scriptराजस्थान का हमारा जीरा देश दुनिया में खाने का बढ़ा रहा जायका, पैदावार का मुनाफा उठा रहा गुजरात | Our cumin from Rajasthan is increasing the taste of food in the country and the world, Gujarat is earning profit from the production | Patrika News
जालोर

राजस्थान का हमारा जीरा देश दुनिया में खाने का बढ़ा रहा जायका, पैदावार का मुनाफा उठा रहा गुजरात

खाने का जायका बढ़ाने वाला पश्चिमी राजस्थान का जीरा देश और विदेशों में खास पहचान रखता है और इसकी डिमांड भी खूब होती है। सालाना 5500 से 6 हजार करोड़ रुपए के जीरे का व्यापार पश्चिमी राजस्थान के जालोर-सांचौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली जिलों से होता है।

जालोरMay 19, 2024 / 02:05 pm

Akshita Deora

खाने का जायका बढ़ाने वाला पश्चिमी राजस्थान का जीरा देश और विदेशों में खास पहचान रखता है और इसकी डिमांड भी खूब होती है। सालाना 5500 से 6 हजार करोड़ रुपए के जीरे का व्यापार पश्चिमी राजस्थान के जालोर-सांचौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जोधपुर, पाली जिलों से होता है। मामले में खास बात यह है कि प्रदेश के उत्पादन का 80 प्रतिशत जीरा इन्हीं क्षेत्रों में होता है और उसके बाद बिकवाली के लिए गुजरात जाता है। औसतन 4.50 से 5 लाख हैक्टेयर क्षेत्र में जीरे की बुवाई इन क्षेत्रों में होती है। बड़े क्षेत्र में बुवाई के बाद बंपर पैदावार के बाद प्रोसेसिंग यूनिट्स स्थानीय स्तर पर नहीं होने और जीरे की बिकवाली का बेहतर माध्यम नहीं होने से किसान जीरे की प्रोसेसिंग और बिकवाली के लिए ऊंझा ही पहुंचते हैं। इस स्थिति में ऊंझा तक पहुंचने और उसके बाद आने जाने का अतिरिक्त व्यय किसानों के फायदे पर कुंडली मार लेता है।
इन्होंने कहा

गुजरात एग्रीक्लचर नेटवर्क बना हुआ है। स्थानीय स्तर से 60 से 70 प्रतिशत किसान बिकवाली के लिए ऊंझा पहुंचते हैं और वहां उनकी उपज का हाथों हाथ दाम भी मिल जाता है। प्रदेश में अभी बड़े टेडर्स तैयार नहीं हुए है, जोधपुर में कुछ प्रोसेसिंग यूनिट्स स्थापित हुई है। स्थानीय स्तर पर भी प्रोसेसिंग यूनिट्स स्थापित हो तो किसानों को फायदा मिल सकता है।
– पूरणसिंह जैतावत, सचिव, कृषि उपज मंडी, जालोर

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पूरे पश्चिमी राजस्थान में सर्वाधिक जीरा बाड़मेर, जालोर-सांचौर में होता है और यहां से लगभग पूरा जीरा ही गुजरात की ऊंझा मंडी जाता है। हर किसान को बिकवाली के लिए 200 से 250 किमी का सफर करना होता है। सरकार इस तरफ ध्यान दे और स्थानीय स्तर पर बड़ी मंडी के साथ प्रोसेसिंग यूनिट स्थापित कर दे तो किसानों को मुनाफा होने के साथ प्रदेश को भी फायदा होगा।
– विक्रमसिंह पूनासा, प्रदेश संयोजक, राजस्थान किसान संघर्ष समिति, जालोर

इसलिए हम खास, लेकिन सरकार ध्यान नहीं दे रही

पश्चिमी राजस्थान में प्रदेश में की उपज का 80 प्रतिशत जीरा पैदा होता है। औसत उपज पर नजर डाले तो 380 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर है। भारी मात्रा में जीरे की उपज लेने के बाद किसान गुजरात ही रुख करते हैं। सरकार की ओर से स्थानीय स्तर पर इन किसानों को फायदा देने के लिए प्रयास नहीं किए गए हैं।
इस तरह से दोहरा फायदा

पश्चिमी राजस्थान में मुय रूप से जालोर या सांचौर में प्रोसेसिंग यूनिट लग जाए तो जिले के किसानों को दोहरा फायदा मिल सकेगा। बुवाई और उसके बाद फसल लेने के बाद किसान अपनी उपज को स्थानीय स्तर पर ही बड़े लेवल तक बेच सकेंगे। इससे प्रदेश को राजस्व मिलेगा। वहीं गुजरात तक आवाजाही में लगने वाला समय और अतिरिक्त व्यय रुक सकेगा। बता दें जीरे पर औसतन 1500 से 2000 रुपए प्रति क्विंटल तक प्रोसेसिंग व्यय किसानों को खर्च करना पड़ता और इस प्रक्रिया के लिए 200 से 300 किमी का सफर भी तय करना होता है।
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जिले वाइज स्थिति

● जालोर-सांचौर जिले की बात करें तो 1 लाख 35 हजार हैक्टेयर क्षेत्र से अधिक में जीरे की औसतन हर साल बुवाई होती है। वहीं प्रति वर्ष 60 से 70 हजार मैट्रिक टन जीरे का उत्पादन।
● बाड़मेर में बड़े क्षेत्र में जीरे की बुवाई और बंपर पैदावार होती है। जिले में जीरे का कुल बुवाई क्षेत्र 1.71 से 2 लाख हेक्टेयर है। करीब 1.60 लाख किसान इस फसल से जुड़े हुए हैं। कुल उत्पादन 68.40 लाख टन है।
● जैसलमेर जिले में इस साल 76 हजार हैक्टेयर में जीरे की खेती की गई है। यहां करीब 80-85 हजार किसान जीरे की खेती करते हैं।

● जोधपुर जिले ने जीरा उत्पादन में बहुत कम समय में अपनी पहचान बनाई है। यह करीब 1.42 लाख हेक्टेयर में जीरा उगाया जा रहा है. एक लाख से अधिक किसान इस खेती से जुड़े हैं।

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