वन एवं पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में प्रदेश के सबसे बड़े अमृता देवी पुरस्कार प्राप्त दिवंगत बापूलाल भील केआश्रम को अब स्मृति वन के रूप में विकसित किया जाएगा। वन विभाग यहां पहले चरण में 16 लाख रुपए खर्च करेगा। जिले के असनावर उपखंड के टांडीसोहनपुरा में पहाड़ी के नीचे यह आश्रम बना हुआ है। टांडीसोहनपुरा के सरपंच रहे बापूलाल भील ने जंगल और पेड़ों को बचाने का बीड़ा उठाया था। उन्हीं की बदौलत यह पूरा जंगल आज भी सुरक्षित है। भील ने केवल स्वयं पहल की बल्कि आसपास के गांवों के लोगों को भी जागरूक किया। इसके लिए प्रत्येक गांव से दो-दो लोगों को जोड़ा और टीम बनाई, जो पेड़ों की रक्षा करती थी और नए पौधे लगाती थी। इस कार्य के लिए उन्हें अगस्त 1997 में अमृता देवी पुरस्कार से सम्मानित किया था।
ये होंगे काम
क्षेत्रीय वन अधिकारी संजू शर्मा ने बताया कि बापूलाल भील के आश्रम को स्मृति वन के रूप में विकसित किया जाएगा। यहां आरएफ बीडीपी योजना के तहत काम होंगे। माइक्रो रिजर्व प्लान के तहत करीब 35 बीघा में फैंङ्क्षसग की जाएगी। आश्रम व आसपास के जंगल में मौजूद प्राचीन पेड़-पौधों का संरक्षण कर करीब डेढ़ हजार नए पौधे भी लगाए जाएंगे। यहां मृदा व जल संरक्षण के काम भी होंगे। आश्रम के आसपास चेक डेम बनाए जाएंगे। इससे बरसात का पानी रोकने में मदद मिलेगी। गर्मी में यहां पानी की कमी नहीं रहेगी। आश्रम में मौजूद प्राचीन कुंड, भील के स्मृति स्थल को नया रूप दिया जाएगा। पहले चरण में इस कार्य के लिए 16 लाख रुपए का बजट मिला है। इसके बाद पांच साल तक यह पैसा मिलेगा। यह बजट वनों के विकास के लिए काम करने वाली फ्रांस की संस्था आरएफ बीडीपी के सहयोग से मिला है।
लोगों को जागरूक किया जाएगा
शर्मा ने बताया कि इस आश्रम को इस तरह विकसित किया जाएगा ताकि लोग इसे देख वन और पेड़-पौधों का महत्व समझ सके और पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक हो सके। आसपास के गांवों में वन एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगे।
बेटा भी निभा रहा जिम्मेदारी
बापूलाल भील के बाद उनके पुत्र नंदलाल भगत ने भी जंगल बचाने की मुहिम जारी रखी। नंदलाल पेड़-पौधों की देखरेख के साथ लोगों को लगातार जागरूक कर रहे हैं। नए पौधे लगाकर उनकी देखभाल भी कर रहे हैं। इस कार्य के लिए नंदलाल को दो बार जिला स्तर पर सम्मानित भी किया जा चुका है। झालावाड़ जिले के टांडी सोनपुरा निवासी बापू लाल भील को 1997 में अमृता देवी बिश्नोई पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह बड़े ही गर्व की बात है। ऐसे में वन विभाग इनके आश्रम को स्मृति वन के रूप में संरक्षित और विकसित करेगा। यहां कई काम होंगे। पहले चरण में 16 लाख रुपए खर्च होंगे। इससे वन सुरक्षा एवं विकास में लोगों को प्रेरणा मिलेगी और जन भागीदारी सुनिश्चित हो सकेगी।
सागर पवार, उप वन संरक्षक, झालावाड़