अफ्रीकी देशों में ही मर गई टिड्डियां, भारत पर बड़ा खतरा टला
Locust Threat
- टिड्डी हमले को एक साल पूरा, गत तीस मार्च को 26 साल बाद आया था टिड्डी दल
- केन्या, इथोपिया और सोमालिया में बरसात कम होने से नहीं हुआ टिड्डी प्रजनन
- लाल सागर के दोनों ओर बहुत कम टिड्डी, जून तक मामूली टिड्डी आ सकती है

जोधपुर. बारिश नहीं होने और सूखा रहने से पूर्वी अफ्रीकी देशों केन्या, सोमालिया और इथोपिया में ही टिड्डी का खात्मा हो रहा है। यहां टिड्डी के कुछ अवयस्क दल बचे हैं। नियंत्रण कार्यक्रम की वजह से अरबों टिड्डी मारी जा चकी है। लाल सागर के दोनों ओर खाड़ी देशों में भी कुछ टिड्डी है लेकिन स्प्रिंग ब्रीडिंग के लिए बारिश का इंतजार कर रही है। ईरान के दक्षिणी-पश्चिमी में भी हाल ही में टिड्डी पहुंची है जहां से पाकिस्तान के ब्लूचिस्तान होते हुए भारत में जैसलमेर-बाड़मेर के रास्ते प्रवेश करती है, लेकिन इस बार ईरान में बारिश नहीं होने, सूखा होने और छितराई टिड्डी होने के कारण इस साल जून में ही कुछ संख्या में टिड्डी आ सकती है। बड़े हमले की अब आशंका नहीं है।
वर्ष 1993 के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में हुए टिड्डी हमले को अब करीब एक साल हो गया है। गत 30 मार्च को पहला बड़ा टिड्डी दल जैसलमेर के रास्ते भारत आया था। जनवरी 2021 तक करीब 104 टिड्डी दल भारत आए। वर्ष 2021 की शुरुआत यानी विंटर ब्रीडिंग के समय टिड्डी ने अफ्रीका के पूर्वी, पश्चिमी और मध्य देशों मेंं काफी उत्पात मचाया था लेकिन टिड्डी पर लगातार पेस्टीसाइड स्प्रे के कारण वह धीरे-धीरे कम होती गई।
सऊदी अरब के भीतर टिड्डी के हॉपर
संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) की ओर से 3 अप्रेल को जारी ताजा बुलेटिन के अनुसार केन्या, इथोपिया और सोमालिया में रेगिस्तानी टिड्डी दल कम हो रहे हैं। तंजानिया में टिड्डी ने मामूली प्रजनन किया है हालांकि लाल सागर के दोनों और टिड्डी कम हुई है लेकिन सूडान और सऊदी अरब के भीतरी हिस्से में हॉपर बनने से कुछ चिंता का विषय है। बारिश नहीं होने और लगातार सूखा रहने के कारण ये हॉपर वयस्क टिड्डी में शायद ही बदल पाएंगे। तेज हवाएं चलने के कारण कुछ टिड्डी कुवैत और दक्षिण पश्चिमी ईरान पहुंची है। ईरान में अप्रेल-मई में हॉपर बनने की संभावना है।
समर ब्रीडिंग के लिए भारत आती है टिड्डी
मानसून पूर्व की अच्छी बरसात होने से टिड्डी ईरान, सऊदी अरब, ओमान, कुवैत, यमन जैसे खाड़ी देशों में स्प्रिंग ब्रीडिंग करती है। जून में भारत में मानसूनी हवाएं प्रवेश कर जाती है तब टिड्डी समर ब्रीडिंग के लिए पाकिस्तान होते हुए भारत आती है और अण्डे देती है। जून से लेकर नवम्बर तक भारत में टिड्डी का खतरा बना हुआ रहता है। गौरतलब है कि पिछले साल टिड्डी देश के कई राज्यों, दक्षिणी भारत और यहां तक की नेपाल पहुंच गई थी।
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‘इस बार बड़ा टिड्डी हमला होने की आशंका नहीं है। अफ्रीकी देशों में नियंत्रण कार्यक्रम बेहतर चलाया जा रहा है।’
डॉ केएल गुर्जर, पूर्व उप निदेशक, टिड्डी चेतावनी संगठन जोधपुर
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