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गुस्सैल मधुमक्खियों ने फलोदी में बजा दी खतरे की घंटी! विशेषज्ञ चिंतित

locationजोधपुरPublished: Apr 18, 2019 04:33:03 pm

Submitted by:

pawan pareek

सामान्यतया जंगलों में पाई जाने वाली बड़ी मधुमक्खी ‘एपिस डोर्सेटा’ ने अब फलदी की तरफ रुख कर लिया है। सम्भावित खतरे को देख विशेषज्ञ भी चिंतित हैं।

Angry bee camped in the Phalodi

गुस्सैल मधुमक्खियों ने फलोदी में बजा दी खतरे की घंटी! विशेषज्ञ चिंतित

फलोदी (जोधपुर). लगातार बढ़ता प्रदूषण, सिमटते जंगल और खेती में हो रहा रसायनों का अंधाधुंध उपयोग जहां एक तरफ मानव स्वास्थ्य को प्रभावित कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ इन क्रियाकलापों से वन्यजीवों व कीटों का अस्तित्व भी खतरे में आ रहा है।
इन हालातों में सिमटते प्राकृतिक आवासों के कारण सामान्यतया जंगलों में पाई जाने वाली बड़ी मधुमक्खी ‘एपिस डोर्सेटा’ ने आबादी क्षेत्रों की तरफ रुख कर लिया है, अब आबादी क्षेत्रों में इनकी कॉलोनियां नजर आने लगी हैं। छोटी मधुमक्खियों इंडिका व मेलीफेरा भी खेतों में बढ़ते कीटनाशकों, शाकनाशी के प्रयोग से कम होने लगी है। जिससे कृषि में परागण कम होने से उत्पादन पर भी संकट के बादल मंडराने लगे हैं।

बड़ी मधुमक्खी एपिस डोर्सेटा अत्यधिक गुस्सैल प्रवृति की होती है। आबादी क्षेत्रों में लगातार बढ़ती डोर्सेटा की कॉलोनियों व यहां वाहनों के धुएं या अन्य कारणों से हलचल के बाद आम लोगों पर हर समयमधुमक्खियों के हमले का खतरा मंडराने लगा है।

अधिकांश ठिकानों पर मिलती है डोर्सेटा

पहले जहां आबादी क्षेत्रों में जगह-जगह छोटी मधुमक्खियों इंडिका व मेलीफेरा के छत्ते देखने को मिलते थे। अब इनकी संख्या तो बहुत कम हो गई है तथा जगह-जगह बड़े आकार वाली मधुमक्खी डोर्सेटा के छत्ते दिखाई देते हैं। कभी इन छत्तों के आस-पास हलचल होने पर बड़ी संख्या में मधुमक्खियां एक साथ उडऩे लग जाती हैं तथा लोगों पर हमला भी कर देती है। बड़ी मधुमक्खी छोटी मधुमक्खियों की तुलना में अधिक गुस्सैल होती है। डोर्सेटा का डंक करीब 3 मिमी तक लंबा होता है। ये अपने डंक से मिथायलिन, हिस्टामिन व अन्य एलर्जी करने वाले रसायनयुक्त विष शरीर में छोड़ती है। जिससे शरीर में जलन व सूजन आदि के प्रभाव दिखाई देते हैं।

रुख आबादी की ओर

सामान्यत: बड़ी मधुमक्खी को रॉक बी या एपिस डोर्सेटा कहा जाता है। ये जंगलों में पाई जाती है तथा जंगली पेड़-पौधों में परागण करती है। सिमटते जंगलों व इनकी कॉलोनियों के आस-पास प्रदूषण के कारण अब डोर्सेटा ने आबादी वाले इलाकों की तरफ रुख कर लिया है। इससे अब शहरों व गांवों में इनके जगह-जगह छत्ते दिखाई देने लगे है। इनके छत्ते ऊंचाई वाले भवनों, पेड़ों पर नजर आते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार डोर्सेटा के लिए जंगलों में पाए जाने वाले मुख्य वृक्ष कम होने के कारण धीरे-धीरे ये मधुमक्खियां अब शहर व गांवों में आबादी वाले इलाकों में स्थित पेड़ों व भवनों पर कॉलोनिया बनाने लगी है।


फसली पौधों की तरफ नहीं जाती है डोर्सेटा
विशेषज्ञों के अनुसार एपिस डोर्सेटा सामान्यतया सागवान, इमली, सेहजान, पीला कनेर, करंज, छुई-मुई आदि के पेड़ों पर लगे फूलों से रस चूसती है तथा परागण करती है। रॉक बी फसली पौधों पर नहीं जाती है। इसलिए रॉक बी कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण नहीं है।


कृषि उत्पादन होगा प्रभावित
वहीं दूसरी तरफ कृषि उत्पादन में वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण भूमिका रखने वाली छोटी मधुमक्खी एपिस सेरेना इंडिका व एपिस मेलीफेरा का अस्तित्व संकट में आ गया है। दरअसल, कृषि में लगातार बढ़ रहे पीडकऩाशी व शाकनाशी के उपयोग के कारण छोटी मधुमक्खियों की तादाद कम होने लगी है। इन मधुमक्खियों की तादाद घटने से फसलों में परागण कम होने के कारण उत्पादन पर भी नकरात्मक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं।

इन्होंने कहा
आबादी क्षेत्रों में दिखाई दे रही बड़ी मधुमक्खी एपिस डोर्सेटा है। सिमटते जंगलों व विक्षोभ के कारण आबादी क्षेत्रों की तरफ रुख कर रही है। ये जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों पर ही परागण करती है। वहीं दूसरी तरफ कृषि में बढ़ते रसायनों के उपयोग के कारण एपिस इंडिका व मेलीफेरा की तादाद कम हो रही है। छोटी मधुमक्खियां कृषि में परागण करके उत्पादन में वृद्धि करती है। इन मधुमक्खियों की तादाद कम होने से कृषि पर नकारात्मक प्रभाव दिखाई देंंगे।

डॉ. गजानंद नागल, पौध संरक्षण विशेषज्ञ कृषि विज्ञान केन्द्र फलोदी

शहर में रॉक बी या डोर्सेटा की काफी कॉलोनियां नजर आ रही हैं। ये बड़े आकार की गुस्सैल मधुमक्खियां हैं। फसलों के परागण में एपिस इंडिका व मेलीफेरा मधुमक्खियों का बड़ा योगदान रहता है। कृषि में बढ़ते पीडकऩाशी व शाकनाशी के उपयोग से इनका प्रजनन चक्र प्रभावित होता है। इससे परागण कम होने से फसल उत्पादन कम हो जाता है।

-विवेक माकड़, व्याख्याता जीव विज्ञान फलोदी

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