
फाइल फोटो-पत्रिका
जयपुर। राजस्थान गवर्नमेंट हेल्थ स्कीम (RGHS) और राजस्थान जर्नलिस्ट हेल्थ स्कीम (RJHS) जैसी योजनाएं अब सरकारी अस्पतालों में मरीजों की तकलीफें बढ़ा रही हैं। ओपीडी में इलाज कराने आए मरीजों को MRI, सीटी स्कैन, एंजियोग्राफी जैसी महंगी जांच करवाने के लिए बेवजह भर्ती होना पड़ रहा है, क्योंकि योजना का सॉफ्टवेयर केवल आइपीडी (इंडोर) में भर्ती मरीजों की जांचों का ही भुगतान करता है।
इस तकनीकी खामी के कारण अस्पतालों के इंडोर वार्डों पर अनावश्यक बोझ बढ़ गया है और जरूरतमंद मरीजों को बेड मिलने में परेशानी हो रही है। यह समस्या बुजुर्ग पेंशनर्स और सरकारी कर्मचारियों के लिए और भी अधिक परेशान करने वाली साबित हो रही है।
जनाधार से जुड़ाव के कारण जैसे ही मरीज की पर्ची बनती है, सिस्टम उसे आरजीएचएस या आरजेएचएस लाभार्थी के रूप में चिह्नित कर लेता है। इससे ओपीडी सेवाएं 'शून्य' दर्शाई जाती हैं और मरीज को भर्ती हुए बिना जांच संभव नहीं होती। बेड उपलब्ध न होने पर मरीजों को काफी परेशानी होती है।
आरजेएचएस योजना में निजी अस्पतालों में ओपीडी सुविधा उपलब्ध नहीं है, ऐसे में पत्रकारों को नि:शुल्क ओपीडी इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ता है लेकिन वहां भी सॉफ्टवेयर की बाध्यता के चलते उन्हें ओपीडी में जांच नहीं दी जा रही। एसएमएस अस्पताल में एक आरजेएचएस लाभार्थी को एमआरआइ और सीटी स्कैन की सलाह दी गई, लेकिन जनाधार लिंक होने से पर्ची नहीं बन सकी और उन्हें भी भर्ती होने को कहा गया।
चिकित्सकों का कहना है कि इस तकनीकी अड़चन के चलते इंडोर वार्डों में बिना जरूरत के मरीज भर्ती हो रहे हैं, जिससे संसाधनों पर दबाव और वास्तविक जरूरतमंदों को परेशानी हो रही है। वहीं मरीजों का कहना है कि जिन योजनाओं से राहत मिलनी चाहिए थी, वे अब चक्कर और इंतजार की वजह बन रही हैं।
आरजीएचएस में सामने आई अनियमितताओं के बाद कुछ महंगी जांचों के लिए इंडोर अनिवार्य किया गया है। सभी पर्चियां सॉफ्टवेयर से बनती हैं और जनाधार से जुड़े कार्ड योजना का लाभ तय करते हैं। यही प्रक्रिया लागू है। -डॉ. दीपक माहेश्वरी, प्राचार्य एवं नियंत्रक, एसएमएस मेडिकल कॉलेज
Published on:
03 Aug 2025 10:26 am
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