प्रख्यात चिंतक, कवि- साहित्यकार प्रो. अजहर हाशमी का रतलाम में निधन, झालावाड़ में उनकी पार्थिव देह सुपुर्द-ए-खाक
झालावाड़। प्रख्यात चिंतक, कवि- साहित्यकार और गीता मनीषी प्रो. अजहर हाशमी की पार्थिव देह को बुधवार सुबह उनके पैतृक गांव पिड़ावा में चंवली नदी के पास कब्रिस्तान में सुपुर्दे खाक कर दिया गया। हाशमी का मंगलवार शाम रतलाम में निधन हो गया था। वे पिछले कई दिनों से बीमार थे और अस्पताल में भर्ती थे।
मूलत: पिड़ावा के हाशमी ने रतलाम को अपनी कर्मस्थली बना लिया था। वे अविवाहित थे। हाशमी की अंतिम इच्छा के अनुसार मंगलवार देर रात एम्बुलेंस से उनकी पार्थिव देह पिड़ावा लाई गई। यहां पीपली चौक में उनके पैतृक निवास में पार्थिव देह को अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। इस अवसर पर राष्ट्रीय कवि अनिल उपहार, पिड़ावा नगरपालिका के पूर्व चेयरमैन निर्मल शर्मा, पूर्व चेयरमैन सगीर अहमद उर्फ मुन्ना भाई, जैन सोशल ग्रुप के सुखमाल जैन समेत कई लोग शामिल हुए।
प्रो. अजहर हाशमी का जन्म 13 जनवरी 1950 को पिड़ावा में सूफी परिवार में हुआ था। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा पिड़ावा में हुई। इसके बाद वे उच्च शिक्षा के लिए उज्जैन चले गए। यहां पढ़ाई के बाद उनकी उज्जैन में ही उच्च शिक्षा विभाग में नियुक्ति हो गई। वर्ष 1974 में उनकी रतलाम कॉलेज में नियुक्ति हुई। इसके बाद रतलाम इनकी कर्मस्थली बन गई। कालेज शिक्षा से वीआरएस लेने के बाद उन्हें लेखन कार्य शुरू किया।
नब्बे के दशक में लाल किले से 'मुझे राम वाला हिंदुस्तान चाहिए' कविता पाठ से उन्हें व्यापक पहचान मिली। 2021 में पुस्तक 'संस्मरण का संदूक समीक्षा के सिक्के' के लिए मप्र साहित्य अकादमी का निर्मल वर्मा पुरस्कार मिला। उन्होंने 'अपना ही गणतंत्र है बंधु', 'सृजन के सहयात्री', 'मैं भी खाऊं, तू भी खा' पुस्तकें लिखीं। मप्र बोर्ड की 10वीं हिंदी नवनीत में उनकी कविता 'बेटियां पावन दुआएं' पढ़ाई जाती है।
प्रो. हाशमी पत्रिका के पाठकों के लिए सतत लेखन करते रहे। नवरात्रि, रमजान और पर्युषण पर्व पर उनके कॉलम वर्षों से प्रकाशित हो रहे हैं। ज्योतिष और राजनीति पर भी उनकी कलम से पाठकों को विशेष सामग्री मिलती रही। उन्होंने अपनी रचनाओं से देशप्रेम की अलख जगाई।