दौलत के बीच रहना जिनकी आदत बन जाती है, ऐसे लोग फिर निकट से निकट संबंधों में भी धन ही देखने लगते हैं। दौलत यदि पिता की आदत है तो वह संतान को धन ही मानेगा। वैसे ही खर्च करेगा, वैसे ही बचाएगा। पति-पत्नी के संबंधों में भी जब धन आदत के रूप में उतरता है तो कलह आना ही है। उसे हम धन से बचा नहीं सकेंगे, लेकिन हमारे-उसके संबंध स्वामी के हैं, सेवा के हैं, पूर्ति के हैं या भोग के हैं, इसी हिसाब से धन हमारे लिए लाभकारी होगा या नुकसानदायक।