
विकास जैन
जयपुर. शुद्ध के लिए युद्ध अभियान को मजबूती देने के लिए मुख्यमंत्री की मंशा पर शुरू की गई मुखबिर योजना भी अनसेफ और अमानक के खेल की भेंट चढ़ने लगी है। इस योजना के तहत प्रदेश भर में मुख्यमंत्री के फोटो सहित बड़े-बड़े होर्डिंग लगाकर मुखबिर को 50 हजार रुपए की राशि दिए जाने का प्रचार किया जा रहा है। मुखबिर के जरिये सूचना के बाद जयपुर के एक मामले में घी और अलवर के एक मामले में पनीर में मिलावट पाई गई, लेकिन इन्हें अनसेफ के बजाय अमानक श्रेणी का बताकर 5-5 हजार रुपए की राशि थमाई गई।
खाद्य सुरक्षा आयुक्तालय का तर्क है कि 50 हजार रुपए की राशि अनसेफ श्रेणी में ही दी जाएगी। हालांकि प्रदेश में लगाए गए होर्डिंग में इसका जिक्र नहीं है और प्रचार 50 हजार रुपए का ही किया जा रहा है।
कानून से ज्यादा मिलावटखोरों के अधिकार हावी
राज्य में मुखबिर योजना की आधिकारिक शुरूआत के बाद कई जिलों से मुखबिरों के जरिये मिलावट की सूचना मिलने लगी। लेकिन पहली राशि जारी करने में ही करीब तीन महीने का समय लगा। अधिकारियों के मुताबिक सूचना मिलने के बाद उसकी आयुक्तालय के स्तर पर रैकी करवाई जाती है। उसके बाद सैंपल लिया जाता है। रिपोर्ट में 14 दिन के बाद मिलावटखोर के पास अपील के भी अधिकार होते हैं। सारी प्रक्रिया पूरी होने में लंबा समय लगता है। इसके बाद ही राशि जारी की जा सकती है।
अधिकारी बोले...रैफरल लैब के सहारे मिलावटखोर डरते ही नहीं
राजस्थान पत्रिका में रविवार के अंक में दूध, नमक, दाल, घी और पनीर में मिलावट भी नहीं मान रहे अनसेफ शीर्षक से समाचार प्रकाशित होने के बाद राज्य के खाद्य सुरक्षा अधिकारियों ने कहा कि राज्य लैब से अनसेफ श्रेणी की रिपोर्ट मिलने के बाद अधिकांश मिलावटखोर रैफरल लैब जाते हैं और उन्हें पूरा भरोसा रहता है कि वहां उनकी रिपोर्ट अमानक में बदल जाएगी। इस लैब के सहारे तो उन्होंने राज्य की रिपोर्ट से डरना भी छोड़ दिया है। गौरतलब है कि अनसेफ में सजा और अमानक में पैनल्टी देकर छूटने का प्रावधान है।
Published on:
16 Jan 2023 04:11 pm
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