डॉ आलोक शर्मा ने बताया कि ऑपरेशन के लिए ना तो किसी फेल्ट स्ट्रिप या और न ही किसी ग्लू का इस्तेमाल किया है। इस तरह से ऑपरेशन करने पर ब्लीडिंग का रिस्क कम हो गया। दोनों मामलों में किसी बाहर से खून चढ़ाने की आवश्यकता नहीं पड़ी। सर्जरी को शुरू करने ठीक पहले केवल बीमार से खुद का खून ले कर बचाया गया, जो की सर्जरी समाप्त होने पर पुन: चढ़ा दिया गया।
एम्सए दिल्ली में प्रो शिवचौधरी की प्रदर्शित और इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक का भी इस्तेमाल किया। दोनों बीमार ठीक चल रहे हैं और पहले बीमार की छुट्टी हो चुकी है और दूसरा बीमार डिस्चार्ज होने के लिए तैयार है।
एम्सए दिल्ली में प्रो शिवचौधरी की प्रदर्शित और इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक का भी इस्तेमाल किया। दोनों बीमार ठीक चल रहे हैं और पहले बीमार की छुट्टी हो चुकी है और दूसरा बीमार डिस्चार्ज होने के लिए तैयार है।
कार्डियोथोरोसिक सर्जन डॉ आलोक शर्मा के नेतृत्व में डॉ सुरेंद्र पटेल, डॉ अनुपम दास, डॉ दानिश्वर मीना, डॉ मधुसूदन ने सर्जरी में सहयोग दिया। डॉ मनोज कमल, डॉ, सादिक,डॉ राकेश कुमार, डॉण् ऋ चा सोनी और प्रोफ़े सर प्रदीप भाटिया के नेतृत्व में कार्डियक एनेस्थीसिया टीम ऑपरेशन में मौजूद रहीं। कमलेश, पूजा, देवेंद्र ने परफ्यूज़निस्ट टीम में भाग लिया । नर्सिंग अधिकारी अजीत कुलश्रेष्ठ, प्रियंका, मनरा रामद्वारा ऑपरेशन में सहयोग दिया।
जाने महाधमनी बदलने का ऑपरेशन यह ऑपरेशन सभी सर्जन नहीं करते हैं। इस ऑपरेशन में अओर्टिक वाल्व के साथ महाधमनि को भी आर्टिििफ़शयल वाल्व कंड्यूट से बदला जाता है। हार्ट की ब्लड सप्लाई की नसों को इस ऑपरेशन के दौरान पुन: कंड्यूट पर लगाया जाता है। उल्लेखनीय हैं कि जिन बीमारों में अओर्टिक वाल्व के खराब होने के साथ महाधमनि का भी फु लाव हो जाता है। इन बीमारों में इस महाधमनि के अचानक फू ट जाने से आकस्मिक मृत्यु होने का रिस्क रहता है। इस ऑपरेशन में ब्लीडिंग का ख़तरा होता है और यह होने पर बीमार की मृत्यु ऑपरेशन थिएटर में ही हो जाने का ख़तरा रहता है। सर्जरी के दौरान सही तकनीक का इस्तेमाल करना बहुत ज़रूरी है। ओटी में इस कारण विशेष उपकरणों की जरूरत रहती है।