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झुंझुनू

Ganesh Chaturthi 2022 : पंजाब के भूसे व बंगाल की श्रृंगार सामग्री, असम के कारीगर बना रहे गणेशजी

पंजाब के भूसे, सोनासर की चिकनी मिट्टी, बंगाल की श्रृंगार सामग्री तथा असम के बांस से झुंझुनूं में इन दिनों गणेशजी की इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही हैं। गणेश प्रतिमा बनाने में जो सामग्री काम में ली जा रही है, वह ऐसी है जो पानी में विर्सजन के समय आसानी से घुल जाएंगी और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा।

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झुंझुनूं.

पंजाब के भूसे, सोनासर की चिकनी मिट्टी, बंगाल की श्रृंगार सामग्री तथा असम के बांस से झुंझुनूं में इन दिनों गणेशजी की इको फ्रेंडली मूर्तियां बनाई जा रही हैं। गणेश प्रतिमा बनाने में जो सामग्री काम में ली जा रही है, वह ऐसी है जो पानी में विर्सजन के समय आसानी से घुल जाएंगी और पर्यावरण को नुकसान भी नहीं होगा।


आठ दिन तक गलाते हैं मिट्टी
प्रतिमा बनाने से पहले वे गणेशजी की पूजा करते हैं। इसके बाद पंजाब से मंगवाए भूसे, बांस, सूतली व लकडिय़ों से आधार तैयार करते हैं। बाद में झुंझुनूं के निकट सोनासर गांव से मिट्टी लाते हैं। इसमें जूट व अन्य सामग्री मिलाकर आठ दिन भिगोते हैं। मिट्टी में लोच आए इसके लिए मिट्टी की कई दिनों तक अच्छी तरह घुटाई की जाती है। भूसे के बेस पर मिट्टी के लेप से प्रतिमा को आकार दिया जाता है। सूखने के बाद रंग किया जाता है। फिर बंगाल से मंगवाए नए वस्त्र व श्रृंगार सामग्री से प्रतिमा को अंतिम रूप दिया जाता है।


इस बार गणेशजी की मेहरबानी

असम के धुबरी जिले से आए कारीगर बलराम दिलीप मालाकार ने बताया कि कोरोना के कारण पिछले दो साल से कोई कार्य नहीं कर रहे थे। इस बार गणेशजी की मेहरबानी हुई। दो साल पहले की तुलना में इस बार दो गुने ऑर्डर ज्यादा मिल चुके हैं। प्रथम पूज्य से शुरुआत की है तो पूरे वर्ष अच्छा काम मिलने की उम्मीद है। उनके पास एक फीट से लेकर साढ़े आठ फीट तक की प्रतिमा हैं। इनकी कीमत पांच सौ रुपए लेकर आठ हजार रुपए तक है।

फूल व चांद पर भी नजर आएंगे गणेशजी

मालाकार ने बताया कि प्रतिमा बनाने के लिए असम से दस विशेष कारीगर आए हुए हैं। इस बार उन्होंने फूल पर, रथ पर, सिंहासन पर, चूहे पर,चांद पर व मोर पर भी गणेश जी की प्रतिमा बनाई है। साथ में मोदक व रिद्धि-सिद्धि भी हैं।
यह भी खास
बगड़ मार्ग पर मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे कारीगरों ने बताया कि प्लास्टर ऑफ पेरिस(पीओपी) का इस्तेमाल नहीं करते। प्रतिमा को बिना हाथ धोए टच तक नहीं करते। कान, सूंड, हाथ या शरीर के किसी भी हिस्से में छेद नहीं करते। क्योंकि सनातन संस्कृति में छेद करने से प्रतिमा खंडित मानी जाती है। इसलिए बंगाल के विशेष धागे की सहायता से कानों में कुंडल व श्रृंगार की अन्य सामग्री लगाई जाती है। पिछले अठारह वर्ष से वे यह कार्य कर रहे हैं। गणेशजी के बाद वे दुर्गा प्रतिमा बनाएंगे। यह कार्य उनके परिवार वाले पुस्तैनी रूप से कर रहे हैं।

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