
सूट का वजन करीब 13 किलो है। सात परतों में तैयार इस सूट पर आग, हवा, पानी और ब्रह्मांड के दबाव का भी कोई असर नहीं होगा और यह पंचर भी नहीं होगा। सूट में करीब 200 से अधिक पुर्जे व यंत्र हैं जो अंतरिक्ष यात्रियों को इसरो के हेडक्वार्टर से जोड़कर रखेंगे।
20 जुलाई 1969 को अमरीकी स्पेस एजेंसी ने 'अपोलो लूनर मॉड्यूल ईगल' यान से चाँद पर इंसान के पहले क़दम कमांडर नील आर्मस्ट्रांग और स्पेसक्राफ्ट पायलट बज्ज एल्ड्रिन को उतारा था। इस ऐतिहासिक क़दम के हाल ही 50 साल पूरे हुए हैं। स्पेस में जाने की तैयारी तो इंसान ने 1930 के दशक से ही शुरू कर दी थी लेकिन वहाँ की ग्रहीय परिस्थितियों और वातावरण में इंसानी शरीर को सुरक्षित रखने के लिए एक ख़ास स्पेस सूट के बिना यह संभव ही नहीं था की हम चाँद पर कभी उतर भी पाते। 1960 में द्वितीय विश्व युद्ध में फाइटर प्लेन पायलट्स के सूट के आधार पर पहला आधिकारिक स्पेस सूट बनाया गया। नासा ने इसे मर्क्युरी सूट नाम दिया। इसके बाद कई सूट बने और हर बार तकनीक बेहतर और वजन हल्का होता गया। इस खबर में आइये जानते हैं की 50 सालों में स्पेस सूट में क्या क्या बदलाव आये हैं। वहीँ बीते साल प्रदर्शित हुए भारत के पहले स्वदेशी गगनयान 2022 के भारतीय स्पेस सूट के बारे में भी जानिये। आइए जानते हैं चांद पर मानव के पहले कदम से अब तक इन पांच दशकों में स्पेस सूट और उसकी तकनीक में क्या-क्या बदलाव आए हैं।
द्वितीय विश्वयुद्ध के पायलट सूट से बना मर्करी सूट (1960)
सूट को अंतरिक्ष में उपयोग करने के लिए डिजाइन नहीं किया गया था। बल्कि इसे आपातकालीन स्थिति के मामले में अंतरिक्ष यात्रियों की मदद करने के लिए बनाया गया था। सूट का रंग सिल्वर इसलिए था कि किसी भी आपातकालीन स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को चांद के अंधकारमय माहौल में आसानी से ढूंढा जा सके। 1960 के दशक में विकसित मर्करी सूट में लगा बायोमीट्रिक कनेक्टर यात्रियों की दिल की धड़कन, शरीर का तापमान और पल्स रेट पर नजर रखने के लिए था ताकि वैज्ञानिक चांद पर शरीर की प्रतिक्रिया जान सकें।
47 माप अपोलो सूट में (1969)
अपोलो मिशन में के लिए बनाया गया यह कस्टम सूट 47 अलग-अलग मापों पर आधारित था। सूट में लगी पाइप के जरिए ऑक्सीजन, संचार और विद्युत प्रणालियों के कनेक्शन के साथ शरीर के तापमान को स्थिर रखने में मदद करने के लिए पानी सप्लाई किया जाता था। हेलमेट ऐसा था कि यात्री नीचे देख सकें और ठोकर खाकर गिर न पड़े।
'पंपकिन सूट' भी खास (1986)
एडवांस क्रू स्पेस सूट का अंतरिक्ष यात्रियों ने 1990 के दशक के मध्य में स्पेस शटल के अंदर और पृथ्वी पर लौटने के दौरान उपयोग करना शुरू कर दिया था। इसके चटकीले संतरी रंग के कारण इसे 'पम्पकिन सूट' भी कहा जाता है। सूट की खासियत यह थी कि अंतरिक्ष यात्री सूट में दबाव खोए बिना अपने दस्ताने उतारने में सक्षम थे।
7 किलो का बोइंग सूट (2011)
