राज्य में संचालित बालिका गृहों में जयपुर मुख्यालय को छोडकऱ कहीं भी ड्राइवर का पद ही नहीं है। ऐसे में वाहन तो दूर भामाशाहों की ओर से दिए जाने वाले वाहन के ईंधन बजट का प्रावधान ही नहीं है।
मंडोर स्थित राजकीय बालिका गृह की दीवार से सटकर नारी निकेतन और वृद्धाश्रम का संचालन किया जाता है। तीनों जगह डाक्टर की विजिट व्यवस्था नहीं है। यदि एक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अथवा मेडिकल विभाग से एक डाक्टर नियुक्त कर तीन दिन में एक बार विजिट हो तो बालिकाओं, महिलाओं और शिशुओं को काफी राहत मिल सकती है। हालांकि विभाग के वृद्धाश्रम को वर्तमान में नवजीवन संस्थान को गोद दिया गया है। बालिका गृह के साथ नारी निकेतन की आवासनियों और वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग बीमार होने पर क्षेत्र में कोई वाहन की सुविधा नहीं है। महात्मा गांधी अस्पताल में चिकित्सा और मानसिक विमंदित महिलाओं को मय शिशु मथुरादास माथुर अस्पताल ले जाना विकट हो जाता है। संस्था के आसपास दिन में भी ऑटोरिक्शा की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।
नारी निकेतन और बालिका गृह में भामाशाहों के सहयोग से मिले दो वाहन विभाग के पास है। हमें निदेशालय बाल अधिकारिता से वाहन संचालन की कोई लिखित अनुमति नहीं है। वाहन के लिए ना तो ड्राइवर का पद है और ना ही ईंधन का कोई बजट है।
डॉ. बीएल सारस्वत, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग जोधपुर