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राष्ट्रीय भू-विज्ञान दिवस विशेष : आज के रेगिस्तान में उस समय टकराती थी समुद्र की लहरें, इन्हीं से बना छीतर का पत्थर

locationजोधपुरPublished: Apr 06, 2020 09:39:43 am

Submitted by:

Harshwardhan bhati

पश्चिमी राजस्थान में मीलों दूर-दूर तक फैला थार का यह रेगिस्तान कभी समुद्र का किनारा हुआ करता था। वैज्ञानिकों ने इस समुद्र का नामकरण नहीं किया। समुद्र की उठती लहरों से 603 से 542 मिलियन वर्ष पूर्व मारवाड़ चट्टानों से छीतर के पत्थर का निर्माण शुरू हुआ जो पूरे विश्व में अनूठा उदाहरण है। केवल जोधपुर में ही इस खूबसूरती का पत्थर मिलता है।

jodhpur's chhittar stone is made from ocean waves in early days

राष्ट्रीय भू-विज्ञान दिवस विशेष : आज के रेगिस्तान में उस समय टकराती थी समुद्र की लहरें, इन्हीं से बना छीतर का पत्थर

गजेंद्रसिंह दहिया/जोधपुर. पश्चिमी राजस्थान में मीलों दूर-दूर तक फैला थार का यह रेगिस्तान कभी समुद्र का किनारा हुआ करता था। वैज्ञानिकों ने इस समुद्र का नामकरण नहीं किया। समुद्र की उठती लहरों से 603 से 542 मिलियन वर्ष पूर्व मारवाड़ चट्टानों से छीतर के पत्थर का निर्माण शुरू हुआ जो पूरे विश्व में अनूठा उदाहरण है। केवल जोधपुर में ही इस खूबसूरती का पत्थर मिलता है। जोधपुर का भू-विज्ञान इसलिए भी खास है क्योंकि यहीं पर प्रथम बहुकोशिकीय जीवों के प्रमाण यानी जीवाश्म मिलते हैं। यहां की रायोलाइट मालानी चट्टानों में केंचुए जैसे आद्य जीव के चलने, रेंगने के अलावा उनके शरीर के अवशेष मिले हैं। इनसे पहले एक कोशिकीय जीव यानी बैक्टिरिया व वायरस का पृथ्वी पर आगमन हुआ था।
ज्वालामुखी से बनी नागोरी गेट की पिलरनुमान चट्टानें
जोधपुर में 745 मिलियन वर्ष पहले अम्लीय ज्वालामुखी का क्रेटर था। यह ज्वालामुखी पूरे पश्चिमी राजस्थान और पाकिस्तान के सिंध प्रांत तक फैला हुआ था। उस समय के अम्लीय ज्वालामुखी के प्रमाण विश्व में बहुत कम है। धीरे-धीरे लावा सूखने या अवसादीकरण से अवसादी चट्टानें बनी। नागोरी गेट की पिलरनुमा चट्टानें, कृषि मंडी, संतोषी माता का मंदिर व मंडोर के पास खड़ी चट्टानें वास्तव में सूखा हुआ लावा है। इन्हें कोलम संधि कहते हैं।
ज्वालामुखी के क्रेटर बाड़मेर शहर, शिवाणा, शिव तहसील के मुंगेरिया सहित कई स्थानों पर थे। ये मलानी चट्टानें कहलाई। इसके बाद 603 से 542 मिलियन वर्ष पूर्व मलानी चट्टानों पर मारवाड़ की चट्टानें बनना शुरू हुई, जिससे छीतर का पत्थर बना। मारवाड़ चट्टानों की ऐसी संरचना देश में मसूरी और नैनीताल में मिलती है। मारवाड़ चट्टानों के समय जोधपुर सहित पूरा पश्चिमी राजस्थान समुद्र का किनारा हुआ करता था, जहां बड़ी-बड़ी लहरें टकराती थी। लहरों के टकराव के कारण यहां छीतर के पत्थर का निर्माण शुरू हुआ। इस पत्थर को इसलिए बीच सैंडस्टोन भी कहते हैं।
जोधपुर जैसा भू-विज्ञान दो-तीन स्थान पर ही
पूरे विश्व में जोधपुर भू-विज्ञान की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। यहां की शैल संरचना और कालक्रम के प्रमाण विश्व के दो-तीन स्थानों पर ही प्राप्त हुए हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि प्राथमिक जीवों के प्रमाण भी जोधपुर से मिलते हैं, जिन्हें इडियाकारा जीवाश्म कहा गया है।
– प्रो केएल श्रीवास्तव, भू-विज्ञानी व प्रो वाइस चांसलर, भगवंत विश्वविद्यालय अजमेर
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