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कबूतरों को दाना डाल रहे हैं तो हो जाइए सतर्क, जोधपुर के भीतरी क्षेत्रों के लोगों पर मंडरा रही है ये गंभीर बीमारी

locationजोधपुरPublished: Apr 17, 2019 03:39:18 pm

Submitted by:

Harshwardhan bhati

कबूतरों के माइक्रो फेदर्स से फेफड़ों में सिकुडऩ और सूजन भी आ सकती है।

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कबूतरों को दाना डाल रहे हैं तो हो जाइए सतर्क, जोधपुर के भीतरी क्षेत्रों के लोगों पर मंडरा रही है ये गंभीर बीमारी

अभिषेक बिस्सा/जोधपुर. किसी जमाने में संदेश पहुंचाने वाले कबूतर वर्तमान में बीमारी के संवाहक हो गए हैं। कबूतरों की बढ़ती आबादी शहर में लोगों के फेफड़ों में संक्रमण का कारण बन रही है। जोधपुर में प्रतिमाह अस्पताल में कबूतरों की बीट से बीमारी के हर रोज एक-दो मामले सामने आ रहे हैं। इस बीमारी को चिकित्सकीय भाषा में हाइपर सेंसेटिव न्यूमोनाइटिस कहते हैं। कबूतरों के माइक्रो फेदर्स से फेफड़ों में सिकुडऩ और सूजन भी आ सकती है।
पुराने शहर से आ रहे मरीज

भीतरी शहर के विभिन्न हिस्सों में मकान की बनावट कबूतरों के लिए उपयुक्त हंै। यहां कबूतर पूरी रात डेरा जमाए रहते है। वहीं सोते हैं और उसी जगह पर बीट करते हैं। शहर में कई जगह पर कबूतरों को दाना डाला जाता है। दाना डालने की प्रवृत्ति लोगों के लिए घातक साबित हो रही है। चिकित्सकों के मुताबिक हाइपर सेंसेटिव न्यूमोनाइटिस बीमारी के मरीज सर्वाधिक इसी स्थान से आ रहे हैं, जहां कबूतरों के सर्वाधिक घराने हैं।

बीट सूखने के बाद डस्ट का रूप लेती है

फिजिशियन डॉ. अशोक राठी व डॉ. अंकित राठी ने बताया कि कबूतरों की बीट सूखने के बाद डस्ट का रूप लेती है। श्वास के माध्यम से फेफड़ों तक पहुंच उन्हें नुकसान पहुंचाती है। ब्लड के इम्यूनोकैप विधि से कबूतरों की बीट व फंगस के प्रति आइजीजी एंटीबॉडी का पता लगाकर चिकित्सक परामर्श देते हैं। इस बीमारी में लापरवाही करने से कई बार मरीजों को ताउम्र ऑक्सीजन के सहारे जीना पड़ता है। इसके उपचार के दौरान मरीजों को आइसोलेटेड रखा जाता है और स्टेरायड और ऑक्सीजन देकर उपचार किया जाता है। डॉ. एसएन मेडिकल कॉलेज में मेडिसिन विभाग के वरिष्ठ आचार्य डॉ. नवीन किशोरिया ने कहा कि जोधपुर में पहले से प्रदूषण है, इसके बाद ये बीमारी गंभीर रूप लेती जा रही है। इसके मरीज बड़ी संख्या में जोधपुर में बढ़ रहे हैं। उन्होंने इस बीमारी से अवेयर रहने की जरूरत बताई।
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