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जैसलमेर

मरू लोक सांस्कृतिक हो पर्यटन

-लक्ष्मीनारायण खत्री, साहित्यकार व पर्यटनविद

जैसलमेरSep 27, 2021 / 12:35 pm

Deepak Vyas

मरू लोक सांस्कृतिक हो पर्यटन

मरू लोक सांस्कृतिक हो पर्यटन


जैसलमेर. मरू प्रदेश की लोक संस्कृति का सौंदर्य दर्शनीय है। विश्व के कला एवं पर्यटन प्रेमियों के लिए यह इलाका पुरानी जीवंत सभ्यता विरासत का खजाना है। एस सीमांत इलाके के चप्पे-चप्पे में रीति-रिवाज, त्यौहार, गीत संगीत, नृत्य, परिधान, आभूषण, मूर्तिकला, हस्तशिल्प, कृषि एवं पशुपालन, झोपड़ों में बसा जनजीवनए, लोक देवी देवताओं के मंदिर, शिलालेखों इत्यादि में लोक कला की अनुपम झलक देखने को मिलती है। यदि थार इलाके की लोक संस्कृति पर्यटन को देश एवं विश्व के सामने पेश किया जाए तो ग्रामीण इलाके में घर बैठे लोगों को रोजगार से संपन्नता आ सकती हैं। जहां तक बात जैसलमेर के पर्यटन व्यवसाय की है यहां का सोनार किला, हवेलियां, जैन मंदिर, कुलधरा तथा खाभा, सम एवं खूड़ी के धोरों में ऊंट की सफारी इत्यादि का पर्यटक को भ्रमण कराया जाता है, लेकिन 38000 किलोमीटर क्षेत्र में फैले रेत के टीलों के बीच सैकड़ों गांव बसे हैं, जिनकी लोक कला एवं संस्कृति तथा विरासत समृद्ध है, जोकि पर्यटन विकास में मील का पत्थर साबित हो सकते हैं।
कुलधरा एवं खाभा के अलावा पालीवालों के 82 गांव की स्थापत्य कलाए सीमा पर आए प्राचीन किले जिसे गणेशिया जो की मिट्टी से बना दुर्लभ दुर्ग हैं। घोटारू सफेद ईट की पक्की जुड़ाई, किशनगढ़, पक्की ईंटों का बना अद्भुत कला का दुर्ग तथा मोहनगढ़ लाठी, लखा, रणधा, हड्डा आदि भी ऐतिहासिक किले हैं, जिन्हें आज आवश्यकता है विश्व समुदाय के सामने लाने की।
मरू क्षेत्र के ग्रामीण इलाके का लोकजीवन अनूठा है, बेजोड़ है, कलात्मक हैं। यहां जन्म, मृत्यु, विवाह, त्यौहार इत्यादि के मौके पर संस्कृति सजीव होती है। पर्यटक के रूप में जो से देखता है वह एक उमंग व ताजगी महसूस करता है। इस क्षेत्र की सांस्कृतिक विरासत एवं परंपराएं, जनजातीय एवं आदिवासी समुदायों, राजपूतों, सिंधी मुसलमानों, लंगा एवं मंगनियार इत्यादि समुदाय में विशेष तौर से देखी जा सकती हैं। यहां के ग्रामीण इलाके में हुए एवं तालाब से पानी लाती महिलाएंए घास एवं मिट्टी के बने झोपड़े, गाय बकरी एवं ऊंट को चराते पशुपालक, दीवारों पर बने मांडणा कलाए लोक वाद्य एवं गीत व भोजन कला एवं मान मनवार, सिंधी समुदाय की जरी एवं कांच के काम की कशीदाकारीए ऊंट एवं घोड़े का शृंगार आदि लोक संस्कृति की अनुपम झलक है। यहां के गांव में पानी सरंक्षण की परंपरा आज भी जिंदा है। यहां के खड़ीन, तालाब, कुएं, बावङिय़ा तथा विविध लोक देवी देवताओं के पवित्र पूजनीय मंदिर व स्थान, मेघवालों के भजन, वाणीया, पाबूजी की पड़ का नृत्य एवं गायन वादन यहां की विभिन्न लोक कलाओं के उदाहरण है। आज आवश्यकता है इसे विश्व पर्यटन मानचित्र पर उजागर करने की।

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