महामारी में मानवीय रिश्तों से करीब होते जा रहे हनुमान लंगूर
जोधपुर में करीब 45 से अधिक टोलों में ढाई हजार है संख्या

जोधपुर. वैश्विक महामारी कोरोना लॉकडाउन में जोधपुर के आसपास करीब 45 से अधिक टोलों में रहने वाले ढाई हजार से अधिक काले मुंह वाले हनुमान लंगूर मानवीय रिश्तों से जुड़कर और भी करीब होने लगे है। इसका प्रमुख कारण लॉक डाउन में बंदरों को नियमित आपूर्ति होने वाला भोजन का अभाव भी रहा है। हनुमान रूप होने के कारण जोधपुर शहरवासियों की आस्था व आदर भाव भी है। इसी आस्था के चलते रिहायशी क्षेत्रों में पहुंचने पर हनुमान लंगूरों को लोग रोटियां, ब्रेड, मिष्ठान अथवा घरेलू भोजन खिला देते है। लोगों से निकटता के कारण पारिवारिक होने से बंदरों का मनुष्य से डर भी धीरे धीरे खत्म होता जा रहा है। लेकिन वन्यजीव विशेषज्ञ बंदरों को घरेलू भोजन खिलाना हानिकारक मानते है। बंदरों को जूठन व सड़ी गली तेल की बासी चीजे घातक साबित हो सकती है।
रिहायशी क्षेत्र में पलायन का कारण यह भी
बंदरों के प्राकृतिक आवास पर अतिक्रमण, खनन और शहरी विकास हनुमान लंगूरों के लिए खतरा बनते जा रहे है। लगातार खनन और आश्रय स्थलों के आस-पास पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से लंगूरों के पारम्परिक आवास स्थल नष्ट होने से भी हनुमान लंगूरों का रिहायशी इलाकों की ओर पलायन बढ़ रहा है। भोजन नहीं मिलने पर केवल नर दल ही अपने प्राकृतिक आवास से तलाश में बाहर आते है मादा नहीं। आत्मीयता बढऩे से बंदरों का मनुष्य के प्रति डर खत्म हो रहा है।
प्रो. लालसिंह राजपुरोहित, हनुमान लंगूर विशेषज्ञ व सेवानिवृत्त विभागाध्यक्ष प्राणी विज्ञान विभाग जेएनवीयू
- विशेषज्ञों के सुझाव
1. बंदरों से नजर न मिलाएं। इससे वे उत्तेजित हो सकते हैं।
2. मां एवं उसके बच्चे के बीच से न गुजरें। मादा बंदर इसे बच्चे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश मान कर हमला कर सकती है।
3. बंदरों के बीच से धीरे-धीरे गुजरें। दौड़ें नही, क्योंकि इससे बंदर उत्तेजित हो सकते हैं।
4. बंदरों पर कभी भी पथराव अथवा छेड़छाड़ ना करे
5. बंदर को भगाने के लिए, बांस की छड़ी को जमीन पर पटकें उसे न मारें।
6.छत पर दरवाजा खुला रहने से भोजन की तलाश में बंदर अंदर आ सकते है।
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