कान : कर्णफूल , पीपल पत्र , फूल झूमका , तथा आगोत्य
नाक के आभूषण-बेसर, नथ, बाळी, चुनी
हाथ – नवरतनी , मुद्रा , हथफूल , रायफूल , मूंदड़ी , बिंटी, दमणा, हथपान, सोवनफूल
दांत-चूंपा
गले – विभिन्न तरह के हार, तेवटा, तिमणियां, आड, मादरिया, कंठी आदि
बाहू व कळाई : -बाजुबंद या भुजबंद, पाट, कड़े, टड्डे, कंगन चुड़ी, गोखरू, पुणच, नौगरी।
कमर: -कंदोरा आदि
पैर के आभूषण -पाजेब, पायल, नुपूर, झांझणियां, रमझोल, कड़ा, छड़ा, छेळकड़ा, जोड़ा, आंवला, नेवरा, पगपान, बिछिया, अरावट, पोलरा, फुलड़ी, छल्ला आदि ।
रनिवास में रानियों की ओर से पहने जाने वाले अधिकांश आभूषण उनके पीहर पक्ष के हुआ करते थे। लेकिन उनके अतिरिक्त खर्चों व ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए उन्हें राजस्व गांव सौंप कर उसकी समस्त आय को खर्च करने की छूट मिलती थी। जवाहरखाना की बहिएं न सिर्फ रनिवास के आभूषणों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी देते हैं बल्कि खरीदे जाने वाले स्वर्ण के साथ आभूषण बनाने वाले कारीगरों की जानकारी भी प्रदान करते हैं ।
डॉ. विक्रमसिंह भाटी, सहायक निदेशक, राजस्थानी शोध संस्थान चौपासनी जोधपुर