टिड्डी को मारने के लिए वर्तमान में टिड्डी चेतावनी संगठन (एलडब्ल्यूओ) की ओर से मेलाथियान 96 प्रतिशत का उपयोग किया जा रहा है जो ऑर्गेनोफॉस्फेट प्रकार का पेस्टिसाइड है। इससे टिड्डी का तंत्रिका तंत्र शिथिल होकर वह नीचे गिर जाती है। इसके अलावा क्लोरपायरिफॉस और लेमड़ा जैसे पेस्टिसाइड उपयोग में लिए जा रहे हैं। कीटनाशक विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को पेस्टिसाइड उपयोग करने से पहले दस्ताने पहनने, सुबह और शाम स्प्रे करने, पास में पानी का रिजर्वायर नहीं होने, अन्य पशु पक्षियों का ध्यान रखते हुए छिड़काव करना चाहिए।
सामान्यत: फसलों को कीट व बीमारी से बचाने के लिए 1-5 प्रतिशत सांद्र्रता वाले पेस्टीसाइड स्पे्र किए जाते हैं लेकिन टिड्डी मारने के लिए 50 से लेकर 96 प्रतिशत तक सांद्र्रता का पेस्टीसाइड उपयोग होता है जो एक तरह से जहर का काम करता है। फसलों के जरिए इनके खाद्य शृंखला में जाने और भू-जल में मिलकर मानव उपयोग में आने का भी खतरा रहता है।
गाइडलाइन के अनुसार अगर पेस्टीसाइड स्प्रे करें तो इसका खास दुष्प्रभाव नहीं होता है। इसकी डोज नियंत्रित और सावधानीपूर्वक इस्तेमाल करनी चाहिए।
– डॉ. एमएम सुंदरिया, कृषि विश्वविद्यालय, जोधपुर
टिड्डी को मारने के लिए वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की गाइडलाइन के अनुसार ही पेस्टीसाइड स्प्रे किया जाता है। यह ऐसा ही जैसा शत्रु देश द्वारा आक्रमण करने पर अपनी सुरक्षा करते हुए कुछ नुकसान खुद उठाना।
– डॉ. आरएन त्रिपाठी, प्रधान वैज्ञानिक, केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान, जोधपुर
पेस्टीसाइड स्प्रे करने के बाद किसानों को वहां से हट जाना चाहिए। कुछ समय तक फसलों को छुना नहीं चाहिए। वैसे मैलाथियान वाष्पशील है कुछ समय में ही उड़ जाता है।
– डॉ. केएल गुर्जर, उप निदेशक, टिड्डी चेतावनी संगठन जोधपुर