
जयपुर. आज शिक्षक दिवस है। समय के साथ गुरु का स्थान तो वही है, लेकिन विद्यार्थियों के साथ उनकी 'कैमिस्ट्रीÓ बदल गई है। अब 'रोबो गुरुजीÓ भी स्टूडेंट्स की 'क्लासÓ ले रहे हैं। अब शिक्षक सिर्फ गुरु नहीं रहे बल्कि मेंटर की भी भूमिका भी निभा रहे हैं। गुर-शिष्य के इस बदले समीकरण पर हमने बात की रोबोटिक्स एक्सपर्ट भुवनेश मिश्रा और डॉ. नीलिमा मिश्रा से। दोनों ने बीते तीन साल में 8 प्रकार के 97 रोबोट बनाए हैं। इनके दो नर्स सर्विस रोबोट कोविड के समय एसएमएस अस्पताल में और करीब 50 गुजरात में लोगों की जान बचा रहे थे।
मिश्रा ने बताया कि वह पहले वर्कशॉप, सेमिनार आदि के जरिये स्टूडेंट्स और युवा उद्यमियों को रोबोटिक्स पढ़ाते थे। वह कहते हैं, जब मैं रोबोट बनाता था तो मैं उनका गुरू था। अब वे खुद स्टूडेंट्स को पढ़ाने का काम कर रहे हैं। स्टूडेंट्स को भी 'रोबो गुरुजीÓ का ज्ञान पसंद आ रहा है। 7-8 'टीचर रोबोट्सÓ कॉर्पोरेट सेक्टर में प्रशिक्षण दे रहे हैं। कुछ रोबोट, अपने जैसे रोबोट भी बना रहे हैं।
-इसरो के पूर्व एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. राम रतन ने बताई गुरु की जीवन में अहमियत
इसरो में जो सीखा, वही छात्रों को सिखाने का प्रयास
जयपुर। 'शिक्षक की दिखाई दिशा ही विद्यार्थी की सफलता की सीढ़ी होती है। मैं जब इसरो में था, तब वहां मैंने जिन वैज्ञानिकों के नेतृत्व में काम किया, उन्होंने एक शिक्षक के रूप में जीवन और कॅरियर में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। 'शिक्षक दिवस पर 'टीचर' के महत्व को रेखांकित करते हुए यह कहना था इसरो के पूर्व एसोसिएट डायरेक्टर डॉ. राम रतन का। डॉ. रतन 'चंद्रयान 1, 'आदित्य एल 1' से पहले सौर मिशन के लिए शुरुआती ब्रेन स्टोर्मिंग टीम का भी हिस्सा रहे। शिक्षक दिवस पर प्लस से खास बातचीत में उन्होंने बताया, 'बीस साल पहले जब मैं इसरो में आया तब डॉ. कस्तूरी रंगन जी वहां के चेयरमैन थे। ऐसे ही डॉ. यू.आर. राव और डॉ. जॉर्ज जोसफ के साथ भी काम किया। इन सभी से मैंने काफी कुछ सीखा। चंद्रयान १ में मैंने सैटेलाइट्स के सर्विलेंस कैमरे बनाए। चंद्रयान १ मिशन में मैं एसोसिएट प्रोग्राम डायरेक्टर भी था। चंद्रयान १ की सफलता पर उस समय के गुजरात सीएम नरेन्द्र मोदी ने हम सबको डिनर भी दिया था। आदित्य एल-१ का शुरुआती प्रोजेक्ट हमने कस्तूरी रंगन जी के समय करीब २५ साल पहले शुरू किया था, जिसका मुख्य उद्देश्य सीमा और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्र में काम करना था। मैं इसके शुरुआती मॉडल डिजाइन में भी था। मेरे पढ़ाए बच्चे आज इसरो में 12 से 16 घंटे काम कर रहे हैं। जयपुर में जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी में पढ़ाते हुए मैं इसरो में सीखे अनुभव के आधार पर बच्चों को ग्रूम कर रहा हूं। बच्चों को मोटिवेट करना जरूरी है। इसरो में भी हमारा यही प्रयास रहता था। सेम कॉन्सेप्ट हम यहां ट्राय कर रहे हैं। हमारी कोशिश है कि युवा प्रतिभा को इतना सक्षम बनाएं कि हर साल हमारे एक-दो नोबल प्राइज आएं।'
Published on:
05 Sept 2023 12:15 am
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