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दुर्लभ पक्षियों को भी पनाह दे रहा मेहरानगढ़

locationजोधपुरPublished: Nov 26, 2020 05:55:09 pm

Submitted by:

Nandkishor Sharma

-वल्चर सहित हजारों पक्षियों व चमगादड़ों का भी आशियाना

दुर्लभ पक्षियों को भी  पनाह दे रहा मेहरानगढ़

दुर्लभ पक्षियों को भी पनाह दे रहा मेहरानगढ़

जोधपुर. सूर्यवंशी शासकों के अधीन रहा मेहरानगढ़ पर्यटन क्षेत्र से जुड़े हजारों लोगों को रोजगार सुलभ कराने सहित 561 साल से दुर्लभ पक्षियों को भी पनाह दे रहा है। मेहरान शब्द का तात्पर्य विशाल से है। दुर्ग की जन्म कुण्डली के अनुसार किले का नाम चिंतामणी और दुर्ग के आकार के अनुसार किले का नाम ‘मयूर ध्वजÓ विख्यात रहा है। आकाश की ऊंचाइयों से दुर्ग पंख फैलाए मयूर के समान नजर आने वाले कवियों ने अपनी कविताओं में भी ‘मयूर ध्वजÓ का खूब उल्लेख किया है। पक्षी की आकृति वाले गढ़ मेहरान में आज भी सरिसर्प अथवा सांप को नहीं मारने की आदेश की पालना होती है।
किले के निर्माणकाल से ही पक्षियों के लिए सुरक्षित आवास ‘जीव-रखा
मेहरानगढ़ के रक्षकों एवं निर्माणकर्ताओं ने न केवल इंसानों के लिए आवास बनवाए बल्कि नन्हीं चिडिय़ों से लेकर सभी तरह के पक्षियों के लिए महलों की दीवारों व पहाड़ी चट्टानों पर सुरक्षित आवास ‘जीव-रखाÓ आळों के रूप में छोटे छोटे आवास बनवाए थे। आज भी विभिन्न प्रजातियों के पंछियों को उन सुरक्षित घरों में चहचहाते हुए सहज देखा जा सकता है । मेहरानगढ़ में ही संत चिडिय़ानाथ मार्ग पर स्थित पहाड़ी गिद्धों की प्रमुख व सुरक्षित आश्रय स्थली मानी जाती है। पक्षी प्रेमी विनोदपुरी कहते है सुरक्षित होने के कारण किले में कई बार दुर्लभ पक्षी भी नजर आते हैं।
जारी है जीवों के संरक्षण की परम्परा
दुर्ग के रक्षकों ने सदियों से पर्यावरण, पक्षियों,जल संरक्षण, पेड़-पौधों इत्यादि का पूर्ण संरक्षण किया है । मेहरानगढ़ के निर्माणकाल और उसके बाद भी सभी संरक्षकों ने जीवों के संरक्षण की परम्परा को जारी रखे हुए है। सुरक्षा की दृष्टि से चीलों को नियमित रूप से चुग्गा देने की परम्परा आंशिक रूप से प्रभावित हुई है जिसे जल्द ही बहाल कर दिया जाएगा।
-करणीसिंह जसोल, निदेशक मेहरानगढ़ म्यूजियम ट्रस्ट जोधपुर

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