scriptJodhpur Violence Update: जब 27 दिन घरों में कैद रहे थे लोग | Jodhpur Violence Update: When people imprisoned in homes for 27 days | Patrika News

Jodhpur Violence Update: जब 27 दिन घरों में कैद रहे थे लोग

locationजोधपुरPublished: May 05, 2022 04:51:48 pm

Submitted by:

Suresh Vyas

जोधपुर में बंटवारे के समय भी न कोई दंगा हुआ और न ही कर्फ्यू जैसी चीज से यहां के लोग 1990 तक कभी रूबरू हुए। खबरों में जरूर Curfew के बारे में सुना-पढ़ा था। Jodhpur में पहली बार कर्फ्यू लगना भी यहां के लोगों के लिए किसी कौतूहल से कम नहीं था। जैसे दीपावली पर लोग रोशनी देखने जाते हैं, वैसे लोग कर्फ्यू देखने निकल पड़े थे, लेकिन सेना और पुलिस की सख्ती ने पहली बार यहां के लोगों को Curfew की भयावहता का अहसास करवाया। अब 32 साल बाद यहां के लोग फिर वैसे ही हालत से गुजरने को मजबूर हैं।

जोधपुर में कर्फ्यू के दौरान सूना पड़ा बाजार

जोधपुर में कर्फ्यू के दौरान सूना पड़ा बाजार

जोधपुर। अपणायत और आपसी सद्भाव के लिए दुनियाभर में मशहूर जोधपुर में आजादी के बाद बंटवारे के वक्त भी कोई दंगा नहीं हुआ और 1990 तक तो यहां के लोगों ने केवल Curfew का नाम ही सुना था। वही जोधपुर मामूली बात पर तनाव के बाद Jodhpur Violence और कर्फ्यू के कारण एक बार फिर दुनिया भर में चर्चा का विषय बन रहा है। लगभग पूरा परकोटा शहर और इससे सटे इलाकों समेत दस थाना क्षेत्रों में कर्फ्यू है। घरों में कैद लोगों को भी अचम्भा हो रहा है कि आखिर गंगा-जमुनी संस्कृति वाले इस शहर को सियासत की नजर कैसे लग गई। लोग 32 साल पहले यानी 1990 में लगातार 27 दिनों तक चले कर्फ्यू को याद करके आज भी सहम जाते हैं।
साम्प्रदायिक सौहार्द्र जोधपुर की रवायत है। रियासत काल में महाराजा उम्मेदसिंह जैसे तत्कालीन शासक कहा करते थे कि हिंदू और मुसलमान मारवाड़ की दो आंखें हैं। उनकी इस बात को यहां के लोगों ने भारत-पाक बंटवारे के दौरान भी सही साबित कर दिखाया था। बंटवारे के वक्त देशभर में फैली नफरत की आग में हजारों लोगों की जिंदगियां चली गई, उस वक्त भी जोधपुर में दंगा नहीं हुआ। बरसों से मंगला की आरती और मस्जिद की अजान आज भी कई मोहल्लों में एक साथ सुनाई देती है।
जब पहली बार लगी सौहार्द्र को नजर

अपणाययत के शहर जोधपुर की शोहरत को पहला दाग 1990 में लगा। भाजपा नेता लालकृष्ण आडवानी की रामरथ यात्रा को बिहार में रोके जाने के विरोध में आहूत राजस्थान बंद के दौरान अन्य शहरों के साथ यहां भी पथराव व आगजनी की हिंसक वारदातें हुई। हालात बिगड़े तो 24 अक्टूबर को जोधपुर में भी पहली बार कर्फ्यू लागू किया गया। हालात काबू करने सेना को बुलाना पड़ा। पुलिस को फायरिंग करनी पड़ी। हिंसा की वारदातों में करीब 20 लोगों की जान गई थी और करीब एक सौ से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे। कर्फ्यू लगातार 27 दिन तक यानी 19 नवम्बर 1990 तक चला।
कर्फ्यू देखने निकल गए

इससे पहले कर्फ्यू का नाम यहां के लोगों ने खबरों में पढ़ा-सुना ही था। कर्फ्यू होता क्या है, यह देखने के लिए लोग उसी तरह बाहर निकल आए, जैसे दिवाली पर रोशनी देखने निकलते हैं। कई लोगों को पुलिस व सेना की सख्ती झेलनी पड़ी। पूछने पर मासूमियत के साथ ऐसे लोग जवाब भी दे देते थे कि कर्फ्यू देखने जा रहे हैं, लेकिन कई लोग डंडा प्रसादी के साथ चेतावनी सुनकर लौटे तो कर्फ्यू खत्म होने तक बाहर नहीं निकल पाए।
पहले कुछ घंटे छूट, फिर रात्रि कर्फ्यू

लोगों को यहां दूध-सब्जी संग्रहण की आदत नहीं थी। अचानक कर्फ्यू लगा तो दिक्कत हो गई। पहली बार जब कर्फ्यू में कुछ घंटों की छूट मिली तो लोग बाजारों में उमड़ पड़े। छूट अवधि खत्म होने से एक घंटे पहले ही पुलिस की गाड़ियां निर्धारित समय से पहले घरों में घुसजाने की मुनादी शुरू कर देती। कई दिन तक यह सिलसिला चला। बाद में दिन का कर्फ्यू हटा और 19 नवम्बर 1990 तक रात्रिकालीन कर्फ्यू चलता रहा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो