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अधिकारियों के साथ ‘सरकार’ की भी उपेक्षा का शिकार है बालिका गृह की बालिकाएं

locationजोधपुरPublished: Dec 15, 2019 10:47:14 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

मंडोर राजकीय बालिका गृह व नारी निकेतन में पांच साल से नहीं चिकित्सा व्यवस्थापूरे राज्य में ड्राइवर पद व ईंधन बजट नहीं होने से भामाशाहों के सहयोग से मिले दो वाहन भी फांक रहे धूल

अधिकारियों के साथ ‘सरकार’ की भी उपेक्षा का शिकार है बालिका गृह की बालिकाएं

अधिकारियों के साथ ‘सरकार’ की भी उपेक्षा का शिकार है बालिका गृह की बालिकाएं

जोधपुर. मंडोर स्थित राजकीय बालिका गृह व नारी निकेतन में निवासरत आवासनियों के लिए पिछले पांच साल से कोई भी तरह की स्थाई चिकित्सा व्यवस्था नहीं है। उपेक्षित बालिकाएं व महिलाएं सरकारी अधिकारियों के साथ साथ सरकार की भी उपेक्षा का शिकार है। मंडोर राजकीय बालिका गृह में करीब 38 बालिकाएं और नारी निकेतन में 34 आवासनी के रूप में रहती है। इनमें 6 बच्चें भी शामिल है। आकस्मिक बीमार होने पर उन्हें मंडोर अस्पताल ले जाया जाता है तो वहां से उम्मेद अस्पताल रेफर कर दिया जाता है। दूर दराज का क्षेत्र होने के कारण रात्रि के समय कोई साधन सुविधा उपलब्ध नहीं होने से कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है। तीन साल पूर्व बालिका गृह में एक बालिका की तबियत खराब होने पर तत्कालीन बालिका गृह की अधीक्षक ने मंडोर थाने से मदद मांगी लेकिन पावटा पहुंचने तक बालिका की मौत हो गई। इस समस्या से निजात पाने के लिए संस्था अधीक्षक मनमीत कौर ने बाल अधिकारिता विभाग आयुक्त एवं सामाजिक न्याय अधिकारिता विभाग जोधपुर के उपनिदेशक से लिखित में निवेदन किया। इस बीच ओएनजीसी के अधिकारियों और अपना घर संस्थान ने जिला कलक्टर की अनुमति से बालिका गृह को एक मारुति वैन और मारुति इॅको एम्बूलेंस भेंट की। चौकीदार के विरूद्ध ड्राइवर रखकर वैन का कुछ समय उपयोग शुरू किया गया लेकिन इन सुविधाओं को कुछ ही समय में ग्रहण लग गया। तत्कालीन उपनिदेशक की ओर से 27 अप्रेल 2016 को वैन संचालन बंद करने के लिखित में निर्देश जारी कर दिए गए। ईंधन के बिल भी अस्वीकार कर दिए। नतीजन संस्था परिसर में वैन वर्षों से धूल फांक रहा है।
पूरे राज्य में ड्राइवर का पद ही नहीं
राज्य में संचालित बालिका गृहों में जयपुर मुख्यालय को छोडकऱ कहीं भी ड्राइवर का पद ही नहीं है। ऐसे में वाहन तो दूर भामाशाहों की ओर से दिए जाने वाले वाहन के ईंधन बजट का प्रावधान ही नहीं है।
निदेशालय अनुमति दे तो मिल सकती है राहत
मंडोर स्थित राजकीय बालिका गृह की दीवार से सटकर नारी निकेतन और वृद्धाश्रम का संचालन किया जाता है। तीनों जगह डाक्टर की विजिट व्यवस्था नहीं है। यदि एक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी अथवा मेडिकल विभाग से एक डाक्टर नियुक्त कर तीन दिन में एक बार विजिट हो तो बालिकाओं, महिलाओं और शिशुओं को काफी राहत मिल सकती है। हालांकि विभाग के वृद्धाश्रम को वर्तमान में नवजीवन संस्थान को गोद दिया गया है। बालिका गृह के साथ नारी निकेतन की आवासनियों और वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्ग बीमार होने पर क्षेत्र में कोई वाहन की सुविधा नहीं है। महात्मा गांधी अस्पताल में चिकित्सा और मानसिक विमंदित महिलाओं को मय शिशु मथुरादास माथुर अस्पताल ले जाना विकट हो जाता है। संस्था के आसपास दिन में भी ऑटोरिक्शा की सुविधा उपलब्ध नहीं होती है।
दो वाहन लेकिन निदेशालय से संचालन अनुमति नहीं
नारी निकेतन और बालिका गृह में भामाशाहों के सहयोग से मिले दो वाहन विभाग के पास है। हमें निदेशालय बाल अधिकारिता से वाहन संचालन की कोई लिखित अनुमति नहीं है। वाहन के लिए ना तो ड्राइवर का पद है और ना ही ईंधन का कोई बजट है।
डॉ. बीएल सारस्वत, सहायक निदेशक, बाल अधिकारिता विभाग जोधपुर
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