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आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए कोर्ट का फैसला सुरक्षित

आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज को निःशुल्क भूमि आवंटन के मामले में सुनवाई पूरी हो गई है

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जयपुर

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Vikas Gupta

Aug 30, 2018

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आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज को निःशुल्क भूमि आवंटन के मामले में सुनवाई पूरी हो गई है

नैनीताल । उत्तराखंड उच्च न्यायालय में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एवं लोकसभा सांसद डॉ. रमेश पोखरियाल' निशंक के आयुर्वेदिक मेडिकल कॉलेज को निःशुल्क भूमि आवंटन के मामले में सुनवाई पूरी हो गई है। न्यायालय ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। इस मामले में कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा एवं न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी की खंडपीठ ने सुनवाई पूरी कर ली है और न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रखा है।

दरअसल यह मामला वर्ष 2005 का है जब पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के शासनकाल में हिमालयन आयुर्वेदिक सोसाइटी को श्यामपुर ऋषिकेश में सरकार ने 10 एकड़ जमीन आवंटित कर दी थी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता के एल वर्मा ने बताया कि निःशुल्क जमीन के आवंटन के इस मामले में प्रावधानों का पालन नहीं किया गया। वर्मा के अनुसार तत्कालीन सरकार ने निःशुल्क भूमि का आवंटन राजस्व विभाग की आपत्ति के बावजूद कर दिया, जो कि गलत है। भूमि का निःशुल्क आवंटन मंत्रिमंडल की अनुमति के बगैर नहीं हो सकता और सरकार ने भूमि आवंटन के लिये तत्कालीन मंत्रिमंडल की अनुमति नहीं ली थी।

याचिकाकर्ता ने इस मामले को एक जनहित याचिका के माध्यम से वर्ष 2013 में उच्च न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि यह सोसाइटी पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता निशंक की है। उनके निकट संबंधी एवं बेहद नजदीकी लोग इस सोसाइटी के कर्ताधर्ता हैं। याचिकाकर्ता की ओर से यह भी कहा गया कि भूमि आवंटन की तय समय सीमा के अंदर मेडिकल कॉलेज का संचालन नहीं किया गया और भूमि आवंटन की तय शर्तों के अनुसार सरकार ने भी इस जमीन को वापस नहीं ली। प्रावधानों के अनुसार तीन साल की अवधि के अंदर यदि आवंटित भूमि का प्रयोग तय प्रयोजन के लिये नहीं किया जाता है तो आवंटित की गयी भूमि वापस सरकार में समाहित हो जाती है। वर्मा ने बताया कि वर्ष 2009 में डॉ. निशंक के मुख्यमंत्री बनने के बाद मेडिकल कॉलेज की गतिविधियों में यकायक तेजी आ गयी। दूसरी ओर बुधवार को पूरी हुई सुनवाई में प्रदेश सरकार ने भी अपना पक्ष रखा और सरकार की ओर से कहा गया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री ने अपने विवेकाधिकार का प्रयोग करते हुए सोसाइटी को जमीन का आवंटन किया है।