मां से कहा था, कुछ देर में कमरा शिफ्ट करेगी
शिप्रा हादसे से महज दो दिन पहले, 12 जनवरी को ही अपने परिवार के साथ नव वर्ष की छुट्टियां मनाकर काबुल गई थी। 14 जनवरी को जिस वक्त हादसा हुआ उससे महज आधे घंटे पूर्व शाम साढ़े सात बजे ही उसने अपनी मां आशा से वीडियो कॉल के जरिए बात की और बताया कि वो कुछ ही देर में अपना कमरा शिफ्ट करने वाली है। लेकिन चंद मिनट बाद हुए धमाकों ने सबकुछ छीन लिया। रात आठ बजे आरडीएक्स से भरा ट्रक उस बिल्डिंग से टकरा गया जिसमें वह ठहरी हुई थी। धमाका इतना तेज था कि पूरा भवन गिर गया। इसी में शिप्रा ठहरी थी।
शिप्रा हादसे से महज दो दिन पहले, 12 जनवरी को ही अपने परिवार के साथ नव वर्ष की छुट्टियां मनाकर काबुल गई थी। 14 जनवरी को जिस वक्त हादसा हुआ उससे महज आधे घंटे पूर्व शाम साढ़े सात बजे ही उसने अपनी मां आशा से वीडियो कॉल के जरिए बात की और बताया कि वो कुछ ही देर में अपना कमरा शिफ्ट करने वाली है। लेकिन चंद मिनट बाद हुए धमाकों ने सबकुछ छीन लिया। रात आठ बजे आरडीएक्स से भरा ट्रक उस बिल्डिंग से टकरा गया जिसमें वह ठहरी हुई थी। धमाका इतना तेज था कि पूरा भवन गिर गया। इसी में शिप्रा ठहरी थी।
कृष्णा नगर से काबुल तक का सफर
कृष्णानगर में रहने वाली शिप्रा ने 2012 से 2017 में लंदन की यूनिर्वसिटी से एमएससी की। 2018 में वह जोधपुर लौटी। गत चार माह से काबूल में अफगानिस्तान इंस्टीट्यूट फॉर सिविल सोसायटी के डायरेक्टर के तौर पर आंतक प्रभावित लोगों की मदद करने का कार्य कर रही थीं।
आतंक की लड़ाई में कुर्बान हो गई बेटी
शिप्रा के घर मौजूद हर शख्स की आंखें नम थी और आतंक के खिलाफ गुस्सा भी। शिप्रा काफी मिलनसार थी। परिवार के लोगों ने बताया कि उसके मन में शुरू से ही कुछ कर गुजरने का जज्बा था। इसी के चलते उसने आतंकवाद प्रभावित अफगानिस्तान में जाकर सेवा का निर्णय लिया।