चौपासनी रोड स्थित मकान में साथ रह रहे दोनों परिवार की तीसरी पीढ़ी भी अपने दोनों दादा की बनाई परम्परा को आज भी निभा रहे हैं। ठाकुरदत्त घर के किराणा का सामान से लेकर हर तरह की खरीदारी करते थे, वहीं श्यामसुंदर व्यापार की आय व बैंक के कार्य का ध्यान रखते थे। जिसे आज भी तीसरी पीढ़ी इसी तरह निभा रही हैं। घर में बच्चों के कपड़े से लेकर किसी तरह की कोई चीज आयी तो सभी सदस्यों के लिए एक जैसी आयी। आज भी सुबह की चाय श्यामसुंदर के यहां तो दोपहर का खाना ठाकुरदत्त के यहां होता है।
श्यामसुंदर बताते है कि ठाकुरदत्त दोस्त होने के साथ सगे भाई से बढक़र थे। एक अक्टूबर 2018 को ठाकुरदत्त के निधन के बाद से उसकी तस्वीर को हमेशा अपने पास रखता हूं। हम दोनों की जब शादी हो रही थी तो दोनों ने एक ही मंडप में शादी करने का फैसला लिया। जिसे आज भी बच्चे याद करते हैं। हम दोनों एक ही बाइक से दुकान आते-जाते थे। इसके लिए यह भी तय किया कि दुकान जाते वक्त ठाकुरदत्त बाइक चलाएंगे तो आते वक्त श्यामसुंदर लेकर आएगें। दोस्ती के साथ घर के लिए बनाई हर एक परम्परा को आज बच्चों की ओर से निभाते देख बहुत खुशी होती हैं। जहां आज के समय में सगे दो भाई साथ नहीं रहते, वहीं आज हमारे बच्चे दोस्त के परिवार के साथ सगे भाईयों से अधिक प्रेम के साथ रह रहे हैं।