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रिश्ते ‘वर्क इन प्रोग्रेस’ जैसे, उन्हें रोज संवारना पड़ेगा: शबाना आजमी

-फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर की ओर से आयोजित कार्यक्रम 'शेड्स ऑफ लाइफ' में बोलीं एक्ट्रेस

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जयपुर

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Mohmad Imran

Jul 06, 2023

रिश्ते 'वर्क इन प्रोग्रेस' जैसे, उन्हें रोज संवारना पड़ेगा: शबाना आजमी

रिश्ते 'वर्क इन प्रोग्रेस' जैसे, उन्हें रोज संवारना पड़ेगा: शबाना आजमी

जयपुर। 'किसी भी कलाकार के लिए उसकी प्रेरणा और ऊर्जा का स्रोत जिंदगी होना चाहिए। हमारी जिंदगी में कुछ ऐसे लोग होते हैं, जो हमें इस स्रोत से दूर ले जाते हैं। आगे बढऩे की जद्इो जहद में हम कहीं न कहीं जिंदगी के साथ इस कनेक्शन को खोने लगते हैं। हमें अपने आस-पास मौजूद लोगों से सीखने की जरूरत है।' यह कहना था थियेटर आर्टिस्ट, फिल्म एक्ट्रेस और सोशल एक्टिविस्ट शबाना आजमी का। शबाना फिक्की फ्लो जयपुर चैप्टर की ओर से आयोजित कार्यक्रम 'शेड्स ऑफ लाइफ' में चेयरपर्सन नेहा ढड्डा के साथ अपनी जिंदगी के अलग-अलग शेड्स पर खुलकर बातें कीं।

रिलेशनशिप पर बोलीं रिश्तों को दें तवज्जो
रिश्तों की अहमियत पर बोलते हुए शबाना ने कहा, 'हम जिन लोगों के सबसे करीब होते हैं, एक वक्त के बाद हम उन्हें तवज्जो देना बंद कर देते हैं। हम दूसरों के साथ अपने रिश्तों की तो परवाह करते हैं, लेकिन हमारे करीबी लोगों की उन कोशिशों को सराहना बंद कर देते हैं, जो वे हमारे और परिवार के लिए करते हैं। इस प्रक्रिया में हम अपने लोगों से जुड़ाव खोने लगते हैं। मेरा मानना है कि कोई भी रिश्ता 'वर्क इन प्रोग्रेस' के आईडिया पर चलता है। अगर हम रिश्तों पर काम करना बंद कर दें, तो इसे ,खुश्क होने में वक्त नहीं लगता। महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनना चाहिए, ताकि उन्हें 'अपने होने का अहसास' भी हो।

आर्ट फिल्मों के लिए किया कमर्शियल सिनेमा
मैंने कॉमर्शियल सिनेमा और आर्ट फिल्मों दोनों में काम किया है। कॉमर्शियल फिल्में करने का एक बड़ा कारण यह भी था कि जब मैं 'स्टार' बन जाऊंगी, तो कम से कम इसी वजह से लोग मुझे पैरेलल सिनेमा में देखने के लिए सिनेमाहॉल चले आएंगे, जिससे आर्ट फिल्मों को रेवेन्यू मिल सके। हमारे दौर के मुकाबले आज महिलाओं के किरदारों में ज्यादा गहराई और वरायटी है। मीना कुमारी और नूतन जी ने कुछ अच्छी महिला प्रधान फिल्में कीं, लेकिन आज महिलाओं को पर्दे पर पहले से ज्यादा स्पेस मिला है। एक समय था जब हिंदी सिनेमा की हीरोइन को ऐसा दिखाया जाता था कि वह सिर्फ शिफॉन साड़ी पहनकर केवल डांस करना जानती है, जबकि भारतीय महिलाएं अपने परिवार की धुरी होती हैं। ओटीटी की वजह से आज यह बदल गया है। अब नई एक्ट्रेस भी अच्छे रोल और वीमन ओरिएंटेड सिनेमा की मांग करने लगी हैं।

फिल्म ने दिया ज़िंदगी को 'अर्थ'
जब मैंने 'अर्थ' फिल्म की तो, उसके बाद महिलाओं के समूह मेरे घर आते थे और अपनी शादीशुदा जिंदगी की परेशानियों के हल पूछते थे। तब मुझे लगा कि हमारा काम कितना महत्वूर्ण है और तब से मैं महिला सशक्तीकरण के लिए अपने पिता के बाद उनकी मिजवां वेलफेयर सोसायटी से जुड़कर ग्रामीण भारत में महिलाओं और लड़कियों के लिए काम कर रही हूं। वहीं थियेटर पर कहा कि वह कभी किताबें और थियेटर मुफ्त में नहीं लेतीं। अपनी लीगेसी पर कहा फिक्की फ्लो मेंबर वृन्दा कोठारी ने जब उनसे पूछा कि वह किस तरह की विरासत देकर जाना चाहेंगी, तो शबाना ने कहा, 'जो विरासत मुझे मेरे माता-पिता से मिली है, मैं उसी को अपनी विरासत मानती हूं। उनका कहना था कि कला को सामाजिक बदलाव के उपकरण के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए। मुझे लगता है कि हमसे हर एक सामाजिक बदलाव का पर्याय बन सकता है, जरूरत सिर्फ प्रेरणा हासिल करने की है। और यह बदलाव लाने के लिए पूरी दुनिया को बदलने की जरूरत नहीं है, एक इंसान की जिंदगी में छोटा सा बदलाव भी फर्क ला सकता है।