आसान नहीं रहा डिलीवरी गर्ल बनने का सफर
10वीं कक्षा तक पढ़ीं वंदना पिछले डेढ़ वर्षों से पार्सल डिलिवरी कंपनी के साथ काम कर रही हैं। यहां लड़कों के साथ वंदना अकेली महिला है जो घर-घर डिलिवरी का काम करती हैं। वंदना सुबह 10 से शाम 6 बजे तक की शिफ्ट में ज्यादातर रातानाडा इलाके में ही सामान डिलिवर करती हैं। वंदना बताती हैं कि जहां भी जाती हूं लोग बड़ी हैरानी से देखते हैं।
10वीं कक्षा तक पढ़ीं वंदना पिछले डेढ़ वर्षों से पार्सल डिलिवरी कंपनी के साथ काम कर रही हैं। यहां लड़कों के साथ वंदना अकेली महिला है जो घर-घर डिलिवरी का काम करती हैं। वंदना सुबह 10 से शाम 6 बजे तक की शिफ्ट में ज्यादातर रातानाडा इलाके में ही सामान डिलिवर करती हैं। वंदना बताती हैं कि जहां भी जाती हूं लोग बड़ी हैरानी से देखते हैं।
शुरू में पापा-मम्मी व परिवार के लोगों ने इस काम को लेकर विरोध किया। लोगों के कई तरह के ताने भी सुने, बोलते रहते थे कि ये काम पुरुषों का है, लोग क्या कहेंगे। लेकिन मैंने अपनी हिम्मत नहीं हारी और धीरे-धीरे उन्हें सब सही लगने लगा। दो बार स्कूटी का एक्सीडेंट होने से मेरे दोनों हाथ फ्रेक्चर हो गए। जीवन में छोटी-मोटी समस्या व परेशानियां आती रही, लेकिन मेरे जज्बे को झुका नहीं पाई। मैंने ढीक होने के बाद फिर अपना काम संभाला। मुझे सम्भली ट्रस्ट के गोविंद सिंह, पार्सल डिलिवरी कंपनी की सिमरन व प्रीति का भरपूर सहयोग मिला। जिनकी वजह से मुझे जीवन जीने की नई दिशा मिली।
पति की यातना को झेलने के बाद भी उसने छोड़ा
वंदना ने बताया कि पांच भाई बहनों में मैं चौथे नंबर पर हूँ। पिता सीताराम ने बहनों के साथ 16 वर्ष की उम्र में वर्ष 2008 में मेरी भी शादी कर दी। शादी के बाद पति शराब पीकर आए दिन मारपीट करता था। करीब दो-तीन साल तक पति की बहुत यातना सहन की। ऐसे में बेटा कार्तिक व बेटी सोनाली का जन्म होने के बाद उसने हमें छोड़ दिया। जिससे मैं एक बार इतना टूट गई कि मुझे कोई रास्ता नजर ही नहीं आ रहा था। माता-पिता के साथ दो बच्चों की जिम्मेदारी भी मुझ पर आ गई।
मैं बचपन से आईपीएस अधिकारी बनना चाहती थी। लेकिन परिवार की रूढ़िवादी सोच से मुझे शादी करनी पड़ी और मेरी पढ़ाई रुक गई। अब मैं अपना सपना बच्चों को पूरा करते हुए देखना चाहती हूँ। ऐसे में मैं अपने दोनों बच्चों के लालन-पोषण व उच्च शिक्षा के लिए बहुत मेहनत करना चाहती हूँ। मैंने पार्सल डिलिवरी कार्य से पहले भी कई सारे काम किए। जिसमें कई तरह की दिक्कतों का सामना भी किया। फिर सम्भली ट्रस्ट का मार्गदर्शन मिला और आज इस मुकाम तक पहुंची हूँ। अब मुझे किसी भी तरह का डर नहीं लगता। मुझे महिला होने के नाते पार्सल डिलिवरी के साथ घर के भी कार्य करने पड़ते है। जिसमें बच्चों के साथ परिवार के लोगों का सहयोग भी मिलने लगा है।