प हो। विद्यालय में प्रायोगिक कार्य अधिक हों। जिससे बालक यथार्थ जीवन जी सके। विद्यालय में शुद्ध जल की अनिवार्यता हो ताकि पानी की बोतल का बोझ घट जाए। शिक्षण में श्रव्य, दृश्य संसाधनों पर बल दिया जाए। कक्षा 6 से 8 तक के छात्रों के लिए गृह कार्य एवं कक्षा कार्य की मात्रा बढ़ाई जा सकती है लेकिन विषय अध्ययन का स्वरूप एकल पुस्तक के माध्यम से ही होना चाहिए। जिससे बस्ते का बोझ कम किया जा सकता है।
-महेश कासट, पूर्व प्रधानाचार्य
स्कूल में दी जाएं किताबें
सभी बड़े स्कूलों में पाठ्यक्रम रोज नहीं बदला जाता। सभी स्कूलों के पास अच्छा फर्निचर भी है। स्कूल वालों को चाहिए कि वह किताबों का एक सेट प्रत्येक बच्चे की रैक में रख दें। तो बच्चे को पढऩे के लिए घर से केवल कॉपियां ही लानी पड़ेंगी। इससे बस्ते का बोझ कम हो जाएगा।
-राजेश जोशी, अभिभावक
स्लाइड शो के माध्यम हो पढ़ाई
स्कूलों में स्लाइड शो के माध्यम से पढ़ाई करवाई जाए। इससे बच्चों को किताबें स्कूल में लानी ही नहीं पड़ेंगी। साथ ही मल्टीपर्पज बुक दी जाएं ताकि गणित, विज्ञान, हिंदी, अंग्रेजी सभी विषयों को एक साथ नोटबुक में लिखा जा सके।
-अमित मिश्रा, अभिभावक
प्राइमरी पाठ्यक्रम सैद्धांतिक व क्रियाधारित
पाठ्यवस्तु को अलग करने व सप्ताह में चयनित दिनों में ही इन्हें पढ़ाने की व्यवस्था करने से भी बस्ते का बोझ कम किया जा सकता है। लेकिन यह परिवर्तन राजकीय इच्छा शक्ति पर आधारित है। साथ ही अभिभावक प्राइवेट स्कूल चुनते समय ग्लेमर से ज्यादा ग्लो पर ध्यान दें। सरकारी स्कूलों में हेडमास्टरों पर यह दबाव बराबर बनाए रखें कि वे समयबद्ध बच्चे की लर्निंग, आउटकम से उन्हे परिचित कराते रहें, वहां हमारे लिए च्वाइश नहीं है, लेकिन शैक्षिक जागरूकता हो तो अभिभावक अपनी आपेक्षा के अनुसार स्कूल प्रशासन को ढाल सकते हैं। बस ध्यान रहे जागरुकता राजनीति वाली रोटियां सेंकने की न हो।
-डॉ. राकेश तैलंग, पूर्व जिला शिक्षाधिकारी (माध्यमिक)
पढ़ाई के अनुसार किताबें मंगाई जाएं
स्कूल प्रबंधन बच्चों से रोजाना सारी किताबें मंगवाता है। जबकि सभी किताबें रोज नहीं पढ़ाई जा सकती, और न पढ़ाई जाती है। इसलिए स्कूलों और बच्चों के बीच समन्वय स्थापित किए जाएं ताकि जिस दिन जो विषय बढ़ाया जाना है उसकी किताबें, कॉपियां ही मंगाई जाएं। जिससे बैग का वजन काफी हद तक कम हो जाएगा।
-डॉ. नरेद्र पालीवाल
-धर्मचन्द्र गुर्जर, संचालक देव धेनु गोशाला सेमथलिया, ग्राम पंचायत आईडाणा
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