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रूप चर्तुदशी को रनिवास में पहने जाते थे नए आभूषण

locationजोधपुरPublished: Nov 14, 2020 11:42:55 am

Submitted by:

Nandkishor Sharma

– रानियां अपने निजी खर्चे से बनवाती थी गहनें, रानियों को मिलता था अलग अलग गांवों का राजस्व
-नख से शिख तक के लिए होते थे अलग अलग आभूषण

रूप चर्तुदशी को रनिवास में पहने जाते थे नए आभूषण

फोटो – 1 मारवाड़ के जनाना सरदार फोटो – 2 रानी चौहान फोटो -3 हाड़ी रानी लक्ष्मण कंवर

नन्द किशोर सारस्वत

जोधपुर. मारवाड़ में हर तीज त्योहार के खास मौकों पर मारवाड़ राजघराने की रानियों का शृंगार से खास जुड़ाव रहा है। अलग अलग रानियों को उनके निजी इच्छाओं की पूर्ति और खर्च के लिए राजा की तरफ से मारवाड़ के कई राजस्व गांव से प्राप्त आय का निजी खर्च प्रयोग करने की छूट मिलती थी। सीमित गांवों से प्राप्त आय को रानियां अपनी पसंदीदा सामग्री को खरीदने आभूषणों पर खर्च किया करती थी। हालांकि रानियों की मृत्यु के बाद उनके सभी आभूषणों को राजकोष के खजाने में जमा करवा दिए जाते थे । वैवाहिक आयोजन, तीज और दीपावली जैसे त्योंहारों व खास मौकों पर सजने संवरने के लिए रानियां अपने लिए पसंदीदा आभूषण बनवाया करती थी। मारवाड़ में वर्ष 1843 से 1873 तक रनिवास की रानियों की ओर से कीमती रत्नों से जडि़त आभूषण के अलावा शीश, कान, नाक, हाथ, अंगुली, बाजू, कलाई, गले, पैर यहां तक दांतों तक के लिए अलग अलग आभूषण तैयार करवा कर पहने जाते थे।
नख से शिख तक के लिए होता था अलग आभूषण

सिर – टीका, रखड़ी, बोर, शीशफूलकान के आभूषण-कर्णफूल, झुमका, झूमर, झेले, बूंदे, लूंग, टोटियां, ओगनियां, तुंगला, बाळियां
कान : कर्णफूल , पीपल पत्र , फूल झूमका , तथा आगोत्य
नाक के आभूषण-बेसर, नथ, बाळी, चुनी
हाथ – नवरतनी , मुद्रा , हथफूल , रायफूल , मूंदड़ी , बिंटी, दमणा, हथपान, सोवनफूल
दांत-चूंपा
गले – विभिन्न तरह के हार, तेवटा, तिमणियां, आड, मादरिया, कंठी आदि
बाहू व कळाई : -बाजुबंद या भुजबंद, पाट, कड़े, टड्डे, कंगन चुड़ी, गोखरू, पुणच, नौगरी।
कमर: -कंदोरा आदि
पैर के आभूषण -पाजेब, पायल, नुपूर, झांझणियां, रमझोल, कड़ा, छड़ा, छेळकड़ा, जोड़ा, आंवला, नेवरा, पगपान, बिछिया, अरावट, पोलरा, फुलड़ी, छल्ला आदि ।
रत्न जडि़त आभूषणों का उल्लेख

मारवाड़ में वर्ष 1843 से 1873 तक महाराजा तख्तसिंह के कार्यकाल में रनिवास में रानियां हीरा, पन्ना, माणक, मोती, नीलम, लाल, पुखराज, गोमेद, मूंगा आदि कीमती रत्नों से जडि़त आभूषण पहनती थी। रनिवास की रानियों की ओर से प्रयुक्त बाजुबंद, कंदोरा, बिंदियां, चूड़ी, मेहंदी, बिछुए, पायल,चूड़ामणि, नथनी, झुमके, तिमणियां, मुद्रिका, गजरा, तोड़ा, कड़ला, बेड़ीया, डोरा, पोलरियां, सांटा, कड़ा, चौकिया, चूड़ा री पत्तियां, कातरिया, गुजरीया, मादलिया, टोटिया, कर्णफूल, जवलिया, पगपाना, बाजुबंद, गोखरू, जूटाणिंयां, टेसियां, पायल, छापा, बीठिया, सबिया, कांठला, मुरकिया, दुपिया, जांजरिया, नोगरिया, बोर, हेसलिया, तिमणियां आदि शामिल है।
मिंट बहियों में है रनिवास आभूषणों की जानकारी
रनिवास में रानियों की ओर से पहने जाने वाले अधिकांश आभूषण उनके पीहर पक्ष के हुआ करते थे। लेकिन उनके अतिरिक्त खर्चों व ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उन्हें राजस्व गांव सौंप कर उसकी समस्त आय को खर्च करने की छूट मिलती थी। जवाहरखाना की बहिएं न सिर्फ रनिवास के आभूषणों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं बल्कि खरीदे जाने वाले स्वर्ण के साथ आभूषण बनाने वाले कारीगरों की जानकारी भी प्रदान करते हैं ।
डॉ. विक्रमसिंह भाटी, सहायक निदेशक, राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी जोधपुर

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