जोधपुर में 745 मिलियन वर्ष पहले अम्लीय ज्वालामुखी का क्रेटर था। यह ज्वालामुखी पूरे पश्चिमी राजस्थान और पाकिस्तान के सिंध प्रांत तक फैला हुआ था। उस समय के अम्लीय ज्वालामुखी के प्रमाण विश्व में बहुत कम है। धीरे-धीरे लावा सूखने या अवसादीकरण से अवसादी चट्टानें बनी। नागोरी गेट की पिलरनुमा चट्टानें, कृषि मंडी, संतोषी माता का मंदिर व मंडोर के पास खड़ी चट्टानें वास्तव में सूखा हुआ लावा है। इन्हें कोलम संधि कहते हैं।
पूरे विश्व में जोधपुर भू-विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यहां की शैल संरचना और कालक्रम के प्रमाण विश्व के दो-तीन स्थानों पर ही प्राप्त हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्राथमिक जीवों के प्रमाण भी जोधपुर से मिलते हैं, जिन्हें इडियाकारा जीवाश्म कहा गया है।
– प्रो केएल श्रीवास्तव, भू-विज्ञानी व प्रो वाइस चांसलर, भगवंत विश्वविद्यालय अजमेर