श्रमिकों की परवाह नहीं खदानों में श्रमिक बिना मास्क, हेलमेट व हाथ के दस्ताने के काम कर रहे हैं। मौके पर पानी का छिड़काव भी नहीं किया जाता है, इससे धूल के कण सीधे श्रमिकों के शरीर में जा रहे हैं। यहीं से इस बीमारी की शुरुआत होती है। श्रमिक राम भरोसे है। इनकी सुरक्षा की परवाह न खनिज विभाग को है न खनिज धारक को। खनन पट्टा लेते समय इन सभी सुरक्षा उपकरणों का हलफनामा खनिज पट्टा धारक को देना होता है। साथ ही समय समय पर विभाग को भी इसकी जांच करना अनिवार्य है। दोनों ही इससे दूर भाग रहे हैं।
काल बनकर आया कोविड सिलकोसिस से पीडि़त लोगों के लिए कोरोना महामारी काल बनकर आई। कोरोना काल में घरों में कैद रहने के कारण फेफड़ों में जमी धूल ने उनकी सांसे रोक दी। इन मरीजों को लॉकडाउन व उसके बाद शिविर नहीं लगने से समय पर ऑक्सीजन व उपचार नहीं मिला।
प्रदेशभर में समस्या, हालात नहीं सुधरे खदानों व पत्थर की तुड़वाई का कार्य करने वालों की सांसों के साथ धूल के कण शरीर में जाकर फेफड़ों में जमा हो जाते है। इससे फेफड़े काम करना बंद कर देते है और सांस लेने में तकलीफ होती है। इस स्थिति में मरीज को ऑक्सीजन दिया जाना जरूरी होता है, जो कोरोना काल में नहीं हो सका। फेफड़े की तकलीफ के कारण मरीजों को जान से हाथ धोना पड़ा। प्रदेश के भीलवाड़ा, अजमेर, नागौर, पाली, जोधपुर, जालौर, सिरोही, राजसमंद, उदयपुर, बाड़मेर, सवाई माधोपुर और टोंक जिले सर्वाधिक संवेदनशील है। यहां मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है।