विवि के वाणिज्य संकाय में सालों से मास्टर ऑफ फाइनेंस कंट्रोल (एमएफसी) पाठ्यक्रम का संचालन किया जा रहा था। पुराने ढर्रे का पाठ्यक्रम होने के कारण विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने इसे पुनर्निमित करने को कहा। विवि ने इस पर काम शुरू किया और इसे बंद करके वर्ष 2017 में एमबीए (फाइनेंस) पाठ्यक्रम शुरू कर दिया गया। इसमें पाठ्यक्रम की काफी सामग्री बदली गई। इसमें 60 सीटें हैं और यह स्ववित्त पोषित आधार पर संचालित हो रहा है। अब तक इसके दो बैच निकल गए हैं।
छात्रों का फण्ड पेंशन देने में एमबीए का एक छात्र दो साल में विवि को 80 हजार रुपए देता है लेकिन बदले में उन्हें किसी भी प्रकार की सुविधा नहीं मिलती। फण्ड की कमी बताकर न तो शिक्षण सामग्री खरीदी जाती है और न ही बाहर से किसी विशेषज्ञ को बुुलाया जाता है। वाणिज्य संकाय के शिक्षकों ने तंग आकर विवि प्रशासन को इसे बंद करने को कहा है। दरअसल विवि को हर महीने अपने करीब 1500 पेंशनर्स को 5.50 करोड़ रुपए पेंशन के देने पड़ते हैं। इसके लिए राज्य सरकार पैसा नहीं देती है। विवि प्रशासन छात्रों की फीस में से ही पेंशन निकालता है। छात्रों की फीस का अधिकांश हिस्सा पेंशन और विवि के शिक्षकों व कर्मचारियों के अन्य भत्तों में चला जाता है।
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‘अभी हमने एमबीए फाइनेंस बंद नहीं किया है। अगर इसे बंद करते हैं तो हम बाजार की जरुरत के मुताबिक जीएसटी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एमबीए शुरू करेंगे।’
प्रो रमन दवे, डीन, वाणिज्य संकाय जेएनवीयू जोधपुर