बोइंग सूट हल्का डिजाइन किया गया था। सूट में दस्ताने, जूते और सिर की सुरक्षा के साथ, सूट का वजन महज 7 किलो है जो एडवांस्ड क्रू एस्केप सूट के वजन का लगभग आधा है। अंतरिक्ष यात्री इसे पूरे मिशन के दौरान पहन सकते हैं। इसके ग्लव्स को टच स्क्रीन का उपयोग करने के लिए बनाया गया है। यह सूट अग्निरोधी है।
3 डी प्रिंटेड हेलमेट वाला स्पेस एक्स सूट (2018)
एलन मस्क की स्पेसएक्स कंपनी का बनाया सूट सर से पांव तक एक ही टुकड़े से बना है। इसमें जूते, हेलमेट और दस्ताने सभी जुड़े हुए हैं। इस सूट का एक शुरुआती प्रोटोटाइप बीते साल स्पेस एक्स के परीक्षण कार्यक्रम के दौरान एक पुतले को पहनाकर अंतरिक्ष में उड़ाया गया था। यह सूट पूरे मिशन के दौरान पहना जा सकता है।
भारत का स्वदेशी स्पेस सूट (2018)
देश के महत्वकांक्षी गनयान मिशन 2022 के लिए इसरो ने जो स्पेस सूट तैयार कराया है वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज्य गुजरात के अहमदाबाद में स्थित की श्योर सेफ्टी कंपनी में तैयार हुआ है। मेक इन इंडिया योजना के तहत तैयार इस सूट को बनाने में कंपनी को करीब चार साल का वक्त लगा और एक सूट पर करीब दस लाख रुपए खर्च हुए हैं। कंपनी को कुल तीन स्पेस सूट तैयार करने हैं जिसमें दो सूट तैयार हो चुके हैं। सूट का वजन करीब 13 किलो है। सात परतों में तैयार इस सूट पर आग, हवा, पानी और ब्रह्मांड के दबाव का भी कोई असर नहीं होगा और यह पंचर भी नहीं होगा। सूट में करीब 200 से अधिक पुर्जे व यंत्र हैं जो अंतरिक्ष यात्रियों को इसरो के हेडक्वार्टर से जोड़कर रखेंगे। सूट में बायोमेट्रिक सिस्टम और वॉल्व लगे हैं जिससे एयर और ऑक्सीजन सप्लाई होगी। सूट पर अशोक स्तंभ के साथ देश का झंडा और इसरो का प्रतीक चिन्ह लगा है। पहले ऐसे सूट अमरीका और रूस से करोड़ों की कीमत में खरीदे जाते थे। इसरो के पहले ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम (एचएसएफपी) मिशन सफल होने के बाद भारत विश्व का चौथा देश होगा जिसके पास मानव मिशन पूरा करने का ताज होगा। अभी अमरीका, चीन और रूस के पास ये रेकॉर्ड है।
नौ हजार करोड़ खर्च होंगे गगनयान मिशन पर
मिशन पर कुल करीब नौ हजार करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। इसरो ने अपने पहले ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम (एचएसएफपी) की योजना तैयार कर ली है। इसरो को फिलहाल दो हजार करोड़ रुपए की जरूरत है जिसके लिए उसने केंद्र सरकार व तीन संस्थाओं को पत्र लिखा है। मिशन पर निगरानी बेंगलुरु के पिन्या स्थित टेलीमेट्री, ट्रैकिंग एंड कमांड नेटवर्क से होगी। श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट, सतीश धवन स्पेस सेंटर से मानव मिशन प्रक्षेपित होगा। इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन ने कहा है कि गगनयान मिशन की बदौलत पूरे देश में 15 हजार लोगों को नौकरी मिलेगी। इसमें से 13 हजार लोगों को निजी क्षेत्र में नौकरी मिलेगी। इस अभियान के फलस्वरूप भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ 900 अतिरिक्त लोगों को भी काम करने का मौका मिलेगा।
Published on:
28 Jul 2019 04:08 pm
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