नई आबकारी नीति को चुनौती
मुख्य न्यायाधीश तय करेंगे पीठ

जोधपुर. राज्य की नई आबकारी नीति को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई एकलपीठ कर सकती है या खंडपीठ, यह निर्णय अब मुख्य न्यायाधीश करेंगे। न्यायाधीश संजीव प्रकाश शर्मा ने उप रजिस्ट्रार (न्यायिक) को याचिका की सुनवाई के संबंध में उचित निर्णय लेने के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश के संज्ञान में लाने के निर्देश दिए हैं।
याचिकाकर्ता त्रिलोकसिंह की ओर से हाल ही जारी राज्य की नई आबकारी नीति को चुनौती देते हुए याचिका में कहा कि आबकारी अधिनियम के तहत इस तरह की नीति जारी नहीं की जा सकती। यदि ऐसा जरूरी है तो उसे गजट में अधिसूचित किया जाना चाहिए। नई नीति पर यह कहते हुए भी सवाल उठाए गए हैं कि उसमें शराबबंदी या मद्य संयम की जगह शराब विक्रय को प्रोत्साहन दिया गया है।
सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता महेन्द्र सिंह सिंघवी और अधिवक्ता डॉ. सचिन आचार्य ने एकलपीठ को बताया कि मुख्य न्यायाधीश ने 28 फरवरीए 2011 को एक प्रशासनिक आदेश जारी किया था। इस आदेश में राजस्थान हाईकोर्ट रूल्स में प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया था कि ऐसी याचिकाएंए जिनमें किसी कानूनए विधान अथवा ऐसे कानून या विधान के तहत जारी किए गए आदेश, नियम या रेग्यूलेशन की वैधानिकता को चुनौती दी गई हो, उनकी सुनवाई खंडपीठ करेगी। मुख्य न्यायाधीश ने बाद में आदेश शब्द की व्याख्या करते हुए कहा था कि विधायी प्रकृति का आदेश इसमें शामिल होगा। सिंघवी ने कहा कि राजस्थान आबकारी अधिनियम.1950 की धारा 41 एवं 42 के तहत आबकारी नीति जारी की जाती है। इसे चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई एकलपीठ में नहीं हो सकती। जबकि याची के अधिवक्ता ने कहा कि आबकारी नीति वैधानिक प्रकृति की नहीं हैए बल्कि यह प्रशासनिक प्रकृति का आदेश है जिसे वित्त सचिव (राजस्व) ने जारी किया है। इसकी सुनवाई एकलपीठ कर सकती है। दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद न्यायाधीश शर्मा ने उचित निर्णय के लिए मामला मुख्य न्यायाधीश को रेफर कर दिया।
जनहित याचिका विड्रो
राजस्थान हाईकोर्ट में आबकारी नीति के प्रावधानों को चुनौती देते हुए एक जनहित याचिका भी दायर की गई थी। भारतीय मानवाधिकार न्याय सुरक्षा परिषद की ओर से दायर जनहित याचिका में शराब की दुकानों के लिए विक्रय की सीमा तय करने और उससे कम विक्रय होने पर शास्ति अधिरोपित करने जैसे प्रावधानों को चुनौती दी गई थी। पूर्व की सुनवाई के दौरान खंडपीठ ने याचिकाकर्ता की पृष्ठभूमि पर सवाल उठाते हुए याचिका दायर करने का मकसद पूछा था। मुख्य न्यायाधीश प्रदीप नंद्राजोग की अगुवाई वाली खंडपीठ में सुनवाई के दौरान जब इसे सरकार का पॉलिसी मैटर बताया गयाए तो याचिकाकर्ता ने जनहित याचिका विड्रो कर ली।
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