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Global Warming के कारण पैदा हुई टिड्डी, कई देशों में चाव से खाया जाता है यह कीड़ा

locationजोधपुरPublished: May 27, 2020 08:49:59 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

हरियाली चट करने वाली टिड्डी ह्रदय रोगियों का घटाती है कॉलेस्ट्रॉल, अफ्रीका, मध्य-पूर्व, एशिया के कई देशों में खाई जाती है टिड्डी, 2018 के दो चक्रवातों से सऊदी अरब में मिला जीवनदान
 

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Global Warming के कारण पैदा हुई टिड्डी, कई देशों में चाव से खाया जाता है यह कीड़ा

गजेन्द्र सिंह दहिया/जोधपुर. वर्ष 1993 के बाद वर्ष 2019 और 2020 में टिड्डी की उत्पति का कारण ग्लोबल वार्मिंग ही है। इसके कारण उत्तरी हिंद महासागर यानी अरब सागर में वर्ष 2018 में दो सीवियर साइक्लोन आए। मई में मेकुनु और अक्टूबर में लुबान के कारण टिड्डी के देश सऊदी अरब में भारी वर्षा हुई। इससे वहां रेगिस्तान के इलाकों में भी झीलें बन गई जहां मानव का विचरण कम हुआ करता था।
टिड्डी का रहवास अरब का रेगिस्तान ही है। सऊदी अरब की सरकार ने समय रहते प्रयास नहीं किए और 2019 में भयंकर टिड्डी दल सामने आए। यह टिड्डी सऊदी अरब से यमन व ओमान पहुंची जहां अच्छी वर्षा से इसके बड़े झुंड बने। इसके बाद यह पूर्वी अफ्रीका के देशों केन्या, सूड़ान व सोमालिया पहुंच गई और इसी के साथ टिड्डी की समर ब्रीडिंग, स्प्रिंग ब्रीडिंग और विंटर ब्रीडिंग का चक्र शुरू हो गया। अब टिड्डी को एकदम से खत्म करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है।
वैसे हरियाली को चट करने वाली टिड्डी ह्रदय रोगियों के लिए फायदेमंद होती है। इसमें पाया जाने वाला फाइटोस्टीरॉल रक्त में कॉलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है। एक स्टडी में सामने आया कि कैंसर में भी यह लाभदायक है। इसका स्वाद इमलसीफाइड बटर की तरह होता है।
खाड़ी देश यमन, ओमान, सऊदी अरब के अलावा अफ्रीकी देशों केन्या, सूडान, चाड, नाइजर, सोमालिया में बड़े चाव से टिड्डी खाई जाती है। इसे फ्राई और स्टीम करके पंख, मुंह के मेंडिबल निकालकर एब्डोमिनल पार्ट खाते हैं। पिछले साल पाकिस्तान में सिंध प्रांत के मंत्री ने भी भारी टिड्डी दल को देखते हुए जनता को इसे खाने की अपील की थी।
90 दिन का जीवन काल होता है टिड्डी का
टिड्डी यानी डेजर्ट लोकस्ट का वैज्ञानिक नाम सिस्टोसिरा ग्रीगेरिया है। इसका जीवन काल 90 दिन का होता है। अंटार्कटिका व उत्तरी अमरीका को छोड़कर पूरे विश्व में पाई जाती है। मुख्यत: अफ्रीका, मध्य पूर्व और एशिया के देशों में मिलती है। इससे दुनिया के 60 देश, पृथ्वी का पांचवा हिस्सा और दुनिया की दस फीसदी जनसंख्या प्रभावित है। इसमें अन्य जानवरों की तरह मेटामॉर्फोसिस के दौरान प्यूपा अवस्था नहीं पाई जाती है। अण्डे में से निम्फ निकलकर सीधा वयस्क टिड्डी में बदल जाते हैं।
1920 तक दो अवस्था को टिड्डी की दो प्रजाति मानते थे
रेगिस्तानी टिड्डी की सोलिटरी और ग्रीगेरियस दो अवस्थाएं होती हैं। सोलिटरी अवस्था में यह अकेली रहती है। गुलाबी या हल्के भूरे रंग की होती है। ग्रीग्रेरियस में बड़े झुंड में रहती है व चटक पीला और हरे रंग की हो जाती है। 1920 तक वैज्ञानिक इसे टिड्डी की दो अवस्थाएं मानते थे। सोलिटरी फेज में टिड्डी बहुत कम खाना खाती है और हानिकारक नहीं होती है। अत्यधिक वर्षा होने व नमी मिलने पर इनकी संख्या बढ़ती है और एक दूसरे के साथ टकराने पर इनके मस्तिष्क में सेरिटीनोन हार्मोन का स्त्रवण बढ़ जाता है और समूह की प्रवृत्ति बढ़ती है। सोलिटरी (शर्मिली) से ग्रीगेरियस (सोशियल) फेज में आते ही यह लम्बी उड़ान भरने और एक दिन में खुद के वजन के बराबर खाना खाने की प्रवृत्ति पैदा हो जाती है। अगर खाना नहीं मिलता है तो बलवान टिड्डी कमजोर व मरी हुई टिड्डी को भी खाने लगती है।
जानिए टिड्डी के बारें में
– यह एक दिन में 160 किलोमीटर तक सफर कर सकती है। 1954 में उत्तरी-पश्चिमी अफ्रीका से ब्रिटेन तक टिड्डी ने सफर तय किया। 1988 में पश्चिमी अफ्रीका से केरिबियाई देशों में गई।
– इसका सबसे बड़ा दल 740 वर्ग किलोमीटर तक बड़ा हो सकता है। केवल एक किलोमीटर क्षेत्र में 40 से 80 मिलियन टिड्डी हो सकती है।
– यह एक दिन में साल भर में 2500 व्यक्तियों के बराबर खाना खा लेती है। एक टिड्डी एक दिन में खुद के वजन के बराबर खाना खाती है। बड़ा दल एक दिन में 19 करोड़ किलो सूखा पादप खा जाते हैं।
– वर्ष 1800 में चीन में तीन टिड्डी हमले में तीन बार भयंकर अकाल पड़ा था।
– यह हवा में 5000 फीट की ऊंचाई तक उड़ सकती है।
तीन ब्रीडिंग क्षेत्र
– सर्दियों में टिड्डी पूर्वी अफ्रीका के देशों और स्वेज नहर के दोनों ओर विंटर ब्रीडिंग कर रही थी।
– स्प्रिंग ब्रीडिंग के समय जनवरी से अप्रेल के दौरान पश्चिमी, मध्य अफ्रीका, खाड़ी देशों में अण्डे देती है।
– गर्मियों में भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर समर ब्रीडिंग करती है।
15 मिनट में चट कर गई नीम का पेड़
मैं 1993 में जोधपुर आया। उस वक्त टिड्डी दल को मैंने एक पेड़ को केवल 15 मिनट में चट करते हुए देखा। नीम का पेड़ पूरा नग्न हो गया। ग्लोबल वार्मिंग के कारण ही टिड्डी ने यह विकराल रूप लिया है। यह अरब के रेगिस्तान में वहीं फली-फूली है जहां मानव दखल कम है। अगर समय रहते इसको मार दिया जाता तो यह स्थिति पैदा नहीं होती।
– डॉ. संजीव कुमार, प्रभारी अधिकारी, भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (जेडएसआई) जोधपुर

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