यह है मामला
रेलवे में सीटीआई पद पर कार्यरत देवराज रामदेव ने अधिवक्ता अनिल भण्डारी के माध्यम से परिवाद पेश कर बताया कि बीमा कंपनी से एक लाख 15 हजार रुपए की मेडिक्लेम पालिसी तथा पाँच लाख रुपए की टॉप अप मेडिक्लेम पालिसी करवाई हुई थी।फरवरी 2016 में उनके होंठ पर फुंसी व दर्द होने पर सोनोग्राफी करवाई, लेकिन वह सामान्य आई। अहमदाबाद में बॉयोप्सी करवाए जाने पर 23 फरवरी को प्रार्थी व चिकित्सक को पहली बार ही यह जानकारी हुई कि उन्हें कैंसर हो गया है।तब प्रार्थी का ऑपरेशन किया गया। बीमा कंपनी ने मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत एक लाख 15 हजार रुपए का दावा तो मंजूर कर दिया, लेकिन टॉप अप मेडिक्लेम पॉलिसी का दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बीमा पॉलिसी के प्रथम वर्ष में ही कैंसर हो गया है जबकि वह दो साल से बीमार है और टॉप अप पॉलिसी में कैंसर का दावा 4 वर्ष बाद ही देय होता है। अदालत में अंतिम बहस करते हुए अधिवक्ता भण्डारी ने कहा कि 4 साल का अपवर्जन तब लागू होता है, जब यह बीमा कंपनी की ओर से साबित हो जाता कि प्रार्थी बीमा पॉलिसी प्रारंभ होने की तिथि 21 सितम्बर 2015 से पहले कैंसर से पीड़ित था। उन्होंने कहा कि कैंसर विशेषज्ञ को भी सर्वप्रथम 23 फरवरी 2016 को ही जानकारी हुई कि बीमाधारक को कैंसर हो गया है।उन्होंने कहा कि प्रार्थी ने प्रस्तावना प्रपत्र में कोई भी तथ्य नहीं छिपाया है सो उनका दावा विधिसम्मत होने से देय योग्य है। बीमा कंपनी की ओर से बहस के समय यह कहा गया कि टॉप अप पालिसी में 5 लाख रुपए तक का तो दावा ही देय नहीं है और इससे अधिक का दावा होने पर अगले 5 लाख रुपए का दावा देय होगा।अदालत ने परिवाद मंजूर करते हुए बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि प्रार्थी को 30 दिन में दावा राशि मय 9 फीसदी ब्याज व 10 हजार रुपए हर्जाना अदा करें।
रेलवे में सीटीआई पद पर कार्यरत देवराज रामदेव ने अधिवक्ता अनिल भण्डारी के माध्यम से परिवाद पेश कर बताया कि बीमा कंपनी से एक लाख 15 हजार रुपए की मेडिक्लेम पालिसी तथा पाँच लाख रुपए की टॉप अप मेडिक्लेम पालिसी करवाई हुई थी।फरवरी 2016 में उनके होंठ पर फुंसी व दर्द होने पर सोनोग्राफी करवाई, लेकिन वह सामान्य आई। अहमदाबाद में बॉयोप्सी करवाए जाने पर 23 फरवरी को प्रार्थी व चिकित्सक को पहली बार ही यह जानकारी हुई कि उन्हें कैंसर हो गया है।तब प्रार्थी का ऑपरेशन किया गया। बीमा कंपनी ने मेडिक्लेम पॉलिसी के तहत एक लाख 15 हजार रुपए का दावा तो मंजूर कर दिया, लेकिन टॉप अप मेडिक्लेम पॉलिसी का दावा यह कहते हुए खारिज कर दिया कि बीमा पॉलिसी के प्रथम वर्ष में ही कैंसर हो गया है जबकि वह दो साल से बीमार है और टॉप अप पॉलिसी में कैंसर का दावा 4 वर्ष बाद ही देय होता है। अदालत में अंतिम बहस करते हुए अधिवक्ता भण्डारी ने कहा कि 4 साल का अपवर्जन तब लागू होता है, जब यह बीमा कंपनी की ओर से साबित हो जाता कि प्रार्थी बीमा पॉलिसी प्रारंभ होने की तिथि 21 सितम्बर 2015 से पहले कैंसर से पीड़ित था। उन्होंने कहा कि कैंसर विशेषज्ञ को भी सर्वप्रथम 23 फरवरी 2016 को ही जानकारी हुई कि बीमाधारक को कैंसर हो गया है।उन्होंने कहा कि प्रार्थी ने प्रस्तावना प्रपत्र में कोई भी तथ्य नहीं छिपाया है सो उनका दावा विधिसम्मत होने से देय योग्य है। बीमा कंपनी की ओर से बहस के समय यह कहा गया कि टॉप अप पालिसी में 5 लाख रुपए तक का तो दावा ही देय नहीं है और इससे अधिक का दावा होने पर अगले 5 लाख रुपए का दावा देय होगा।अदालत ने परिवाद मंजूर करते हुए बीमा कंपनी को निर्देश दिया कि प्रार्थी को 30 दिन में दावा राशि मय 9 फीसदी ब्याज व 10 हजार रुपए हर्जाना अदा करें।