
होलिका दहन नहीं, करें होलिका हवन- घर पर ही ऐसे बनाए रंग
जौनपुर. युगों-युगांतर से होलिका जलाने का सिलसिला समाज में चला आ रहा है। ऐसा करने का उद्देश्य असत्य पर सत्य की विजय का संदेश पुनर्जीवित करने के साथ ही तन- मन को स्वस्थ करना रहा है। वहीं आज होलिका जलाना बीमारियों को दावत देने जैसा हो गया है।
लोग होलिका में वाहनों के पुराने टायर, पालीथिन व कूड़ा जलाने लगे हैं जिसका धुआं स्वास्थ्य के लिए काफी नुकसानदायक है। इससे जहरीली गैस फैलती है। हम सबका दायित्व है कि, प्लास्टिक के बने सामान होलिका में न जलाएं, इससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ता है। होलिका में उपले, सूखी लकड़ियों का उपयोग बेहतर हो सकता है। होली से एक दिन पूर्व होलिका दहन होता है जिसमें अब लोग प्लास्टिक जलाने लगे हैं।
प्लास्टिक जलाने से गैस उत्सर्जित होती है, जिसमें कार्बन मोनो आक्साइड व फ्यूरान जैसी जहरीली गैस निकलती है। इस गैस से कैंसर, दमा, एलर्जी जैसी बीमारियां होती हैं। साथ ही पर्यावरण प्रदूषित होता है। रबर जलाने से इसके छोटे-छोटे कण उड़कर बच्चों के श्वास लेने के रास्ते फेफड़े में जम जाते हैं। इससे कई तरह की बीमारियां हो सकती है।दरअसल त्योहार का मजा तो तभी है जब इन्हें सामूहिक रूप से मनाया जाए। सिर्फ दिखावा करने के लिए होलिका दहन के नाम पर पेड़ों की बलि ठीक नहीं है।
पेड़ों को बचाने के लिए होलिका का आकार भी लोहिणी की तरह प्रतीकात्मक हो। यह बात खुद समझें तथा दूसरों को भी समझाएं। होलिका की अग्नि से मन के विकारों का दहन होता है। पर्यावरण सुरक्षा की दृष्टि से अगर विकल्पों का विचार करें तो थोड़ी बहुत लकड़ियों के साथ कंडे और सूखी पत्तियों के ढेर विकल्प साबित हो सकते हैं। त्योहार तो मन से मनाए जाते हैं। सुख शांति सेहत के लिए बने हैं पर्व। एक दूसरे के बीच मधुर संबंध बना रहे इसलिए ईश्वर ने त्योहार नामक वरदान मानव जाति को दिया है।
एक ही क्षेत्र में अलग-अलग होलिकाएं जलाने की जगह सामूहिकता के साथ एक साथ मिलकर होलिका जलाना होगा। होलिका दहन नहीं होलिका हवन है। बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है होली। अब यह दिखावे की अंधी होड़ का पर्याय बनता जा रहा है। होलिका की सीख और संदेश ग्रहण करने की सर्वाधिक जरूरत इस दौर में है। होली में रंग न खेलें तो होली अधूरी रहती है। केमिकल मिश्रित रंगों से बचना चाहिए, केवल प्राकृतिक रंगों से होली खेलना चाहिए। पीले रंग में एक चम्मच हल्दी व चार चम्मच बेसन व गेंदा के फूल के पंखुड़ियों को मिलाकर बनाया जा सकता है।
अनार के छिलकों को भी रात भर पानी में फुलाकर उसे पीसकर पीला रंग बनाया जा सकता है। गुलाबी रंग के लिए चुकंदर के कटे टुकड़ों को पानी में भिगोकर गुलाबी रंग बनाया जा सकता है। प्याज के छिलकों को भी उबालकर गुलाबी रंग बनाया जा सकता है। लाल रंग के लिए लाल चंदन के पाउडर को लाल रंग के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
input-जावेद अहमद
Published on:
28 Feb 2018 07:07 pm
बड़ी खबरें
View Allजौनपुर
उत्तर प्रदेश
ट्रेंडिंग
