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राजस्थान चुनाव 2023: जयपुर में बागियों को मनाने में सफल रही भाजपा, यहां बढ़ी मुश्किलें

Rajasthan Election 2023: विधानसभा चुनाव में नाम वापसी के आखिरी दिन गुरुवार को पर्चा उठाने को लेकर काफी गहमागहमी रही। भाजपा ने जयपुर की सीटों पर अधिकतर बागी नेताओं को मनाने में कामयाब रहीं लेकिन दो सीटों पर बागी नेताओं को मनाने सफलता नहीं मिल पाई।

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जयपुर। विधानसभा चुनाव में नाम वापसी के आखिरी दिन गुरुवार को पर्चा उठाने को लेकर काफी गहमागहमी रही। भाजपा ने जयपुर की सीटों पर अधिकतर बागी नेताओं को मनाने में कामयाब रहीं लेकिन दो सीटों पर बागी नेताओं को मनाने सफलता नहीं मिल पाई। झोटवाड़ा में पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने वरिष्ठ नेताओं के हस्तक्षेप के बाद गुरुवार को नामांकन वापस ले लिया।

ये नेता माने, नाम वापस
वैसे तो जयपुर में झोटवाड़ा, सिविललाइंस, विद्याधरनगर और बस्सी में ही बगावत हुई थी और टिकट नहीं मिलने से नाराज होकर नेताओं ने चुनाव में नामांकन भर पार्टी के सामने चुनौती पेश कर दी थी। इसके बाद पार्टी ने डैमेज कंट्रोल शुरु किया और नेताओं को बागियों को मनाने की जिम्मेदारी दी। पार्टी ने कई जगह सफलता भी हासिल की। इनमें राजपाल शेखावत मान गए।

इसी तरह सिविललाइंस में रणजीत सिंह सोडाला और दिनेश सैनी ने अपना-अपना नामांकन वापस ले लिया। दोनों नेताओं ने टिकट नहीं मिलने पर अपना विरोध भी दर्ज कराया था। रणजीत सोडाला के समर्थकों ने तो भाजपा मुख्यालय पर जमकर प्रदर्शन किया था और केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का घेराव भी कर लिया था। विद्याधर नगर सीट पर भी बागी विष्णु प्रताप सिंह ने नाम वापस ले लिया है। अब इन सीटों पर कोई बागी नहीं बचा है।

ये बने आफत, नहीं हुए राजी
भाजपा को झोटवाड़ा में बागी आशु सिंह सुरपुरा को मनाने में सफलता नहीं मिल पाई और वे चुनाव मैदान में डटे हुए है। इसी तरह बस्सी सीट पर जितेन्द्र मीणा चुनाव लड़ रहे है। पार्टी ने उन्हें नामांकन वापस लेने के लिए दबाव भी बनाया लेकिन वो नहीं माने और अब चुनावी मैदान में उतर चुके है। मीणा पिछली वसुंधरा सरकार में बोर्ड चेयरमेन रह चुके है। पार्टी ने उन्हें टिकट न देकर रिटायर्ड आईएएस चंद्रमोहन मीणा को टिकट दिया है। इससे नाराज होकर जितेन्द्र मीणा ने निर्दलीय चुनाव लड़ने का एलान कर दिया है।

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पार्टी के लिए अब भी खतरा
भाजपा के जो सीटों पर बागी डटे हुए है उनसे पार्टी को खतरा भी लग रहा है। आशुसिंह सुरपुरा तो 2013 में चुनाव लडे़ थे और 18 हजार से ज्यादा वोट लिए थे। इसी तरह बस्सी में जितेन्द्र मीणा के खडे़ होने से भी पार्टी के सामने संकट हो सकता है। मीणा अनुसूचित जनजाति प्रकोष्ठ के अध्यक्ष भी है।